Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan

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Page 13
________________ । ५३ ) परिच्छेद ३. सामाजिक प्रायोजन ( १२७-१३८ ) जन्मोत्सव-वर्धापन, पंचधातृ-संरक्षण। विवाहोत्सव-कुवलयमाला के विवाह का सूक्ष्म एवं विस्तृत वर्णन। युवराज्याभिषेकोत्सवकुवलयचन्द का राज्याभिषेक। इन्द्रमह, महानवमी, दीपावली, बलदेवोत्सव, कौमुदी-महोत्सव, वसन्तोत्सव, मदनोत्सव आदि आर्य संस्कृति के सामाजिक-उपादान। रीतिरिवाज-अग्निसंस्कार, ब्राह्मणभोज, अस्थिविसर्जन, मृतकों का तर्पण आदि। सती-प्रथा की निरर्थकता, दासप्रथा का अस्तित्व । अन्ध-विश्वास-पुत्र प्राप्ति हेतु बलि आदि देना, तन्त्र-मन्त्र की साधना एवं विभिन्न देवताओं की आराधना। शकुन-अपशकुन पर विचार । गाँवों का सामाजिक जीवन --- गाँवों की संरचना, प्रमुख व्यवसाय-कृषि, अकाल का सामना, फसल के लिए वर्षा की निर्भरता तथा गाँवों के प्रमुख, पंच नादि-महावढ़रभट्ट, प्रधानमयहर, ग्राम-बोद्रोह, ग्राममहोभोजक, ग्राम महत्तर, ग्राम-सामन्त वादि । परिच्छेद ४. वस्त्रों के प्रकार ( १३९-१५६ ) विभिन्न प्रकार के वस्त्र--अर्धसवर्ण वस्त्रयुगल, उत्तरीय, उपरिपटांशुक, पटांशुकयुगल, उपरिमवस्त्र, उपरिस्तनवस्त्र, कंठ-कप्पड़, कंथा, कंबल, कच्छा, कसिणायार, कसिणपच्छायण, कुस-सत्थर, कूर्पासक, क्षोम, गंगापट, चिंघय, चीरमाला, चीवर, चेलिय, थण-उत्तरिज्ज, देवदूष्य, धवलमद्धं, धूसर-कप्पड, धौत-धवल दुकूल-युगल, नेत्रयुगल, नेत्राट, पटी, पड, पोत, फालिक, भाजन-कप्पड़, वत्कलदुकूल, सहवसन, साटक एवं हंसगर्भ आदि। सूती, ऊनी एवं रेशमी तथा सिले और बिना सिले हुए सभी प्रकार के वस्त्र । शबर दम्पति, भिखारो, मातंग, कापालिक एवं तीर्थ यात्री की वेशभूषा । परिच्छेद ५. अलंकार एवं प्रसाधन (१५७-१६४) ४० प्रकार के अलंकार-अट्ठट्टकंठ्यामरण, अवतंस, कंठिका, कटक, कटिसूत्र, कांचीकला, कर्णफूल, किंकिणी, कुण्डल, जालमाला, दाम, नूपुर, पाटला, मालाहरो, मुक्तावली, मेखला, रत्नावलि, रसणा, रुण्णमाला, वलय, वैजयन्तीमाला, सुवर्ण, हारावलि आदि। केश प्रसाधन-धम्मिल्ल, केशपब्भार, जटाकलापं सोहिल्लं, चूडालंकार, सीमान्त आदि । परिच्छेद ६. राजनैतिक जीवन ( १६५-१७५ ) राजाओं में आपसी मनमुटाव एवं युद्ध, राजा और प्रजा का सम्बन्ध, राजा की प्रसन्नता एवं क्रोध, राजाओं की प्रभुता, दिनचर्या, मन्त्रि

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