Book Title: Mahavira Bhagavana
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 243
________________ AAN श्वेताम्बरकी उत्पत्ति। २१९ भारतकी यथार्थ स्थितिका पता लगाना कठिन हो रहा है। सम्राट अशोककी हजारों गिरिलिपियोंमेंसे आज केवल नाममात्रकी संख्यामें वे अवशेष हैं । जैन धर्मके अतुल प्राचीन साहित्यको हिदू धर्मके प्रख्यात आचार्य शङ्कराचार्यने जल गर्भकरके सब विदेशी यवन. आक्रमणकों ने उन्हें अग्निदेवीको समर्पित करके, साथ ही मूषकों व क्रमिकोंने अपनी छपा करके हमको बिलकुल हीअज्ञानान्धकारमें डाल दिया है। परन्तु जो कुछ भीसामग्री उस जमानेकी उपलब्ध है उससे हमें पता चलता है कि जैनधर्मके बाह्य शरीरमें एवं हिंदू और बौद्धधर्मोमें पूर्णरूपान्तर इन बीचकी शताब्दियोंने लाकर खड़े कर दिये हैं। हिन्दू धर्म तो सदैव समयानुसार अपना रंग पलटता रहा. है, और इस जमानेमें उसने अपनी खासी उन्नति करली थी। वेदान्तका प्रादुर्भाव इसी जमानेमें हुआ प्रतीत होता है जैसा कि डॉ० स्टीवेन्सन साहब 'कल्पसूत्र' की भूमिका (पृष्ट २६-२७) में कहते हैं कि "जैनी हिन्दू धर्मके सांख्य, न्याय, चार्वाक और वैशेषिक दर्शनोंसे विशेष परिचित होते हुए और उनका उल्लेख करते हुए, वेदान्तका उल्लेख नही करते हैं । यह भी उन अनेक कारणोंमेसे एक है जो मुझे विश्वास दिलाते हैं कि संभवतः समय उपनिषद और पुराण बौद्धधर्मकें हासके उपरान्त संकिलित हुए थे।" ___ एवं न्याय, सांख्य, वैशेषिक आदि सर्व ही हिन्दू ग्रन्थ जैनधर्मकी उत्पत्तिके पश्चात् क्रमवार उत्पन्न हुए हैं। इससे भी प्रगट है कि हिन्दू धर्मपर समयर अन्य धर्मोका प्रभाव पड़ता रहा है जैसा कि पूर्वमें लोकमान्य तिलककी सम्मतिके उल्लेखसे प्रगट किया जा चुका है । देशके दूसरे प्रसिद्धनेता ला० लाजपतराय अपनी पुस्तक 'भारतवर्षका इतिहास के प्रष्ट १३२ पर लिखते

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