Book Title: Kumarpalcharitrasangraha New Publication of Shrutaratnakar
Author(s): Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
View full book text ________________
5
10
15
20
२७६
25
काऊण पायलेवं गयणे सो भमइ नमइ तित्थाई । सुइ सुरट्ठनिवासी भिक्खू नागज्जुणो एवं ||३३१॥ ६६२३. नागार्जुनभिक्षुवर्णनम् ।
Jain Education International
कुमारपालचरित्रसङ्ग्रहः
सो पत्थइ पालित्तं पयच्छ ! नियपायलेवसिद्धि मे । गिve मह कणयसिद्धिं तत्तो पालित्तओ भइ ||३३२|| निक्किचणस्स किं कंचणेण किं चत्थि मे कणयसिद्धी । तुह पायलेवसिद्धिं च पावहेउ त्ति न कहेमि ||३३३|| तो कयसावयरूवेण भिक्खुणा आगयस्स गिरिनयरे । गुरुणो गुरुभत्तीए जलेण पक्खालिया चलणा ||३३४|| पयपक्खालणसलिलस्स गंधओ ओसहीण नाऊण । सत्तुत्तरं सयं तेण पायलेवो सयं विहिओ ||३३५|| तव्वसओ गयणे कुक्कुडो व्व उप्पडइ पडइ पुर्ण भिक्खू । तो कहइ जहावित्तं गुरुणो तेणावि तुट्ठेण ||३३६॥ भणिओ भिक्खू तंदुलजलेण कुरु पायलेवमेयं ति । कुणइ तह च्चिय भिक्खू जाया नहगमणलद्धी से ||३३७|| पालित्तयस्स सीसो व्व कुणइ नागज्जुणो तओ भतं । नेमिचरियाणुगरणं सव्वं पि कयं इमं तेण ||३३८ || तं सोउं भत्तिपरो नरेसरो नेमिनाहनमणत्थं । गिरिमारुहिउं वंछइ तो भणिओ हेमसूरीहिं ॥ ३३९|| नरवर ! विसमा पज्जा अओ तुमं चिट्ठचडउ सेसजणो । लहहिसि पुन्नं संबो व्व भावओ इह ठिओ वि तुमं ||३४०|| तो रन्ना पट्टविया पहुणो पूया पहाणजणहत्थे । तत्थ ठिएणावि सयं गुरुभत्तीए जिणो नमिओ || ३४१ || अह जिणमहिमं काउं अवयरिए रेवयाओ सयलजणे । चलिओ कुमारवालो सत्तुंजयतित्थनमणत्थं ॥३४२॥
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426