Book Title: Mahavira Bhagavana
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 267
________________ श्वेताम्बरकी उत्पत्ति। . २३९ 'ब्राह्मणं दशवर्षतु शतवर्षतु भूमिपम् । पितापुत्रौ विनानीयाद् ब्राह्मणस्तु तयोः पिता ॥ १३५ ॥' " ब्राह्मणो नायमानो हि एथि व्यामधि जायते । ईश्वरः सर्वभूतानां धर्म-कोशस्य गुप्तये ॥ १॥९९॥" सर्वस्वं ब्राह्मणस्येदं यत्किचिजगती गतम् । श्रेष्टनामि जनेनेदं सर्व वै ब्राह्मणोऽईति ॥ १ ॥ १० ॥ स्वमेव ब्राह्मणो मुद्दे स्वं वस्ते स्वं ददाति च । आन शंस्याद् ब्राह्मणस्य भुञ्जते हीतरे जनाः ॥ १॥ १०१ ।। ___ इस दशामें प्राकृतिकरीत्या ही ब्राह्मणोके इस गर्वको हानेके लिए उक्त प्रकारकी कथाकी उत्पति की गई थी, ऐसा प्रत्यक्ष प्रतीत है। भगवान महावीरके जीवनमें गर्मापहरणकी कोई भी वास्तविक घटना घटित नहीं हुई थी। दूसरी मुख्य बात सेतांवर अन्योंकी यह है कि वह भगचान महावीरको बालब्रह्मचारी व्यक्त नहीं करते हैं । वे कहते हैं कि भगवानके नंदिवधन नासके एक भाई और सुदर्शना नामकी एक वहिन थी। यशोदा नागडी राजकन्या के साथ उनका विवाह हुआ था, और उससे उसके प्रियदर्शना नानकी एक कन्या हुई थी। यह ऐसा मतमेट नहीं है जो मी सास सिद्धान्तके कारण हुआ हो। दिसम्बर सम्पदाय सपने सचान्य तीवकराशे विवाहित और सन्तनवान मानता है । अब, यदि भगवान महावीरशा विवाह आदि हुआ होता तो वह अपन लिखते । दूरी तरह यदि भगबागी ती पुत्री आदि मान लिए जाय, तो बहुत संभव था कि

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