Book Title: Mahavira Bhagavana
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 282
________________ २५४ भगवान महावीर | बातोंको सत्य माननेके लिए वाध्य हुआ हूं। यह निश्चय होना' कि जब सन् ई० से पहिले ३२२ वर्षमें चन्द्रगुप्त सिंहासनारूढ़ हुए तब वे नितान्त युवां और अनविज्ञ थे, प्रकट करता है कि जब २४ वर्ष उपरान्त उन्होंने राज्य छोड़ा तब उनकी उमर ५० वर्षके करीब थी। इतनी कम उमरमें इनका लोप होजाना साक्षी देता है कि उन्होंने राज्यभार छोड़ दिया था । राजाओंके ऐसे ही अन्य त्यागोंका उल्लेख उपलब्ध है, और १२ वर्षका अकाल भी विश्वास करने योग्य है । इसलिए जैन कथानक सत्य है । I और कोई अन्यथा वर्णन उपलब्ध नहीं है । " " इस प्रकार प्राचीन भारतीय सम्राट् चन्द्रगुप्त मौर्य अन्तमें श्रुतकेवली भद्रबाहुके निकट जैनमुनि होंगए थे। उनके चरणचिन्ह श्रवणबेलगोलके एक मंदिर में अङ्कित हैं । और उनका बनवाया हुआ एक मंदिर भी वहां पर विद्यमान है । इसी विषय में मि० थामस साहब अपनी पुस्तक “जैनीजम और दी अर्ली फैथ ऑफ अशोक " में लिखते हैं कि राजा चन्द्रगुप्त जैन थे । तथा मेगस्थनीजने लिखा है कि राजा चंद्रगुप्त जैनमुनि श्रमणोंका भक्त था जो ब्राह्मणोके विरोधी थे। राजा चंद्रगुप्तकें पीछेके राजा भी जैनी थे। राजा अशोक मी पहिले जैन थे, फिर बौद्ध हुए। आइने अकबरीमें अबुलफजलने लिखा है कि राजा अशोकने जैनधर्म काश्मीरमें फैलाया था । राजतरिगणीमें भी यह बात लिखी है । अशोकका वह शिलालेख जो दिल्लीमे दिल्ली दरवाजे बाहर कोटलाके ऊंचे स्थानपर अवस्थित खंभेपर अंकित है, अशोकको जैनी प्रकट करता है अर्थात् यह शिलालेख उस समय लिखा गया "

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