Book Title: Kumarpalcharitrasangraha New Publication of Shrutaratnakar
Author(s): Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 339
________________ २६० 10 कुमारपालचरित्रसङ्ग्रहः संपइ इमस्स चित्तं न रमइ अन्नत्थ वज्जिउं धम्म । माणससरम्मि मुत्तुं हंसस्स व पल्ललजलेसु ॥१५४॥ गुरुणा वुत्तं जुत्तं जं कुणइ इमो चरित्तपडिवत्तिं । जेण सो परमत्थो जणणीदिट्ठस्स सुविणस्स ॥१५५।। गहिऊण वयं अवगाहिऊण नीसेससत्थपरमत्थं । तित्थकरो व्व एसो जणस्स उवयारओ होही ॥१५६।। तत्तो इमस्स जणयं चच्चं नामेण भणह तो तुब्भे । जह चंगदेवमेयं वयगहणत्थं विसज्जेइ ॥१५७|| सो बहुसिणेहजुत्तो बहुं पि भणिओ विसज्जइ न पुत्तं । तत्तो पुत्तो वि दढं कउज्जमो संजमग्गहणे ।।१५८।। माउलयअणुमयं गिण्हिऊण ठाणंतरम्मि संचलिओ । गुणगुरुणा सह गुरुणा संपत्तो खंभतित्थम्मि ॥१५९।। तत्थ पवन्नो दिक्खं कुणमाणो सयलसंघपरिओसं । सो सोममुहो सोमो व्व सोमचंदो त्ति कयनामो ॥१६०।। थेवेण वि कालेण काऊणं तवं जिणागमुद्दिटुं । गंभीरस्स वि सुयसागरस्स पारंगओ एसो ॥१६१।। दूसमसमयअसंभवगुणोहकलिओ विभाविउं हियए । सिरिदेवचंदगुरुणा एसो गणहरपए ठविओ ||१६२।। हेमसमच्छविदेहो चंदो व्व जणाण जणियआणंदो । तत्तो इमो पसिद्धो नामेणं हेमचंदो त्ति ॥१६३।। निच्चं सहावउ च्चिय समग्गलोओवयारकयचित्तो । सो देवयाइ वुत्तो विहरंतो विविहदेसेसु ॥१६४।। गुज्जरविसयं मुत्तुं मा कुणसु विहारमन्नदेसेसु । काहिसि परोवयारं जेणित्थ ठिओ तुमं गरुयं ॥१६५॥ तो तीए वयणेणं देसंतरविहरणाउ विणियत्तो । चिट्ठइ इहेव एसो पडिबोहंतो भवियवग्गं ॥१६६।। बुहयणचूडामणिणो भुवणपसिद्धस्स सिद्धरायस्स । संसयपएसु सव्वेसु पुच्छणिज्जो इमो जाओ ॥१६७॥ 15 20 25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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