Book Title: Kumarpalcharitrasangraha New Publication of Shrutaratnakar
Author(s): Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
View full book text ________________
२५६
कुमारपालचरित्रसङ्ग्रहः तस्सि चरिखित्तेसुं नरवइणा वावियाई धन्नाइं । तेसिं दंसणहेउं कयावि राया विणिक्खंतो ॥१०१।। तम्मि समए करिसरोहिं धन्नमज्झाओ पुव्वमुवखणिउं । पुंजीकएसु निष्फलतणेसु पज्जालिओ जलणो ॥१०२॥ तत्थ जलणेण डझंतविग्गहं गब्भनिन्भरं भुयगि । दटुं संविग्गेणं रन्ना परिभावियं एयं ॥१०३।। अहह इमो घरवासो परिहरणिज्जो विवेयवंताणं । बहुजीवविणासकरा आरंभा जत्थ कीरति ॥१०४।। एवं संविग्गमणो राया नियमंदिरम्मि संपत्तो । हक्कारिऊण पुच्छइ एगते सावयं एगं ॥१०५।। संपइ सिरिदत्तगुरू गुणवंतो कत्थ विहरइ पएसे । सो कहइ डिंडुयाणयपुरम्मि मुणिपुंगवो अत्थि ॥१०६।। तो राया रयणीए कस्स वि अनिवेइऊण निक्खंतो । तुरयम्मि समारुहिऊण डिंडुयाणयपुरे पत्तो ।।१०७॥ सिरिदत्तगुरुं नमिऊण तस्स कहिऊण निययवुत्तंतं । जंपइ संपइ काउं अणुग्गहं देहि मह दिक्खं ॥१०८।। गुरुणा वुत्तं जुत्तं उत्तमसत्तस्स तुज्झ नरनाह ! । रज्जं तणं व मुत्तुं करेसि जं संजमग्गहणं ॥१०९।। न हि संजमाउ अन्नो संसारुच्छेयकारणं अत्थि । नवजलहरं विणा किं निव्वडइ दवानलं को वि ॥११०।। रन्ना अणप्पमुल्लं एक्कं एक्कावलिं समप्पेउं । जिणधम्मनिम्मलमणा पयंपिआ सावया एवं ॥१११।। कारवह जिणाययणं इमीए एक्कावलीइ मुल्लेण । तेहि वि तह त्ति पडिवज्जिऊण तं झत्ति कारवियं ॥११२।। तं अत्थि तत्थ अज्ज वि चउवीसजिणालयं जिणाययणं । पुन्नं व मुत्तिमंतं जसभद्दनिवस्स जं सहइ ॥११३॥ रन्ना पुण पडिवन्ना सिरिदत्तगुरुस्स चलणमूलम्मि । अंतररिउवहदक्खा दिक्खा निसियासिधार व्व ॥११४।।
15
20
25
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426