Book Title: Khartargaccha Pratishtha Lekh Sangraha
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 504
________________ (२५८४) कुण्डजीर्णोद्धार-लेखः ॥ सं० ॥ १९७६ शाके १८४१ सन् १९१९ श्रावण सुदि ८ चन्द्रवासरे........ महाराजाधिराज महाराजा श्री १०८ श्रीजवाहरसिंहजी महाराजकुमार श्रीगिरधरसिंहजी श्रीबृ० खरतरगच्छे उसवंशे बहुफणा हजारीमल मु० बरढिया राजमल श्रीलौद्रवपुर मध्ये जीर्णउद्धार धर्मशाला जलरो टांका पाने कुंड कारापितं । हस्ताक्षर पं० प्र० वृद्धिचंद्र मुनि कारीग० मेंणू लालूखां। (२५८५) धर्मसर्वज्ञ-पादुका सं० १९७७ राधराकायां श्रीरत्नपुरे श्रीधर्मसर्वज्ञानां पादाः कारिता ओसवंशे वरढीया मूलचंदज बेणीप्रसादेन श्रीकाशीस्थेन बृहत्खरतरगणनाथ श्रीजिनलाभसूरि शिष्य पाठक हीरधर्मोपदेशेन प्र। श्रीजिनहर्षसूरिणा खरतरगणेश। (२५८६) शालालेखः ॥ श्री ॥ क्षेमकीर्ति शाखायां । उपाध्याय श्रीरामलाल गणिना स्वशालाया जीर्णोद्धार कारापिता सं। १९७७ माघ शुक्ल ५। . (२५८७) जिनमहेन्द्रसूरि-पादुका ॥ श्रीनृपतिविक्रमार्कप्रवर्तित १९७८ मितेब्द वर्तमानि तत्र मार्गशीर्षमासे कृष्णपक्षे शुभतिथौ त्रयोदश्यां रविवासरे। जं० यु० प्र० ख० भ० । श्रीजिनमहेन्द्रसूरीश्वराणां चरणस्थापना श्रीजिनचन्द्रसूरीणामुपदेशेन जयपुरीय श्रीसंघेन कृता। (२५८८) जिनमुक्तिसूरि-पादुका श्रीनृपतिविक्रमार्कप्रवर्तित १९७८ मितेब्द वर्तमानि तत्र मार्गशीर्षमासे कृष्णपक्षे शुभतिथौ त्रयोदश्यां रविवासरे जं० यु० प्र० बृ० ख० भ। श्रीजिनमुक्तिसूरीश्वराणां चरणस्थापना श्रीजिनचंद्रसूरीश्वराणामुपदेशात्। जयपुर श्रीसंघेन कृता। (२५८९) गुरुमूर्तिः वी० सं० २४४९ वि० सं० १९७८.......सोमवासरे जं० यु० प्र० श्रीजिन.. __ (२५९०) दादाद्वय-पादुके जंगमयुगप्रधान भट्टारक श्रीजिनदत्तसूरीश्वराणां पादुके। श्रीजिनकुशलसूरीश्वराणां पादुके। वीर संवत् २४४८ वि० १९७९ आषाढ़ शुक्ल १ चंद्रे रांकागोत्रीय लाभचन्द्र शेठेन आत्मकल्याणार्थं इमे पादुके २५८४. धर्मशाला, लौद्रवपुरः ना० बी०, लेखांक २८८८ २५८५. धर्मनाथ जिनालय, रोनाही, रत्नपुरी: पू० जै०, भाग २, लेखांक १६६५ २५८६. शालाओं के लेख, नाल, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २३०६ २५८७. मोहनबाड़ी, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६९७ २५८८. मोहनबाड़ी, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६९८ २५८९. ऋषभदेव जिनालय, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २८१२ २५९०. लाभचन्द्र सेठ का घर देरासर, पुलिस हास्पिटल रोड, कलकत्ताः पू० जै०, भाग २, लेखांक १००८ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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