Book Title: Kumarpalcharitrasangraha New Publication of Shrutaratnakar
Author(s): Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 348
________________ २६९ 10 कुमारपालप्रतिबोधसक्षेपः नयवंतसिरोमणिणो विवेयमाणिक्करोहणगिरिस्स । सच्चरियकुसुमतरुणो बाहडदेवस्स मंतिस्स ॥२४७।। जयपायडवायडकुलगयणालंकारचंद-सूराणं । गग्गतणयाण तह सव्वदेव-संबाण सेट्ठीणं ॥२४८।। दाऊण य आएसं कुमरविहारो कराविओ एत्थ । अट्ठावओ व्व रम्मो चउवीसजिणालओ तुंगो ।।२४९।। कणयामलसारपहाहिं पिंजरे जम्मि मेरुसारिच्छे । रेहंति केउदंडा कणयमया कप्परुक्ख व्व ॥२५०॥ स्तम्भैः कन्दलितेव काञ्चनमयैरुत्कृष्टपट्टांशुकोल्लोचैः पल्लवितेव तैः कुसुमितेवोच्चूलमुक्ताफलैः । सौवर्णैः फलितेव यत्र कलशैराभाति सिक्ता सती; श्रीपार्श्वस्य शरीरकान्तिलहरीलक्षेण लक्ष्मीलता ॥२५१।। पासस्स मूलपडिमा निम्मविया जत्थ चंदकंतमई । जणनयणकुवलउल्लासकारिणी चंदमुत्ति व्व ॥२५२।। अन्नाओ वि बहुयाओ चामीयर-रुप्प-पित्तलमईओ । लोयस्स कस्स न कुणंति विम्हयं जत्थ पडिमाओ ॥२५३॥ संपइ देहसरूवं मुणिऊण समुल्लसंतसुहभावो । तित्थयरमंदिराइं सव्वत्थ वि कारविस्सामि ॥२५४।। तत्तो इहेव नयरे कारविओ कुमरवालदेवेण । गुरुओ 'तिहुयणविहारो' गयणतलुत्तंभणक्खंभो ॥२५५।। कंचणमयआमलसार-कलस-केऊप्पहाहिं पिंजरिओ । जो भन्नइ सच्चं चिय जणेण 'मेरु' त्ति पासाओ ॥२५६॥ जस्सि महप्पमाणा सव्वुत्तमनीलरयणनिम्माया । मूलपडिमा निवेणं निवेसिया नेमिनाहस्स ।।२५७।। कुसुमोहअच्चिया जा जणाण काउं पवित्तयं पत्ता । गंगातरंगरंगंतचंगिमा सहइ जउण व्व ॥२५८॥ वढ्ताण जिणाणं रिसहप्पमुहाण जत्थ चउवीसा । पित्तलमयपडिमाओ काराविया देवउलियासु ॥२५९।। 15 20 25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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