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आ वनितारनद पें
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श्रीपंचमियं नोतु
महाबन्ध
पावंगं पोगललरिदु जिनपूजेयना- ।
ना विवद दानदमलिन
भावदोला मल्लिकब्बे पोल्ववरार ॥ ६ ॥
द्यापनमं माडि बरसिं राजान्तमना ।
रूपवती सेनवधू जित
sti श्रीमाधनंदि-यतिपतिगित्तल् ॥ ७ ॥
उस वनितारत्नको जिनपूजाके बारेमें प्रशंसा कौन कर सकता है, उस मल्लिका के समान भक्त कोई थी ही नहीं ॥ ६ ॥
जिन सिद्धान्तको माननेवाली रूपवती उस सेनपत्नीने श्रीपञ्चमीका उद्यापनकर जितक्रोध माघनन्दि यतीश्वरको लिखवाकर यह ( सिद्धान्त ग्रन्थकी प्रति ) दी है ॥ ७ ॥
इस प्रशस्ति में चार व्यक्तियोंका नामोल्लेख सहित गुणकीर्तन किया गया है— गुणभद्रसूरि, श्राचार्य माघनन्दि, सेन और उसकी पत्नी मल्लिकब्बा ।
मल्लिका सेनकी पदी थी। पं० सुमेरुचन्द्रजी दिवाकरने भी प्रथम भागको भूमिकामें यह प्रशस्ति उद्धत की है। उन्होंने सत्कर्मपत्रिका के श्राधारसे 'सेन' का पूरा नाम शान्तिषेण निर्दिष्ट किया है । यह तो स्पष्ट है कि मल्लिकत्रा सेनकी पत्नी थीं । परन्तु गुणधर मुनि और माघनन्दि आचार्यका परस्पर और इनके साथ क्या सम्बन्ध था यह इससे कुछ भी ज्ञात नहीं होता है। मात्र प्रशस्तिके अन्तिम श्लोकसे यह ज्ञात होता है। कि मल्लिकाने श्रीपञ्चमीव्रतके उद्यापनके फलस्वरूप सिद्धान्तग्रन्थको प्रतिलिपि कराकर वह श्री माघनन्दि आचार्यको भेंट की ।
ऐतिहासिक दृष्टि से इस प्रशस्तिका बहुत महत्त्व है अतएव इसकी छानबीन की विशेष आवश्यकता है ।
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