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(१५) गोजी संखेसरोजी पंचासरोजी गिरनारजी तथा मार्ग में सहरांरा गावांरा सर्व देहरा जुहास्या इभांत सर्व ठिकांणे मंदिर २ दीठ चढापो कीयो
(१६) मुकुट कुंडल हार कंठी भुजबंध कडा श्रीफल नगदी चंद्रवा पुठिया इत्यादिक मोटा तीर्थमाथे चढावतो घणो हुवो गहणो सर्व जडाऊ हो सर्व
(१७) ठिकांणे लाहण जीमण कीया सहसावनरा पगथ्या कराया उठै सूं सात कोस ठरै गांव सूं श्रीसिद्धगिरिजी मोत्यां सूं बधायनैं पालीतांणै बड़ा हंगाम
(१८) सूं गाजा बाजतां तलेटी रो मंदिर जुहार डेरा दाखल हुवा दूजे दिन मिती वैशाख सुदि १४ दिने शांतिक पुष्टिक हुतां श्रीसिद्धगिरिजी पर्वत पर चढ्या
(१९) श्रीमूलनायक चौमुखोजी खरतरवसीरा तथा दूजी वस्यां सर्व जुहारी मास १ रह्या उठै चढापो घणो हुवो अढाई लाख जात्री भेलो हुवो। पू
(२०) रब मारवाड मेवाड गुजरात ढूंढाड़ हाडोती कछभुज मालवो दक्षण सिंध पंजाब प्रमुख सांरा उठै लहण १) सेर १ मिश्री घर दीठ दीवी जीम
(२१) ण ५ संघव्यां मोटा कीया। जीमण १ बाई बीजू कीयो और जीमण पिण घणा हुवा | श्रीचौमुखाजी रैबार आला में गोमुखयक्ष चक्रेश्व
(२२) री री प्रतिष्ठा करायनें पधराई चौमुखैजी रो सिखर सुधरायो १ नवो मंदिर करावण वास्ते नींव भराई । जूना मंदिरां रा जीर्णोद्धार कराया जन्म
(२३) सफल की अथ च गुरुभक्ति इण मुजब कीनी ११ श्रीपूज्यजी हा ५१०० साधु साध्व्यां प्रमुख चोरासी गच्छाधिकारी त्यां प्रथम स्वगच्छ
(२४) रा श्रीपूज्यजी री भक्ति सांचवी हजार पांच रो नकद माल दीयो दूजो खरच भर दीयो अनुक्रमे सारा दूजा श्रीपूजां री साधु साध्वीयां री भक्ति
(२५) साचवी आहार पाणी गाडियांरो भाड़ो तंबू चीवरो ठांणे दीठ ४) रुपया दीया नगद दुसालावालांनैं दुसाला दीया सेवग ५०० हा जिणांनैं जण दीठ
(२६) २१) इकीस रोट्यां खरच न्यारो मोजा पहरण रा ओषध खरची सारू रुपया चाहीज्यां जिणांनैं दीया पछै भ० । श्रीजिनमहेन्द्रसूरिजी पासै सिंघ
(२७) वियां २१ संघमाला पहरी जिणमै माला २ गुमास्तै सालगरांम महेसरी नै पहराई पछै बड़ा आडंबर सूं तलेटी रो मंदिर जुहार डेरा दाखल हुवा
(२८) जाचकां नैं दांन दीयो पछै जीमण कीयो साधर्म्यं नै सिरपाव दीया राजा डेरे आयो जिणनैं सिरपाव हाथी दीया दूजां मार्ग में राजवी न
(२९) बाब प्रमुख आया डेरै जिणांनै राज मुजब सिरपाव दीया श्रीमूलनायकजी रै भंडार रै ताला ३ गुजरातियां रा हा सो चौथो तालो संघव्यां आ
(३०) परो दीयो सदावरत सरू देई जैसा २ मोटा काम करया पछै संघ कुसलषेम सूं अनुक्रमें राधनपुर आयो उठै अंगरेज श्रीगोडी
(३१) जी रा दरसण करण नैं आयो उठै पांणी नहीं थो गैबाऊ नदी नीसरी श्रीगोडीजी नैं हाथी रै होदै विराजमान कर संघ नैं दरसण दि० ७
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