Book Title: Mahavira Bhagavana
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 285
________________ वीर संघका प्रभाव। २५७ गके पश्चिममें पेथान (प्रस्थान) और गोडवानाके मध्यमें है उसको वश किया। तथा कई देशोंमें प्रजातंत्रात्मक राज्य था उनको भी ' अपने आधिपत्यमें लिया । चार वर्षमें यह दक्षिण भारतका सार्वभौम सम्राट् हो गया। खारवेलका राज्य अन्याय एवं निरंकुशतापुर्ण न था। राजा स्वच्छंद नहीं होता था। उसकी शक्ति मंत्रिमंडल द्वारा परिमित ' होती थी। पौरमें राजधानीके व जानपदमें ग्रामों के प्रतिनिधि रहते थे। इसने इन संस्थाओंके अधिकारोमें वृद्धि की थी। इस समय उत्तर भारतमें पुष्पमित्र पाटलीपुत्रमें राज्य करता था। मगधदेशका राना नन्द ३०० वर्ष पूर्व कलिगपर आक्रमण करके जैनियोंके प्रथम तीर्थकर श्री ऋषभदेवकी मूर्तिको ले गया था । इस मूर्तिका उद्धार करनेके लिए खारवेलने पुष्पमित्रपर चढ़ाई की। अंतमें पुष्पमित्रने खारवेलका महत्व स्वीकार कर लिया। दोनोंमें संधि हो गई, और श्री ऋषभदेवकी मूर्ति कलिगमें पुनः आगई । इससे प्रतीत होता है कि राजा खारवेल गृहत्थवर्मका कैसा उत्तम रक्षक था। दक्षिणके पाण्ड्य राज्यने भी खारवेलका प्रभुत्व स्वीकार कर लिया था। तेरहवें वर्षके अनुमान इसने बहुतसे धार्मिक कृत्य किए । कुमारी पर्वतपर अर्हत मंदिरका जीर्णोद्धार कराया व पत्थरका दूसरा भवन बनवाया । इसके धर्मकार्योंसे प्रसन्न होकर जाने उन्हें क्षेमरान, वर्द्धराज, निक्षुराज व धर्मरानकी उपाधिसे विभूषित किया। शिलालेखमें १३ वर्ष राज्यकालका वर्णन है। इसके आगेका नहीं; परन्तु उसकी प्रधान राजमहषी धष्टिका उत्कीर्ण कराया हुआ स्वर्गपुरी अथवा मंचपुरी नामका दूमरा शिलालेख

Loading...

Page Navigation
1 ... 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309