Book Title: Mahavira Bhagavana
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 289
________________ जीवन से प्राप्त प्रगः शिक्षाऐं । २३१. फंसकर अपने पैर धोने में ही उसे व्यर्थकर दीजिए और विवेकी पुरुषोंको इस अनूठी बातपर आश्चर्य करने दीजिए । परन्तु नहीं, पाठक जानते होंगे कि महान् आत्माओंका जीवनप्रकाश हमें अज्ञानान्धकारमेंसे निकाल सक्ता है इसलिए उनके जीवनसे प्राप्त मुख्य शिक्षाओंका अवश्य ही अवलम्बन करना चाहिए । अंग्रेज कवि भी इन महात्माओंके विषय में यही कहता है :--- BR Through Such Souls alone God stooping shows sufficient of His Light For us in the dark to rise by." भगवान महावीरके पवित्र पावन जीवनसे प्राप्त साधारण शिक्षाका उल्लेख पहिले किया जाचुका है । परन्तु उससे विशेष रूपमें उपयुक्तरीत्या मि० जुगमन्दरलाल जैनी एम० ए० आदि ने उनका दिग्दर्शन • Life of Mahavira की भूमिकामें निम्न प्रकार कराया है - वे लिखते हैं कि “ भगवान महावीरके जीवनमें सर्व प्रथम मुख्य बार्त यह थी कि उनके हृदयमें समस्त वस्तुओंके कारणको जाननेकी अदम्य इच्छा थी । अध्ययन, दर्शन, मनन और तपद्वारा, जो तत्कालीन भारतके एक सच्चे सत्यखोजीके जीवनके मुख्य -अंग थे, उनके प्रयत्नोंने उन्हें उनकी उस इच्छाकी पूर्ण पूर्ति की उन्हें निर्वाणकी प्राप्ति हुई । ज्ञानोपार्जनका मार्ग बड़ा नीरस है। उसमें पगपगपर विविध संशयात्मक विषयोंका समागम होता है। परन्तु हमारे अंतिम तीर्थङ्करका साहसी हृदय और विचक्षण नेत्र इन सब कठिनाइयोंपर विजयी हुए थे । और वह ज्ञान एवं प्रकाशके

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