Book Title: Kumarpalcharitrasangraha New Publication of Shrutaratnakar
Author(s): Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
View full book text ________________
5
10
15
20
२५८
Jain Education International
कुमारपालचरित्रसङ्ग्रहः
तत्तो पज्जुनगुरू वियरंतो सयलसंघपरिओ स । सुत्तत्थपयडणपरो परोवयारं चिरं कुणइ ॥ १२९ ॥ सत्तसुहो सुइमुहओ वाइज्जंतो समग्गलोएण । ठाणयपगरणरूवो जस्सऽज्ज वि फुरइ जसपडहो ॥१३०॥ तस्स गुणसेणसूरी सीसो वरसंजमुज्जओ जाओ । जस्स गुण च्चिय बाणा अंतररिउवग्गनिग्गहणे ॥ १३१ ॥ सीसो खमग्गलग्गो तस्सासी देवचंदसूरि त्ति । चंदेण व दियराएण जेण आनंदियं भुवणं ॥ १३२ ॥
✡
कयसुकयकुमुयबोहा चैउरबठरप्पमोयसंजणणी । संतिजिणचरित्तकहा जुण्ह व्व वियंभिआ जत्तो ॥१३३॥ जे ठाणएसु ठविया पज्जुन्नमुणीसरेण धम्मदुमा । काऊण ताण विवइं ते जेण लहाविआ वुद्धिं ॥१३४॥ जस्स चलणारविंदं चरित्तलच्छीविलासवासहरं । मुणिभमरेहिँ अमुक्कं जिणमयमयरंदलुद्धेहिं ॥ १३५॥ सो विहरंतो महीमंडलम्मि खंडियपयंडभावरिऊ । सयलभुवणेक्कबंधू धंधुक्कयं पुरवरं पत्तो ॥ १३६ ॥ सो तत्थ पणमणत्थं समागयाणं जणाण पउराणं । संसारासारत्तणपयासिणि देसणं कुणइ ॥ १३७॥ तं सोउं संविग्गो सरीरसुंदेरविजियसुरकुमरो । एक्को वणियकुमारो कयंजली भणिउमाढत्तो ॥ १३८ ॥ भयवं ! भवण्णवाओ जम्म- जरा - मरणलहरिहीरंतं । मं नित्थारसु सुचारित्तजाणवत्तपयाणेण ॥१३९॥
गुरुणा वुत्तं बालय ! किं नामो कस्स वा सुओ तं स । तो तस्स माउलेणं पयंपिअं नेमिनामेण ॥१४०॥
★ श्लोक - १३३ मध्ये चउरबठर० इति पाठोऽस्ति आचार्यवर्य श्रीदेवसूरिरचितप्राकृतभाषानिबद्ध श्रीशान्तिनाथचरित्रे चउरचओर० इति पाठोऽस्ति परं संतिजिणचरित्तकहा चउरबठरेषु सर्वेषु प्रमोदसंजननीति चउरबठर० पाठोऽपि सङ्गतोऽस्ति ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426