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सुधर्माचार्य एवं अन्य शिष्य ।
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(२) दूसरे गणधर अग्निभूति भी गौतम गोत्रके थे। इनके
गणमें भी १०० मुनि थे ।
(३) तीसरे गणधर वायुभूति, इन्द्रभूति और अग्निभूतिके भाई गौतम गोत्री थे । इनके आधीनगणमें भी ५०० मुनि थे । (४) आर्यव्यक्त चौथे गणधर भारद्वाज गोत्रके थे। इनके गणमें भी १०० सुनि थे ।
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(९) अग्नि-वैशयायन गोत्रके पांचवें गणघर सुधर्माचार्य थे। इनके आधीन भी ५०० मुनि थे ।
(६) मण्डिक पुत्र अथवा मण्डित पुत्र वशिष्ट गोत्रके थे; और २९० श्रमणोंको धर्मशिक्षा देते थे ।
(७) मौर्यपुत्र काश्यपगोत्री भी २५० मुनियोंके गणधर थे। (८) अकम्पित - गौतमगौत्री और (९) हरितापन गोत्रके अचलवृत दोनों ही साथ २ तीनसौ श्रमणोंको धर्मज्ञान अर्पण करते थे ।
(१०) मैत्रेय और (११) प्रभास कान्डिन्य गोत्रके थे । दोनोंके संयुक्तगणमें ३०० मुनि थे ।
इन ग्यारह गणधरोंमेंसे केवल इन्द्रभूति गौतम और सुधर्माचार्य भगवानकी निर्वाण प्राप्तिके पश्चात् जीवित रहे थे, अवशेष गणधर भगवानके जीवनकालमें ही मुक्तिको प्राप्त हुए थे। यह सव केवली थे । उपर्युक्त वर्णनसे विदित होता है कि इन गणधरोंके आधीन ४२०० मुनियोके अतिरिक्त मुनि और भी थे जिनकी गणना करके हमको १४००० मुनि बतलाए गए हैं।