Book Title: Kumarpalcharitrasangraha New Publication of Shrutaratnakar
Author(s): Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 404
________________ विशेषनाम्नामकाराद्यनुक्रमणिका । ३२५ झ WW ३०२ २६९ १७५ झोलिकाविहार ५८, २०४, २३८ | दक्षिण [ देश] ११८ दड्डक्क [ राजकुमार] ८३ ठाणय दत्त [ नृप] २०२ ठाणयपगरण [ग्रन्थ] २५८ | दधिस्थलिक | ४, ५, २१, २२, २३, दधिस्थली | [ग्राम] ९४, ९५, ९६ डाहलदेश ५७ | दधिस्थलिका डाहलदेशीय २०२, २३२, २३८ | दधिस्थलीका डांगुरिक | [ ग्राम] ६, २२४, ९८ | दयावर्द्धन [गुरु] २१२ डांगुरिका | दशपुर [ देश] ११, ३३, १०४, १०५ डिंडुयाणय [पुर] २५६ | दशरथ [ नृप] ७४, २३७ दशार्ण [ देश] १२०, ३०६ तारणदुर्ग २४५ दसारमंडव २७४ तिलङ्ग [ देश] ११८, १७८, २४२ दाशार्ह तिविहार [ चैत्य] २७० दीप (ढिल्ली ?) [नगरी] २१० तिहुणविहार [ चैत्य] | दीपक [ द्विज] तिहुयणपाल [ नृप] २४२, २५२ | दुद्धिलिका [ग्राम] ९५ तिहुणसिंह २२७, २२०, २२४ दुर्लभराज | [ नृप] ८४, २५२ तुम्बवन ३०५ | दुल्लहराअ तुरुष्क [जाति] देवकी १३३ त्रिपुरा १७५ | देवसूरि त्रिपुरुष [जटाधारी] | देवाचार्य २९८ त्रिपुरुष [ प्रासाद] ४, ९५ देवचन्द्र ४३, ४४, ५४, त्रिपुरुषमठ १७०, १८९, २२१, त्रिभुवन,०-देव,-०पाल ३, २१, २२ | | देवचन्द्राचार्य | २३३, २३९, २४०, ३०६ -०पालदेव [ नृप] ७२, ७६, ९४, | देवेन्द्रसूरि १७३, १७४ ९५, १२३, १७९, २१४ | देवप्पसाय २५२ त्रिभुवनपालविहार १९४ | | देवपत्तन [ नगर] १, ४८, ८६, १७७, त्रिभुवनस्वामिनी २२२, २४१ २१९, २२३ त्रिषष्टिचरित ५०, १२४] | देवपाल [ राजकुमार] ९४ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित | [ ग्रन्थ ] १८१ | देवप्रसाद [ राजकुमार] ३, २१ देवभद्र [गणि] २१२ १२३ ४२, २३५ | देवचन्द्रसूरि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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