Book Title: Kumarpalcharitrasangraha New Publication of Shrutaratnakar
Author(s): Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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२७१
कुमारपालप्रतिबोधसक्षेपः
जो पेच्छिऊण पावंति पाणिणो मणुय-तियससिद्धिसुहं । करुणाकुलभवणाणं ताण गुरूणं कुणह सेवं ॥२७१।। दमगो वि पुव्वजम्मे जं महिवइनिवहनमियपयकमलो । जाओ संपइराओ तं गुरुचलणाण माहप्पं ॥२७२।।
[अत्र सम्प्रतिनृपकथा परिकथिता ।]
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६६१९. सम्प्रतिनृपतेरिव कुमारपालस्य रथयात्रोत्सवकरणम् ।
इय संपनिवचरियं निसामियं हेमसूरिपपासे ।
राया कुमारवालो तहेव कारवइ रहजत्तं ॥२७३।। तं जहा
नच्चंतरमणिचक्कं विसालबलिथालसंकुलं राया । कुणइ कुमारविहारे सासयअट्ठाहियामहिमं ॥२७४॥ नट्ठट्टकम्ममट्ठ वि दिणाइं सयमेव जिणवरं एहविउं । गुरुहेमचंदपुरओ कयंजली चिट्ठइ नरिंदो ।।२७५।। अट्ठमदिणम्मि चित्तस्स पुण्णमाए चउत्थपहरम्मि । नीहरइ जिणरहो रविरहो व्व आसाओ पयडंतो ॥२७६।। ण्हवियविलित्तं कुसुमोहअच्चियं तत्थ पासजिणपडिमं । कुमरविहारदुवारे महायणो ठवइ रिद्धीए ॥२७७|| तूररवभरियभवणो सरहसनच्चंतचारुतरुणिगणो । सामंतमंतिसहिओ वच्चइ निवमंदिरम्मि रहो ॥२७८॥ राया रहत्थपडिमं पढेंसुयकणयभूसणाईहिं । सयमेव अच्चिउं कारवेइ विविहाई नट्टाई ॥२७९।। तत्थ गमिऊण रयणिं नीहरिओ सीहवारबाहिम्मि । ठाइ पवंचियधयतंडवम्मि पडमंडवम्मि रहो ॥२८०।। तत्थ पहाए राया रहजिणपडिमाइ विरइउं पूयं । चउविहसंघसमक्खं सयमेवारत्तियं कुणइ ।।२८१॥
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