Book Title: Mahavira Bhagavana
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 274
________________ भगवान महावीर। घटित हुई थीं, ठीक उसी रीतिको प्रकट करनेवाले भावमय चिन्होंको लेलिया गया प्रतीत होता है और इससे यह प्रकट हो जाता है कि उस समय जैन तीर्थङ्करोंकी विशेष प्रभावना जनसाधारणके हृदोंमें घर किए हुए थी। ___ मि० ब्राउनकी उक्त पुस्तकमें प्लेट नं० १ की कुंनी (Key to Plate 1) में नं० २ और नं० ५ के सिक्कोका इस प्रकार वर्णन दिया हुआ है २. चौकोण Ponch-marked सिका। चांदी। सीधीतरफः बैल, सूर्य आदि। उल्टीतरफः-कई अप्रकट चिन्ह । ५. तक्षशिला; Double diecoin तांबा। तौल १८० ग्रेन । सीधीतरफ:-हाथी और उसके ऊपर चैत्य । उल्टी तरफः-ताकमें, वाम ओर खड़ा हुआ सिंह जिसके ऊपर स्वस्तिका, वाममे चैत्य। नं० में बैल सूर्यादि चिन्ह बतलाए हैं, परन्तु ध्यानसे देखनेसे उसमें बैल और सूर्यके ऊपर बिगड़ा हुआ स्वस्तिका और एक गोलाकार जिसके मध्यमे बिन्दु है, प्रकट होता है। अब यह देखना है कि इन चिन्होसे जैनधर्मका क्या संवन्ध है। यह याद रहे कि यह सिक्का भगवान ऋषभनाथके स्मारस्मे प्रचलित हुआ प्रतीत होता है। परन्तु प्रतिबिम्बके अविनयके उरसे यह न सती गई और उसके स्थानपर तत्सम्बन्धी धार्मिक चिन्ह सम्बे गए। हम जानचुके हैं कि भगवान अपमनायकी प्रतिबिम्बका निहलाह और चन्द्रसे गाव गुप्त मापामे धर्मस है। सूर्यका अर्थ उसी भाषामें केवलज्ञानावम्यासे हैं | (Sta Tho Traetical Polip, 192)

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