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राष्ट्रपति-सम्मानित देवर्षि कलानाथ शास्त्री
खरतरगच्छ का बृहद् इतिहास - शतशः बधाइयाँ भारत में श्रमण संस्कृति के प्रमुख आधार स्तम्भ जैन धर्म की जो विभिन्न शाखाएँ पंथ, संघ, मार्ग आदि विकसित हुए उनमें खरतरगच्छ का विशिष्ट स्थान सुविदित है। इसका एक सहस्राब्दी का उज्ज्वल इतिहास है जो ओसवालों की गौरवमयी ध्वजा है, जिसमें अनेक शास्त्रविज्ञ मूर्धन्य मनीषी न केवल समाज को विशुद्ध आचार और पूर्णतः शास्त्र सम्मत चर्या का मार्गदर्शन देते रहे अपितु वाङ्मय को अमूल्य ग्रन्थरत्न विभिन्न भाषाओं में देते रहे, उत्कृष्ट चिन्तन का प्रसाद देश में बाँटते रहे । खरतरगच्छ नामक इस शाखा का इतिहास मेरी जानकारी में इतने योजनाबद्ध रूप में तथा प्रामाणिक संदर्भो सहित अब तक सामने नहीं आ पाया था, यथापि कुछ ग्रन्थ इसके विशिष्ट आयामों का परिचय कराने हेतु लिखे गये हैं।
यह अत्यन्त हर्षप्रद है कि प्राकृत, संस्कृत, राजस्थानी, हिन्दी आदि अनेक भाषाओं के विख्यात विद्वान्, शोधमनीषी और जैनागम तथा दर्शनशाखाओं के प्रकाण्ड पण्डित महोपाध्याय विनयसागरजी ने क्रमबद्ध, प्रामाणिक और व्यापक संदर्भो से पुष्ट खरतरगच्छ का बृहद् इतिहास लिखने का गुरुतर कार्य हाथ में लिया है जिसका प्रकाशन होने लगा है और एक नया प्रकाश सामने आया है। इसमें इस गच्छ की मूल अवधारणा का, उसकी दस शाखाओं और चार उपशाखाओं का एवं संविग्न परम्परा का प्रामाणिक इतिहास लेखबद्ध किया गया है यह देखकर मुझे परम सन्तोष हुआ।
इसमें श्री वर्द्धमानसूरि, श्री जिनेश्वरसूरि और श्री बुद्धिसागरसूरि से लेकर अब तक हुए गच्छ के आचार्यों, सूरियों, गणियों, साधुओं, साध्वियों आदि का क्रमबद्ध परिचय उनके जीवन-विवरण के साथ उनके ग्रन्थों, कृतियों आदि का विवरण, गच्छ से सम्बद्ध विभिन्न गोत्रों, धार्मिक स्थलों, घटनाओं, शास्त्रार्थों आदि की जानकारी, समाज को उस काल खण्ड में इस गच्छ का अवदान इत्यादि तथ्यों का तत्कालीन अभिलेखों, पट्टावलियों आदि के प्रमाणों से पुष्ट तिथि- निर्धारण सहित इस प्रकार इतिवृत्त दिया गया है जो इसे सच्चे अर्थों में इतिहास बना सके। इन तथ्यों और प्रमाणों के संदर्भो के साथ संस्कृत, प्राकृत आदि के मूल श्लोक, गद्यांश आदि भी उद्धृत हैं, वंशावलियाँ, वंशवृक्ष, चित्र, छायानुकृतियाँ आदि भी मुद्रित हैं। इससे समूचे गच्छ का सर्वांगीण इतिहास सुरक्षित हो जाएगा जो अपने आप में महत्त्वपूर्ण, उल्लेखनीय तथा सर्वात्मना अभिनन्दनीय कार्य है।
इस महनीय कार्य को महोपाध्याय विनयसागरजी जैसा शोध-विद्वान्, अनुभवी दर्शनाध्येता, आगम-पण्डित और इतिहासकार ही पूरा कर सकता था, यह स्पष्ट है। शोध के सुदीर्घ अनुभव के फलस्वरूप श्री विनयसागरजी ने इसे शोधार्थियों के लिए पूर्णत: उपयोगी बनाने हेतु अन्त में अकारादिक्रम की अनुक्रमणिका में समस्त नामावलियों के विभिन्न परिशिष्ट देकर सर्वांगपूर्ण बना दिया है, यह देखकर किसे सन्तोष और हर्ष नहीं होगा?
निश्चित रूप से यह प्रामाणिक,शोधदृष्टि से संपन्न, सर्वांगीण इतिहास-ग्रन्थ इस देश में जैन धर्म के इस महत्त्वपूर्ण गच्छ की कीर्ति को अमर करने में प्रमुख आधारशिला की भूमिका निभाएगा और सदियों तक नई पीढ़ियों के लिए आकर ग्रन्थ बना रहेगा। इस उत्कृष्ट कार्य के लिए मैं विद्वान् लेखक सुहद्वर्य महोपाध्याय विनयसागरजी को शतशः बधाइयाँ और साधुवाद प्रेषित करता हूँ।
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