Book Title: Khartargaccha Pratishtha Lekh Sangraha
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 521
________________ १००८ श्रीजिनचंद्रसूरीश्वराणां मूर्त्तिः जिनकृपाचंद्रसूरिशिष्य उपाध्याय मुनिसुखसागरोपदेशात् श्रीसंघेन कारिता प्रतिष्ठिता च खरतरगण (२६९३ ) जिनकृपाचन्द्रसूरि-मूर्तिः वि० सं० २०१७ मार्ग शु० ६ दिने श्रीखरतरगच्छालंकार जैनाचार्य श्री १००८ श्रीजिनकृपाचंदसूरीणां मूर्त्तिः श्रीसिद्धाचलतीर्थे श्रीसंघेन कारिता प्रतिष्ठिता च खरतरगणमुनीन्द्रैः (२६९४ ) जिनजयसागरसूरि-मूर्तिः वि० सं० १०१७ मार्ग सु ६ श्रीखरतरगच्छालंकार जैनाचार्य श्रीजिन (जय ) सागरसूरीणां मूर्त्तिः श्रीसिद्धाचलतीर्थे श्रीसंघेन कारिता प्रतिष्ठिता च श्रीखरतरगणमुनीन्द्रैः (२६९५ ) शिलालेखः सं० २०१७ माघ शु० १० गुरौ दाढी श्रीसंघेन भगवान श्रीशांतिनाथप्रासाद कारितं प्रतिष्ठितं जं० यु० प्र० श्रीपूज्य जैनाचार्य श्रीजिनविजयेन्द्रसूरिणा वीर सं० २४८७ (२६९६ ) जिनदत्तसूरि- पादुका दादा श्रीजिनदत्तसूरीश्वराणां चरणपादुका वि० सं० २०१७ (२६९७ ) जिनकुशलसूरि- पादुका दादाश्री जिनकुशलसूरीश्वराणां पादुका वि० सं० २०१७ (२६९८ ) सम्मेतशिखरपट्टः विक्रम संवत् २०१८ के मगसर बदी ७ से इस तीर्थस्थान पर पुज्य अनेक संस्थाओं के संस्थापक विश्ववन्द्य जैनाचार्य श्री श्री १००८ श्रीमज्जिनहरिसागरसूरीश्वरजी महाराज साहिब के शिष्यरत्न व्याख्यानवाचस्पति शासनप्रभावक श्री १००८ श्रीकांतिसागरजी महाराज एवं व्याकरण न्यायतीर्थ साहित्यशास्त्री मुनिराज श्री दर्शनसागरजी महाराज के सानिध्य में उपध्यानतप शुरु होकर पोष शुदी १४ को माल उत्सव के उपलक्ष में उपध्यान तपस्वीयों की ओर से यह पट बनवाया गया। (२६९९ ) सिद्धाचलपट्टः विक्रम संवत् २०१८ के मगसर वदी ७ से इस तीर्थस्थान पर पुज्य अनेक संस्थाओ के संस्थापक विश्ववन्द्य जैनाचार्य श्रीश्री १००८ श्रीमज्जिनहरिसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब के शिष्यरत्न व्याख्यानवाचस्पति २६९३. दादाबाड़ी, शत्रुंजयः भँवर० (अप्रका०), लेखांक १२३ २६९४. दादाबाड़ी, शत्रुंजयः भँवर ० ( अप्रका० ), लेखांक १२४ २६९५. रोशनमुहल्ला आगराः भँवर० (अप्रका० ) २६९६. दादाबाड़ी शत्रुंजयः भँवर० (अप्रका० ), लेखांक १२६ २६९७. दादाबाड़ी, शत्रुंजय : श्री भँवर० (अप्रका०), लेखांक १२७ Jain Education International २६९८. पञ्चतीर्थी मंदिर के बाहर की दीवार, नाकोड़ा: ना० पा० ती०, लेखांक २२० २६९९. पञ्चतीर्थी मंदिर के बाहर की दीवार, नाकोड़ा: ना० पा० ती०, लेखांक २१९; बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक ३८१ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: (४६३ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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