Book Title: Mahavira Bhagavana
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 272
________________ भगवान महावीर। सत्यपर किसी खास सम्प्रदाय, जाति या व्यक्तिका अधिकार नहीं है । सत्यकी प्रत्यक्ष मूर्ति सर्व प्राणीसमुदायकी समान सम्पत्ति है, उसकी उपासना हर कोई करसक्ता है। , • तत्कालीन जनतामें इस दिव्योपकारका इतना असर था कि उन्होंने उसी समयसे भगवान के निर्माण कालसे एक, अब्द भी प्रारंभ करदिया, जो अबतक चालू है । वीर निर्वाणाब्द ८४ जैसे प्राचीनकालका एक शिलालेख आज भी हमारी उक्त व्याख्याकी पुष्टि करनेको अवशेष है। जैनमित्र वर्ष १२ अंक ११ एंठ १६२ पर इस लेखका उल्लेख है । इसके विषयमें लिखा है कि "अजमेर जिलेमे वडला ग्राम है, वहां एक खरल मिला है अर्थात एक स्तम्भ भाग एक फकीरके पास मिला है जिसमें वह कुछ कूटा करता था । इसपर पालत भावाका लेख है, जिसपर ४ लायनमे यह लेख है: वीराय भंगवत . चतुरासी निवस्से साला मारिणीय रणि विद्र मिज्झमिके। अजमेर अनायबघरके क्यूरेटर रायबहादुर पंडित गौरीशंकरने इसे वीर संवत् ८४ का निश्चय किया है। मिज्झमिका अर्थात माध्यमिका नामकी एक नगरी मेवाड़में है। शेष कुछ अक्षरोंका भाव आप नहीं लगास्के।" परन्तु उसकी भाषा लिपिके अक्षरोंसे उन्होने इसका उक्त समय निश्चित किया है। वहत संभव है कि इस शिलालेखका

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