Book Title: Mahavira Bhagavana
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 265
________________ श्वेताम्बरकी उत्पत्ति | २३७ अस्तु, अब हम श्वेताम्बर सम्प्रदायके ग्रन्थों में जो भगवान महावीरके जीवन संबंध में मतभेद हैं उनपर विवेचन करेंगे। परन्तु ऐसा करनेके पहिले हम यह व्यक्त करदेना चाहते हैं कि " यह ध्यान में रहे कि श्वेताम्बर सम्प्रदाय के सूत्रग्रन्थ सुधर्मस्वामी और. भद्रबाहुरवामी आदिके रचे हुए बतलाए जाते हैं; परन्तु वे देवर्विगणि क्षमाश्रमणके समय में वीर नि० ' संवत ९८० के लगभग पुस्तकारूढ़ किए गए थे । इसलिए यह दृढ़तापूर्वक नही कहा जा सक्ता कि यह सुधर्मस्वामी आदिकी यथातथ्य रचना है और इसमें समयानुसार कुछ परिवर्तन नहीं किया गया है। सबकी भाषा जुदी जुदी तरहकी है । रचनाशैलीमें भी अन्तर है और एक आगमसे दूसरे आगमकी बहुतसी बातें मिलतीं नहीं । जैसे समवायांग सूत्रमें आचारांग सूत्रके अध्यायोंकी जो संख्या और क्रम दिया है वह वर्तमान आचारांग सूत्रमे नही है । कल्पसूत्र श्रुतकेवली भद्रबाहुका बनाया हुआ कहलाता है; परन्तु उसमें जो स्थविरावली या गुरुपरंपरा दी है, वह भद्रपाहुसे लगभग आठसौ वर्ष पीछे तककी दी हुई है !”* भगवती सूत्रके भी बहुतसे कथन स्वयं उसीके वर्णनोंसे पूर्वापर विरोधित हैं जैसे डॉ० वी. एम. नारुआ . एम. ए. डी. लिट. अपनी Tho Ajivakas (Pt. I) नामक पुस्तकके पृष्ठ १२ पर व्यक्त करते हैं । अस्तु, प्रगट है कि श्वेतांबर संप्रदायके आगम या सूत्र ग्रन्थ भगवान के समय के निश्चित प्रमाण नही माने जाते । भगवान के समय के असली आगम सूत्र क्रमकर लुप्त हो गए * देखो जेन हितैषी भाग १३ अंक ४ पृष्ट १४५

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