Book Title: Mahavira Bhagavana
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 268
________________ > २४० भगवान महावीर | . उनका उल्लेख कहीं न कहीं बौद्ध ग्रन्थोंमें मिलता । जिस प्रकार 'भगवान महावीरके. अन्यान्य भक्तोंका उल्लेख बौद्ध ग्रन्थोंमें मिलता हैं, वैसा इनका भी उल्लेख मिलना चाहिए था, क्योंकि स्त्री, पुत्री आदि भी भगवानके परम भक्त होते । परन्तु, बौद्ध ग्रन्थोंमें इनका उल्लेख कही भी नहीं है । इसलिए भगवान बालब्रह्मचारी " रहे थे यही प्रतीत होता है । 1 मेरी समझमें भगवान महावीरके जीवनकी बहुतसी घटना - 1 / ओंको, श्वेताम्बराचार्य जैन धर्मके इस युगफालीन आदि प्रचारक' भगवान ऋषभदेवकी जीवन घटनाओं सदृश बनाना चाहते थे । " 1 इसी लिए उन्होंने ऐसा वर्णन किया जो आदि जिनकी जीवन 'घटनाओसे मिलता है, और कुछ नितान्त मौलिक भी है, क्योंकि वह यह व्यक्त करना चाहते प्रतीत होते हैं कि भगवान महावीरने अपने धर्मका निरूपण भगवान ऋषभदेवके समान किया था । और श्वेतांबर गणं भगवान पार्श्वनाथके श्रमणोंके समान आचरण करनेवाला है जिनको कि वह अपनी दृष्टिसे वस्त्रधारी मुनि समझता है; यद्यपि वे यथार्थने नग्न 'निम्यान्थ' ही थे, जैसे कि पहले प्रगट करचुके हैं। और इसी आशयका एक संवाद उत्तराध्ययन परिच्छेद २३ में अंकित है, जहां भगवान पार्श्वनाथके शिष्य केसी और भगवान महावीरके प्रधान गणवर गौतममें दिगम्बर वेषपर समझौता हुआ प्रगट है, परन्तु इसमें वास्तविक तथ्य बिल्कुल ही प्रगट नहीं होता । अस्तु, हम देख चुके कि भगवान महावीरके निर्वाण लाभ करने पश्चात् एक दीर्घफालोपरांत जैन संघमे मतभेद खड़ा होगया। 1

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