Book Title: Mahavira Bhagavana
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 221
________________ भगवान महावीर। अभाव (पसीना न आना)२, दूधके समान श्वेत रक्त ३, वजवृषभनाराचसंहनन , समचतुरस्त्रसंस्थान ५, अद्भुतरूप ६, अतिशय सुगंधता ५, एक हजार आठ लक्षणयुक्त शरीर ८, अनंतवल ९, और प्रियहितकर वचन १०, ये दश अतिशय तो भगवानके जन्मकालसे ही थे परंतु केवलज्ञान प्राप्तिके समय निमेषउन्मेषरहित सुन्दर लोचन १,नख और केशोंकी वृद्धि न होना २, भोजनका अभाव ३, वृद्धावस्था न आना ४, शरीरकी छाया न पडना १, परमकांतियुक्त एक मुखका चौमुख मालूम पडना ६, दोसौ योजन तक सुभिक्ष होना ७, प्राणियोंको उपसर्ग और दुःख न होना , आकाश गमन ९, और समस्त विद्याओमें प्रवीणता १०, ये दश अतिशय और भी प्रकट हुये। इसलिये भगवान के रूप देखनेसे और वचन सुननेसे समस्त लोगोंको परमानंद होता था “ १०-१५ ॥"+ + इस बात को पृष्ट करनेवाला वर्णन बौद्धोंके अथ 'मज्झिमनिकाय' (P.TS. Vol. I. PP.92-93 के निम्बाशमें है । उसमें लिखा है कि "जब बुद्ध राजमहमें ठहरे हुए थे तब उन्होंने महानामसे कहा कि 'एक दफे कुछ निग्गन्य इसिगिलीके पास पृथ्वीपर पर तपस्या कर रहे थे । एक सायकालके समय मैं उनके निकट गया चोर उनसे यहा उस तरह पड़े रहनेका कारण पूछा । उन्होंने उत्तरमें फरा कि उनके नाचपुत्त भायानने (जो सर्वज्ञ, सर्वदशी थे) उन्हें पतलाया है कि उनने पूर्व जन्ममें पाप किए हैं उनके निवारणके लिए उपवरण करना चाहिए। उन्हें मन, वचन, कायसे त्यागको अपनाना चापि जिससे भविष्य पापोंसे छुटकारा मिले" इससे प्रकट Rifia are उस समय भी लोगोंको भगवानके प्रति श्रद्धान था। भर वर म उसको यथार्थ शान प्रात करनेा भवान भी उन्हीमें गया यह म पदिले देश हैं।

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