Book Title: Khartargaccha Pratishtha Lekh Sangraha
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 496
________________ १००८ श्रीजिनदत्तसूरि गुरुमहाराज चरणपादुका श्रीचारकवांण का श्रीसंघेन कारापितं । पं० चारित्रसुखेन प्रतिष्ठापितम् श्रीसंघस्य कल्याण खेम कुशलम् समुपस्थिता ॥ हैदराबाद ॥ (२५३४) जिनकुशलसूरि-पादुका ॥ सं० १९६१ वर्षे मि। माघ सु । ५ दिने । जं । युग० १००८ दादासाहेब श्रीजिनकुशलसूरि पादुका । च्यारकबांण । (२५३५ ) जिनदत्तसूरि- पादुका संवत् १९६२ शाके १८२७ श्रीपिंगलनाम संवत्सरे प्रवर्त्तमाने पौषमासे.. बुधवासरे विवे करणे कुकल शुभयोगे श्रीचिंतामणि पार्श्वनाथ प्रतिष्ठा महोत्सवे श्रीजिनदत्तसूरि चरणपादुके गोपा वीजा बोहिथरा वास बाहड़मेर भट्टारक जंगमयुगप्रधान बृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनसिद्धिसूरिभिः कारितं रावत हीरासिंघजी भाराणी वंसे राज्य प्रधानात् श्रीरस्तु (२५३६) जिनकुशलसूरि- पादुका सं० १९६२ शाके १८२७ श्रीपींगलनाम संवत्सरे पौषमासे... . दिवसे बुधवासरे पुष्यनक्षत्रे ध्रुवयोगे बिबे करणे शुभयोगे श्रीचिंतामणि पार्श्वनाथ प्रतिष्ठा महोत्सवे श्रीजिनकुशलसूरीणां चरणपादुका स्थापितं भट्टारक जंगमयुगप्रधान बृहत्खरतरगच्छनायक आचार्यगच्छेश श्रीजिनसिद्धिसूरिभिः कारितं गोपा बोहिथरा बाहड़मेर रावत हीरासिंहजी भाराणी वंशे राज्य प्रधाना श्रीरस्तु । (२५३७ ) जिनकुशलसूरि-पादुका श्रीजिनकुशलसूरिचरणकमलपादुकेभ्यो नमः ॥ शुभ संवत् १९६४ वैशाख धवल १० गुरुवासरे प्रतिष्ठितम्॥ (२५३८ ) नवलश्री - पादुका सं० १९६४ वर्षे शाके १८२९ प्रवर्त्तमाने ज्येष्ठमासे शुक्लपक्षे पंचम्यां तिथौ मार्त्तण्डवासरे चंदणश्री पदस्थ सा । नवलश्रीनां पादुका स्वजीवनावस्थायां नवलश्रियौस्य चरणयो स्थापितं कारितं च तया वैकुण्ठवासि.......... गुरुणी इधरा गुरणी..... .. चरणौ विराजमानौ कर्यिता च प्रतिष्ठाकारिता श्रीमद्बृहत्खरतराचार्य गच्छाधीश यं । यु । प्रधानभट्टारक श्री श्री १००८ श्री श्रीजिनसिद्धिसूरीश्वराणां विजयराज्ये । श्रीनालमध्ये महाराजाधिराज श्रीमद्गंगासिंह .. इ..........राजमान श्रीरस्तुः ॥ ....... (२५३९ ) श्रीजिनकुशलसूरि- पादुका श्री अर्गलपुरे साहगंजे प्रथम प्रतिष्ठा संवत् १७७९ मिति ज्येष्ठ सुदि १५ खरतरगच्छे श्री १०८ २५३४. पार्श्वनाथ जिनालय, बेगम बाजार, हैदराबाद पु० जै०, भाग २, लेखांक २०६२ २५३५. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, बाड़मेर: बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक १६३ २५३६. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, बाड़मेर: बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक १६२ २५३७. पार्श्वनाथ जिनालय, बेगम बाजार, हैदराबाद: पू० जै०, भाग २, लेखांक २०६३ २५३८. खरतरगच्छीय शाला, नाल, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २३१४ २५३९. दादाबाड़ी, शाहगंज, आगराः पू० जै०, भाग २, लेखांक १४९९ (४३८) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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