Book Title: Madan Shreshthi Charitra Author(s): Amolakrushi Maharaj Publisher: Sukhlal Dagduram Vakhari View full book textPage 8
________________ ढूंडनेकेलिये निकलाथा । कुछदिवसकेबाद वह राजा लाई हुई अपनी उस पुत्रीका सम्बन्ध मदनकेसाथ बड़े समारोहके साथ कर उसको आधा राज्यभी देदेता है, कुछकाल दाम्पत्यसुखका अनुभवले फिर उस शहरमें ब्रह्मचारीका बेष बनाकर पहुंचता है जहांसेकि रात्रिकेसमयमें मन्त्रिपुत्र बन राजपुत्रीको लायाथा । नगरमें नैमित्तिक बनकर खोईहई उस राजपुत्रीको अपनी बुद्धिमानीसे राजासे भेट कराकर अतिप्रार्थनासे उसकेसाथ लग्नकर, गन्धर्वविवाहकर छोडीहई उस पूर्वराजपुत्रीको प्राप्तकरलेता है। फिर बड़े समारोहके साथ वटपुरनामके शहरमें पहुंचकर छोडेहुए उन सबकुटुम्बियोंसे यथायोग्य मिलता है, मिलनेकेबाद अपनी २ दुःखित दशाका वर्णन करतेहुये उन कुटुम्बियोंकेसाथ पुनः अयोध्या वापिस आजाता है । जन्मभूमिमें बान्धवोंकेसाथ कुछदिन सांसारिकसुखका अनुभव करतेहुए किसी एकसमय नगरोद्यानमें पधारे हुए मुनिराजके दर्शन करनेकेलिये जाता है। वहांपर पूर्वभवमें किये हुए दानके पुण्यसे तुम महानऋद्धिको प्राप्त करनेवाले बने हो ऐसा मुनिराजके मुरवारविन्दसे सुन संसारके सुखको क्षणभंगुर समझ उसीसमय दीक्षा ग्रहण करलेता है, और कुछकालपर्यन्त स्व आत्माका कल्याण करताहुवा वही मदन अन्तिमअवस्थामें-'सर्वः पूर्वकृतानां कर्मणां प्राप्नोति फलविपाकम्' यह अनुभवित अवस्थाका अनुभव धर्मप्रियजनोंको सुना सुगतिको प्राप्तकरता है। ___सं. १९९७ के धूलिया चातुर्मासमें जिससमय स्थविर मुनिश्री माणक ऋषिजी म. सा. पं. मुनिश्री कल्याण ऋषिजी म. सा. वैयावचशिरोमणी मुनिश्री मुलतान ऋषिजी म. सा. सुव्याख्यानी मुनि श्री हरिऋषिजी म. सा.Page Navigation
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