Book Title: Mahavira Bhagavana
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 298
________________ २७० भगवान महावीर। परिशिष्ट नं. १ भगवान महावीर और महात्मा गांधी। भारतप्राण महात्मा मोहनदास कर्मचंद गांधीजीने जो शब्द भगवान महावीरके सम्बन्धमें 'महावीर जयंती के अवसरपर ' अहमदावादमें कहे थे वह उपयोगी जानकर हम यहां उद्धृत करते हैं। आपने कहा था कि:--- ___ " मैं आप लोगोंसे विश्वास पूर्वक यह बात कहूंगा कि महावीरस्वामीका नाम इस समय यदि किसी भी सिद्धान्तके लिए पूना जाता हो, तो वह अहिसा है। मैंने अपनी शक्ति के अनुसार संसारके जुदा जुदा धोका अध्ययन किया है और नो जो सिद्धान्त मुझे योग्य मालूमे 'हुए हैं उनका औचरण भी मैं करता रहा हूं। मैं अपनेको एक पक्का सनातन हिंदू मानता हूं, परन्तु मैं नहीं समझता कि जन दर्शन दूसरे दर्शनोंकी अपेक्षा हल्का है अथवा उसकी गणना हिन्दु धर्ममें न हो सके और इसी लिए मैं मानता हूं कि जो संचा हिन्दू है वह नैन है और जो सच्चा जैन है वह हिन्दू है । प्रत्येक धर्मकी उच्चता इसी बातमे है कि उस धर्ममें अहिंसातत्वकी प्रधानता हो । अहिंसातत्वको यदि किसीने भी अधिकसे अधिक विकसित किया हो, तो वे महावीरस्वामी थे, परन्तु उन महावीर भगवानका वर्तमान शासन उसका पूरा पूरा आचरण नहीं करता !...आजकलके जन भाई अगणित छोटे २ जीव जंतुओंकी रक्षा भले ही करते हों परन्तु मनुष्योके प्रति जो उनका आचरण है-जो वर्ताव है-वह

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