Book Title: Mahavira Bhagavana
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 303
________________ परिशिष्ट न. २५ पी०रिस डेविड्स व अन्य कई विद्वानोंने इस बातको 'पूर्णतः , सिंद्ध कर दिया है कि बौद्धोंके पालीग्रन्थोंकी आनसे २२०० वर्ष पूर्व रचना हो चुकी थीं। अशोकके समय अर्थात ईस्वीस से पूर्व तीसरी शताब्दिमें इन ग्रन्थोंका अधिकांश भाग प्रायः उसी रूपमें स्थिर हो चुका था जैसा उसे हम आज पाते हैं । अतः महावीर स्वामीके विषयमें इनके कथन उनके बहुत निकटवर्ती कालके होनेसे बहुत मान्य और विश्वसनीय हैं। ___'बौद्धोंके समस्त धार्मिक ग्रन्थ तीन भागोंमें विभक्त हैं जो त्रिपटक कहलाते हैं। इनके नाम क्रमशः विनयपिटक, सुतं सूत्र) पिटक, और अभिधम्म (अभिधर्म) पिटक हैं। प्रथम पिटकमें बौद्ध मुनियोंके आचार और नियमोंका, दूसरेमें महात्मा बुद्धके निन उपदेशोंका और तीसरेमें विशेषरूपसे चौद्ध सिद्धान्त और दर्शनका वर्णन है । 'सुत्तपिटक'के पांच 'निकाय व अंग हैं जिनमेंसे द्वितीयका नाम 'मझिम निकाय' है। इसमें अनेक स्थानोंपर महात्मा बुद्धका निग्रन्य मुनियोसें मिलने और उनके सिद्धान्तों आदिके विषयमें बातचीत करनेका उल्लेख आया है। इन उल्लेखोंसे सिद्ध होता है कि बुद्धको भगवान महावीरकी सर्वज्ञताका पता चल गया था और उन्हें उनके सिद्धान्तोमें रुचि उत्पन्न हो गई थी। उदाहरणार्थ इन उलेखोंमेंसे एक यहां उद्धृत किया जाता है। बुद्ध कहते है: एकमिदा है, महानाम, समयं राजगहे विहरामि गिझकूटे पन्वते । तेन खो पन समयेन संबहुला निगण्ठाइसिगिलिपस्से काल

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