Book Title: Mahavira Bhagavana
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 283
________________ वीर संघका प्रभाव। २५५ था जब राजा अशोक जैनधर्मको माननेवाला था। अपने राज्यकालके २९ साल तक यह जैनी रहा। जैनधर्मभूषण श्रीमान ब्रह्मचारी शीतलप्रसादनीने नैनमित्र वर्ष २२ अंक ४३ के ६६१ एष्टपर इस शिलालेखकी नकल दी है। और उसके ऐसे वाक्योंकी टीका की है जिनसे जैनधर्म झलकता है। जैसे नं० में अपासिनवे शब्द है अपनवत्वम्-निसमें आश्रव (कर्मीका आना) न हो। यह धर्मका विशेषण है। आश्रव शब्द जैनियोंका मुख्य शब्द है। नं० ३का उपदेश बिल्कुल जैनमत सदृश है । कषायोंमें फंसनेको आश्रव शब्द दो दफे आया है। इस विषयमें डॉ. कर्नसाहब अपनी सम्मति इस प्रकार देते हैं कि " जो स्तम्भोंपर लेख है उनसे राजा अशोकने अपनी प्रजाके लिए अपने बड़े राज्यमें, जो विहारसे गान्धार और हिमालयसे कारोमंडल एवं पाण्ड्य देश तक था, क्या किया सो प्रगट होता है। योग्य समय और स्थानपर अशोक जिस धर्मको वह मानता था, उसके अनुसार नम्रमावसे वह वर्णन करता है; किंतु बुद्धमतका भाव उसकी राज्य प्रणालीमें कुछ नहीं पाया जासका । अपने राज्यके वहुत प्रारम्भसे वह एक अच्छा राजा था । पशु रक्षा परकी जो उसकी शिक्षाएँ हैं वे बौद्धोंकी अपेक्षा जैनियोके विचारों से अधिकतर मिलती हैं।" ___ अस्तु, इस वर्णनसे हमें राना अशोकके विशाल राज्यका और उसका प्रमाके प्रति प्रेमपूर्ण देखभालका पता चल जाता । और मालूम होजाता है कि प्रारम्भमें २९ सालतक उन्होने अपने राज्यका प्रबंध अपने धर्म जैनधर्मके नियमोके अनुसार किया था

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