Book Title: Kumarpalcharitrasangraha New Publication of Shrutaratnakar
Author(s): Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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कुमारपालप्रतिबोधसङ्क्षपः
इय गुरुवागरियं भरहचरियमायन्निउं मुणइ राया । जइ मह भिक्खा न मुणीण कप्पए रायपिंडो त्ति ॥३८८॥ तत्तो भरहो व्व अहं पि भोयणं सावगाणं वियरेमि । गुरुणा वुत्तं जुत्तं अणुसरिउं उत्तमचरित्तं ॥३८९॥
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६६२७. कुमारपालस्य सत्रागारपौषधशालादिकरणम् ।
अह कारावइ राया कणकोट्ठागारघयघरोवेयं । सत्तागारं गरुयाएँ भूसियं भोयणसहाए ॥३९०॥ तस्सासन्ने रन्ना कारविया वियडतुंगवरसाला । जिणधम्महत्थिसाला पोसहसाला अइविसाला ॥३९१।। तत्थ सिरिमालकुलनहनिसिनाहो नेमिनागअंगरुहो । अभयकुमारो सेट्ठी कओ अहिट्ठायगो रन्ना ॥३९२।। इत्थंतरम्मि कविचक्कवट्रि-सिरिवालरोहणभवेण । बुहयणचूडामणिणा पयंपियं सिद्धवालेण ॥३९३॥ देव-गुरुपूयणपरो परोवयारुज्जओ दयापवरो ।
दक्खो दक्खिन्ननिही सच्चो सरलासओ एसो ॥३९४।। किञ्च
क्षिप्त्वा तोयनिधिस्तले मणिगणं रत्नोत्करं रोहणो, रेण्वाऽऽवृत्य सुवर्णमात्मनि दृढं बद्ध्वा सुवर्णाचलः । क्ष्मामध्ये च धनं निधाय धनदो बिभ्यन् परेभ्यः स्थितः; किं स्यात् तैः कृपणैः समोऽयमखिलार्थिभ्यः स्वमर्थं ददन् ॥३९५॥ 20 ता जुत्तं देव ! कयं तुमए जं इत्थ धम्मठाणम्मि । अभयकुमारो सेट्ठी एसो सव्वेसरो विहिओ ॥३९६।। घय-कूर-मुग्ग-मंडग-वंजण-वडयाइकयचमक्कारं । सक्कारपुव्वगं सावयाण सो भोयणं देइ ॥३९७॥ वत्थाई पसत्थाई कुडुंबनित्थारणत्थमत्थं च । एवं सत्तागारं कयं नरिंदेण जिणधम्मे ॥३९८।।
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