Book Title: Kumarpalcharitrasangraha New Publication of Shrutaratnakar
Author(s): Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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कुमारपालप्रतिबोधसङ्क्षेपः
§§७. हेमचन्द्रसूरेर्जन्मादिवृत्तान्तः ।
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भयवं ! इहत्थि हत्थि व्व मोढकुलविंझसंभवो भो । कयदेवगुरुजणच्चो चच्चो नामा पहाणवणी ||१४१ || निम्मलकुलसंभूया भूरिगुणाभरणभूसियसरीरा । तस्सत्थि गेहिणी चाहिणि त्ति सा होइ मह बहिणी || १४२ ॥ जीए विमलं सीलं दट्टु लज्जाए चंदमा निच्चं । चरमजलहिम्मि मज्जइ कलंकपक्खालणत्थं व ॥ १४३॥ ताण तणओ एसो निरुवमरूवो पगिट्ठमइविहवो । भुवणुद्धरणमणोहरचिचइओ चंगदेवो त्ति || १४४॥ गब्भावयारसमए इमस्स जणणीए सुविणए दिट्ठो । नियगेहे सहयारो समुग्गओ वुड्ढमणुपत्तो ॥ १४५॥ जा पुप्फ-फलारंभी तत्तो मुत्तूण मंदिरं मज्झ । अन्नत्थ महारामे मणाभिरामे इमो पत्तो ॥ १४६॥ छायाए पल्लवेहिं कुसुमेहिं फलेहिं तत्थ पवरेहिं । बहुजणाणं एसो उवयारं काउमाढत्तो ॥ १४७॥। गब्भगए वि इमस्सि इह देसे नट्ठमसिवनामं पि । तह अणभिन्नो जाओ लोओ दुब्भिक्खदुक्खस्स ॥१४८॥ परचक्क - चरड- चोराइविद्दवा दूरमुवगया सव्वे । न फुरंति घूयपमुहा मेहच्छन्ने वि दिणनाहे ॥ १४९॥ इय तस्स जम्मदियहे जायाइं दिसामुहाई विमलाई । देव- गुरुवंदणेण धम्मत्थीणं मणाई व ॥ १५० ॥ हरिसजणणो जणाणं सुयणो व्व समीरणो समुल्लसिओ । रयपसमणं निवडियं गुरूण वयणं व गंधजलं ॥१५१॥ भवणम्मि कुसुमवुट्ठी सुसामितुट्ठि व्व सेवए जाया । कव्वगुणो व्व सहियए फुरिओ गयणम्मि तूरवो ॥१५२॥ एसो परिओसकरो बालत्तणओ वि अमयघडिओ व्व । रयणं व कराओ करं संचरिओ सयललोयस्स ॥१५३॥
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