Book Title: Mahavira Bhagavana
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 292
________________ - २६४ भगवान महावीर । अपनी मान्सिक और शारीरिक उन्नति करनेके अवसर ही नहीं.. दिए जाते । अस्तु, भगवान महावीरके भक्तोंका कर्तव्य है कि वह स्त्रियोंकी दशा उन्नत बनानेके लिए ढढ़प्रयत्न हों। इससे स्त्रियोंमें उछृंखलता आजानेका भय भयमात्र है ।" पांचवी और अंतिम "बात उन नवयुवकोंके हितकी है जो धीरे २ ऊंचे उठना चाहते हैं, और सत्कीर्तिका सुकुट अपने शीश पर रखना चाहते हैं। ऐसोंके लिए अंतिम तीर्थकर भगवानका चरित्र यह • सिखाता है कि जीवनके एक मुख्य उद्देश्यको प्राप्त करनेके लिए जीजानसे दृढ़ प्रयत्न होना चाहिए । उद्देश्यहीन जीवनसे बढ़कर दुःख और पापमय जीवन शायद ही कोई है। हमारे हजारों नवयुवकोंके हृदय शुभ्र उत्साहसे परिपूर्ण हैं, परन्तु उनकी भावनाऐं अनेक हैं । जीवनके एक मुख्य उद्देश्यको न देखनेके कारण , 1 3 - बहुतेरोंके उत्तम जीवन नष्ट होजाते हैं । अस्तु, इस कमताईको हटाना हमारा धैर्य्ययुक्त कर्तव्य है । भगवान महावीरने ज्ञानज्यो तिके दर्शन किए थे। वह उसीके उपार्जनमें लग गए और अन्तमें निर्वाणको प्राप्त हुए। जैन शास्त्र व्यक्त करते हैं कि आन हम इस भूमिसे निर्वाणको प्राप्त नहीं कर सके, परन्तु यदि हम इस ओर 'दृढ़प्रयत्न हों, तो क्या यह संभव नहीं है कि हम उस देशको - विदेहको प्राप्त कर लें, जहां अब भी केवली भगवान विद्यमान हैं; और नहाँसे अव भी नीव मुक्त होते हैं । " अस्तु, वस्तुस्थितिका ध्यान धरकर हमको भगवानके दिव्य जीवनसे अपनी आत्माका उपकार करनेका भाव सीखनेका अपूर्व मिलता है। भगवान के निर्मल चारित्रसे अपनी और परकी 1 पाठ 1 "}

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