Book Title: Khartargaccha Pratishtha Lekh Sangraha
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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श्री पूज्यजीमहाराज श्री १०८ श्रीजिनसिद्धिसूरीजी बीकानेर वालों के करकमलों से हुई। यह मंदिर जी जौहरी सेठ भूरालाल गोकलचंद पुंगलिया जयपुर निवासी ने अपने द्रव्य से करवाया। शुभंभवतु।
(२५२७) पादुका - युगल
॥ संवत् १९५८ का मिति माघ सुदि १३ गुरुवासरे जयपुर नगरवास्तव्य बृहत्खरतरभट्टारक गच्छे उ। तिलकधीरगणि उ । नेमिचंद्र इति नामकौ तत्शिष्य पं । प्र । लक्ष्मीचन्द्रगणि पं० ज्ञानलाभ पं । सुंदरलालेन गुरुचरणकमल प्रतिष्ठा कारापितं ॥ श्री ॥ जंगमयुगप्रधान भट्टारक श्री १००८ श्री श्री श्री श्रीजिनकीर्त्तिसूरि विजयराज्ये ॥ जं। यु। प्र । भट्टा० । श्री १०८ श्री श्री श्री श्रीजिनचन्द्रसूरि प्रतिष्ठितं ।
( २५२८ ) शिलालेखः
सं० १९५९ शाके १८२४ प्रवर्त्तमाने ज्येष्ठ मासे शुक्लपक्षे चतुर्दशी १४ तिथौ गुरुवासरे अजीमगंज वास्तव्य दुधेड़िया गोत्रीय बाबू बुधसिंहजी रायबहादुर बाबू विजयसिंहेनायं शाला उ० हितवल्लभजिद्गणी तस्योपरि कारापिता
(२५२९ ) हितवल्लभगणि-पादुका
सं० १९५९ शाके १८२४ ज्येष्ठ वदि १४ तिथौ गुरुवासरे श्रीजिनभद्रसूरिशाखायां म० श्रीदानसागरजिद्गणि तत्शिष्य उ० श्रीहितवल्लभजिद्गणिनां पादुका
(२५३० ) महावीर:
सं० १९५९ मि० फा० सु० ५ इदं श्रीमहावीरबिंबं कारापितं सेठ सराचंद प्र० भट्टारक जिनचंद्रसूरिभिः । (२५३१ ) शिलालेख:
सं० १९५९ जीर्णोद्धार प्रशस्ति गुरांजि हेमचंद्र कर्मचंद्र विनयचंद्र चौमुख टुंक अद्भुतनाथ मंदिर सेठ जीतमल हजारीमल चंपालाल गोलछा जैसलमेर वाला हस्ते चुनीलाल...
(२५३२) जिनकुशलसूरि- पादुका
सं० १९६० मि। आ । ३ श्रीजिनकुशलसूरीणां चरणपादुका प्रति० श्री..
(२५३३) जिनदत्तसूरि-पादुकाः
संवत् १९६१ का वर्षे मिति माघ सुदि ५ गुरुवासरे श्री जं० युगप्रधान जगद्दूड़ामणि दादा साहिब
२५२७. मोहन बाड़ी, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६६९
२५२८. रेल दादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०४८
२५२९. रेल दादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०४९
२५३०. आदिनाथ जिनालय, कटरा, अयोध्याः पू० जै०, भाग २, लेखांक १६४०
२५३१. खरतरवसही, शत्रुंजय: भँवर० (अप्रका० ), लेखांक ८८
२५३२. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १५०१ २५३३. पार्श्वनाथ जिनालय, बेगम बाजार, हैदराबाद: पू० जै०, भाग २, लेखाकं २०६१
(खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:
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४३७)
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