Book Title: Kumarpalcharitrasangraha New Publication of Shrutaratnakar
Author(s): Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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उपलब्ध है वह अपूर्ण, अस्तव्यस्त और किञ्चित् अतिशयोक्तिवाली है, तो भी इस सामग्री पर से गुजरात के किसी दूसरे राजा की अपेक्षा उसका अधिक विस्तृत और प्रमाणभूत इतिहास प्राप्त हो सकता है। गुजरात के बाहर भी किसी पुराने भारतीय राजा का इतना विस्तृत जीवनवृत्त प्राप्त नहीं है । इस सामग्री से उसके कुल, वंश, जन्म, बाल्यावस्था, यौवन, देशाटन, संकटसहन, राज्यप्राप्ति, राजशासन, धर्माचरण आदि बातों का यथार्थ परिचय मिलता है। उसके राज्य के प्रधान पुरुषों, मुख्य प्रजाजनों, धर्मगुरुओं और विद्वानों का परिचय भी उस उपलब्ध सामग्री से मिल सकता है। उसके लोकोपयोगी और धर्मोपयोगी कार्यों की रूपरेखा भी इसमें है । मैं यहाँ उसकी कुछ दिग्दर्शन कराना चाहता हूँ ।
कुमारपाल के जीवन की सामग्री ऐतिहासिक दृष्टि से कुमारपाल के राजजीवन का जो रेखाचित्र मैं खींचना चाहता हूँ उसकी सामग्री प्रमाणभूत और सर्वथा विश्वसनीय है। इस सामग्री का श्रेय प्रायः कुमारपाल के थोड़े या बहुत सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों को है। इसमें मुख्य सूत्रधार हैं कुमारपाल के गुरु और गुर्जर विद्वानों के मुकुटमणि आचार्य हेमचन्द्र । हेमचन्द्राचार्य के व्यक्तित्व और कार्य के विषय में बहुत कुछ कहा जा चुका है। उसका पुन: कथन और पिष्टपेषण अनावश्यक है। इन्होंने 'संस्कृतव्याश्रय' काव्य के अन्तिम पाँच सर्गों में और 'प्राकृतद्व्याश्रय' के आठ सर्गों में कुमारपाल का काव्यमय जीवन चित्रित किया है। हेमचन्द्र का यह चित्रण कुमारपाल के राज्याभिषेक से प्रारम्भ होता है । इसमें ऐतिहासिक घटनाओं का उल्लेख नहीं के बराबर है । फिर भी उसके राजजीवन का रेखांकन करने के लिए पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है। व्याश्रय काव्य में कवित्व की कोई ऊँची उड़ान नहीं है, इसका कारण है ऐसे काव्यों की पद्धति । ऐसे काव्यों में अर्थानुसारी शब्दरचना नहीं होती किन्तु शब्दानुसारी अर्थरचना होती है। जिस प्रकार के शब्दप्रयोग व्याकरण के क्रम में चले आ रहे हैं, उन्होंने उसी प्रकार के शब्दों की रचना के लिए उपयुक्त अर्थो को कुमारपाल के राजजीवन में से चुन लिया और श्लोकबद्ध कर दिया । इतने ही अंशो में इस काव्य का कवित्व है । इसके अतिरिक्त सरसता की दृष्टि से कही जानेवाली कोई विशेष बात उसमें नहीं है । किन्तु हमारे लिए तो प्रस्तुत विषय की दृष्टि से काव्यविभूति की अपेक्षा यह सादी शब्दरचना ही अधिक उपयोगी है ।
हेमचन्द्राचार्य द्वारा वर्णित कुमारपाल का दूसरा वर्णन 'त्रिषष्टि-शलाकापुरुष-चरित्र' के अन्तिम 'महावीरचरित्र' में है। इसकी रचना हेमचन्द्राचार्य ने कुमारपाल की प्रार्थना से की थी और यही उनके जीवन की अन्तिम कृति है।
जैनधर्म स्वीकार करने के पश्चात् कुमारपाल ने जैसा कुछ उसका आचरण किया है उसका बहुत थोड़ा किन्तु सारभूत वर्णन इस ग्रन्थ में है ।
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