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कदाचिते होती है, कदाचित नहीं होती है तथा जिसके अप्रत्याख्यान क्रिया होती है उसके पारिग्रहिकी क्रिया नियम से होती है। जिस जीव के पारिग्रहिकी क्रिया होती है उसके मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया कदाचित् होती है, कदाचित नहीं होती है तथा जिसके मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया होती है उसके पारिग्रहिकी क्रिया नियम से होती है।
जिस जीव के मायाप्रत्ययिकी क्रिया होती है उसके अप्रत्याख्यान क्रिया कदाचित होती है, कदाचित् नहीं होती है तथा जिसके अप्रत्याख्यान क्रिया होती है उसके मायाप्रत्ययिकी किया नियम से होती है। जिस जीव के मायाप्रत्यायिकी क्रिया होती है उसके मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया कदाचित् होती है, कदाचित नहीं होती है तथा जिसके मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया होती है उसके मायाप्रत्ययिकी क्रिया नियम से होती है ।
जिस जीव के अप्रत्याख्यान क्रिया होती है उसके मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया कदाचित् होती है, कदाचित नहीं होती है तथा जिसके मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया होती है उसके अप्रत्याख्यान क्रिया नियम से होती है । (देखें क्रमांक ६५८)
समदृष्टि नारकी, भवनपति-वाणव्यंतर-ज्योतिषी-वैमानिक देवों के आरंभिकी क्रियापंचक की प्रथम की चार क्रियाएँ नियम से होती हैं तथा मिथ्याष्टियों को पाँचों क्रियाएँ होती है। एकेन्द्रिय तथा विकलेन्द्रिय जीवों को नियम से पाँचों क्रियाएँ होती है। तिर्य च
चेन्द्रिययोनिक जीवों को प्रथम की तीन क्रियाएँ नियम से होती हैं, मिथ्यादृष्टि तिर्यंचपंचेन्द्रिययोनिक जीवों को पाँचों क्रियाएँ नियम से होती है, अविरत समदृष्टि तिर्येच पंचेन्द्रिययोनिक जीवों को प्रथम की चार क्रियाएँ नियम से होती हैं तथा देश विरत समदृष्टि तिर्यञ्च-पंचेन्द्रिययोनिक जीवों को प्रथम को तीन क्रियाएँ नियम से होती है । मिथ्यादृष्टि मनुष्य के नियम से पाँच क्रियाएँ होती हैं, अविरत सम्यग्दृष्टि मनुष्य को चार, देशविरत सम्यग्दृष्टि को तीन, प्रमत्तसंयत मनुष्य को आरम्भिकी और मायाप्रत्ययिकी-दो क्रियाएँ होती हैं, सराग अप्रमत्त मनुष्य को केवल मायाप्रत्ययिकी क्रिया होती है। वीत. राग संयत मनुष्य को आरंभिकी क्रियापंचक को कोई क्रिया नहीं होती है।
___ पाँचों ही चारित्र वाले जीवों के मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया नहीं होती है, पारिग्रहिकी क्रिया भी नहीं होती है, अप्रत्याख्यानक्रिया भी नहीं होती है। सामायिक चारित्र, छेदोपस्थापनीय, परिहारविशुद्ध चारित्र वाले जीवों को प्रमत्तयोग से आरम्भिकी क्रिया होती है तथा मायाप्रत्ययिकी क्रिया सराग अप्रमत्त अवस्था में भी होती है। सूक्ष्मसंपराय चारित्र वाले जीवों के केवल मायाप्रत्ययिकी क्रिया होती है ! यथाख्यातचारित्र वाले जीवों के आरम्भिकी पञ्चक की कोई क्रिया नहीं होती है। यथाख्यातचारित्र वाले कोई एक जीव के योगप्रत्यय से केवल ऐपिथिकी क्रिया होती है, कोई एक जीव के योग का अभाव होने से ऐपिथिकी क्रिया नहीं होती है।
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