Book Title: Kumarpalcharitrasangraha New Publication of Shrutaratnakar
Author(s): Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 363
________________ २८४ कुमारपालचरित्रसङ्ग्रहः ६६३०. शुभभावनोपदेशः । सुहभावणापरिगओ जीवदयं पालिङ खमइ जीवो । सो असुहभावणाए गहिओ पावं न किं कुणइ ॥४१९।। वंझं बिति जहित्थ सत्थपढणं अत्थावबोहं विणा, सोहग्गेण विणा मडप्पकरणं दाणं विणा संभमं । सब्भावेण विणा पुरंधिरमणं नेहं विणा भोअणं; एवं धम्मसमुज्जयं पि विबुहा ! सुद्धं विणा भावणं ॥४२०॥ सत्तमनरयनिमित्तं कम्मं बद्धं पसन्नचंदेण । असुहाइ भावणाए सुहाइ पुण केवलं पत्तं ॥४२१॥ 10 15 [ भावनाविषयेऽत्र प्रसन्नचन्द्रादीनां कथानकान्यनुसन्धेयानि ।] अह पुच्छइ कुमरनराहिराउ, मणमक्कडनियमणसंकलाउ । कह कीरहि बारह भावणाउ, तो अक्खइ गुरु घणगहिरनाउ ॥४२२।। 88३०. भावनास्वरूपवर्णनम् । तं जहाचलु जीविउ जुव्वणु धणु सरीरु, जिम्व कमलदलग्गविलग्गु नीरु । अहवा इहत्थि जं कि पि वत्थु, तं सव्वु अणिच्चु हहा धिरत्थु ॥४२३॥ पिय माय भाय सुकलत्तु पुत्तु, पहु परियणु मित्तु सिणेहजुत्तु । पहवंतु न रक्खइ को वि मरणु, विणु धम्मह अन्नु न अत्थि सरणु ॥४२४॥ राया वि रंकु सयणो वि सत्तु, जणओ वि तणउ जणणि वि कलत्तु । इह होइ नडु व्व कुकम्मवंतु, संसाररंगि बहुरूवु जंतु ॥४२५॥ एकल्लउ पावइ जीवु जम्मु, एकल्लउ मरइ विढत्तकम्मु । एकल्लउ परभवि सहइ दुक्खु, एकल्लउ धम्मिण लहइ मुक्खु ॥४२६॥ जहिं जीवह एउ वि अन्नु देहु, तहिं किं न अन्नु धणु सयणु गेहु । जं पुण अणन्नु तं एक्कचित्तु, अज्जेसु नाणु दंसणु चरित्तु ॥४२७॥ वस-मंस-रुहिर-चम्म-ऽट्ठिबद्ध, नवछिड्डु झरंत मलावणद्ध । असुइसरूवनर-थीसरीर, सुइबुद्धि कह वि मा कुणसु धीर ॥४२८॥ 25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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