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भगवान महावीर।
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(२६) . जैन सम्राटू श्रेणिक विम्बसार • और चेटक। , 'विपुलाचल पर जिनवर आये, सुनत श्रवण नृप श्रेणिक धाये । समवसरन सुरधनद बनाये, जासु रुचिरता त्रिभुवन छाये ॥ द्वादश सभा जहाँ दरसाये, तामधि आप जिनेश सुहाये । नाति विरोध त्याग पशु आये, जिनपद सेवत प्रीति बढ़ाये ॥
गौतम गणधर अस्थ सुनाये, धर्म श्रवणकरि पाप नसाये।। श्रेणिक सोलह भावन भाये, प्रकृति तीर्थकर बंध कराये ॥"
. - जैन कवि देवीदास । प्राचीन भारतवर्षके आधुनिक इतिहासमें जैन सम्राट् श्रेणिक बिम्बसारसे ही ऐतिहासिक रीत्या क्रमवार भारतीय सत्तासम्पन्न शासकोंका वर्णन प्रारम्भ होता है। हम पहिले लिख चुके हैं कि सम्राट् श्रेणिक महावीर भगवानके शिष्य थे, इसलिए उनके समकालीन होनेके कारण आपका समय जो ईसासे पूर्व ६४३ से ४९१ का माना गया है वह ठीक बैठता है। इनके राजत्वकालमें इन्होने रानगृह नामक अपनी राजधानीको फिरसे निर्माण किया • था और अपने वंशपरम्परागत प्राप्त राज्यकी वृद्धि भी की थी। (See Oxford History of India by V. Smith P. 56.)
सम्राट् श्रेणिक विम्बसार अपने प्रारंभिक जीवनमें बल्कि । युवावस्थाके वादतक बौद्ध धर्मावलंबी रहे थे यह नियोंके शास्त्र