Book Title: Kumarpalcharitrasangraha New Publication of Shrutaratnakar
Author(s): Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 345
________________ २६६ कुमारपालचरित्रसङ्ग्रहः [अत्र वेश्याव्यसनविपाकप्रतिपादिका अशोककथा कथिता ।] रन्ना भणियं-भयवं ! वेसासु मणं अहं पि न करिस्सं । गुरुणा भणियं-भवउ उत्तमपुरिसस्स जुत्तमिणं ॥२१८।। 5 10 ६६१३. सूरिकृतो मद्यपाननिषेधोपदेशः, राज्ञस्तस्यापि परिहरणम् । संपयं मज्जवसणदोसे सुणसु नच्चइ गायइ पहसइ पणमइ परिभमइ मुयइ वत्थं पि । तूसइ रूसइ निक्कारणं पि मइरामउम्मत्तो ।।२१९॥ जणणि पि पिययमं पिययमं पि जणणि जणो विभावतो । मइरामएण मत्तो गम्मागम्मं न याणेइ ॥२२०॥ न हु अप्पपरविसेसं वियाणए मज्जपाणमूढमणो । बहु मन्नइ अप्पाणं पहुं पि निब्भच्छए जेण ॥२२१।। वयणे पसारिए साणया विवरब्भमेण मुत्तंति । पहपडियसवस्स व दुरप्पणो मज्जमत्तस्स ॥२२२।। धम्मत्थ-कामविग्घं विहणियमइ-कित्ति-कंति-मज्जायं । मज्ज सव्वेसि पि हु भवणं दोसाण किं बहुणा ? ॥२२३॥ जं जायवा ससयणा सपरियणा सविहवा सनयरा य । निच्चं सुरापसत्ता खयं गया तं जए पयडं ॥२२४॥ 15 [अत्र मद्यपानदोषदर्शिका यादवनाशकथा वर्णिता ।] एवं नरिंद ! जाओ मज्जाओ जायवाण सव्वक्खओ । ता रन्ना नियरज्जे मज्जपवित्ती वि पडिसिद्धा ॥२२५।। 20 १४. सूरेश्चौर्यव्यसनपरिहारोपदेशः, राजस्तन्निवारणम् । मृतधनापहरणस्यापि निषेधः । इण्हि नरिंद ! निसुणसु कहिज्जमाणं मए समासेणं । वसणाण सिरोरयणं व सत्तमं चोरियावसणं ॥२२६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.


Page Navigation
1 ... 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426