Book Title: Khartargaccha Pratishtha Lekh Sangraha
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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(२) १८०९ माघ शुक्ल ८ शनौ प्रवर्त॥ (३) माने ब्रह्मसर ग्रामे पार्श्वजिनचैत्यं (४) महारावलजी श्रीश्री १०५ श्रीवैरिशा(५) लजी विजयराज्ये कारापिता ओशवंशे (६) वाग(रे)चा गोत्रे गिरधारीलाल भार्या सिण(७) गारी तत्पुत्र हीरालालेन प्रतिष्ठितं जै(८) नभिक्षु मोहनमुनिना प्रेरक वाग(रे)चा (९) अमोलखचन्द्र पुत्र माणकलालेन कृ(१०)तं गजधर महादान पुत्र आदम ना(११)मेण श्रेयोभूयात् शुभं भवतु
(२४६५) जीर्णोद्धार-लेखः सं० १९४५ मिती श्रावण सुदि ७ जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनोदयसूरीणां चत्वरस्य जीर्णोद्धारमकारि
. (२४६६) जिनहेमसूरि-चत्वरम् सं० १९४५ मिती श्रावण सुदि ७ जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनहेमसूरीणां चत्वरमकार्षीत्
__ . (२४६७) जीर्णोद्धार-लेखः सं० १९४७ मि० वै० सु० २ चन्द्रे श्रीमन्महाराजाधिराज श्रीगंगासिंहजी विजयराज्ये श्री तपागच्छाधीश्वर श्रीविजयराजसूरि विजयराज्ये श्रीविक्रमाख्यपुरे वास्तव्य मु० को० मानमलजी जीर्णोद्धार कारापितं तिणारी लागत श्रीभण्डारजी माहेलुं रूपीया इण मुजब लागा है प्रतिष्ठितं पुनरपि बिंबं पं० सुमतिसागर पं० धीरपद्मेन श्रीसिरदारसहरमध्ये। चै । इदुः। खुदाबगस मुलजोड़ी और सर्वखाती मोती ने काम कियौ॥ श्रीरस्तुः॥
(२४६८) शिलालेखः सं० १९४७ शलिवाहन शाके १८१२ प्रवर्त्तमाने ज्येष्ठमासे शुक्लपक्षे तिथौ ५ थिरवारे श्रीकालाबागवास्तव्य ओसवंशे लूणिया गोत्रे वृद्धशाखायां सं० दीवानचंद तत् भार्या सनमेराई तत्पुत्र जेठानंद जी ये श्रीपार्श्वनाथजिनबिंबं स्थापितं च श्रीबृहत्खरतरगच्छे भ। जं। यु। प्र। भ। श्रीजिनमुक्तिसूरि तत्पट्टे श्रीजिनचंद्रसूरि विजयराज्ये पं । प्र। हर्षकीर्ति तत्पट्टे हेमचंद्रेण प्रतिष्ठितं च शुभं भवतु।
(२४६९) गणेश-पादुकाः महाराजाधिराज श्री १०८ श्रीशालिवाहन राज्ये । श्री। संवत् १९४७ मिती चैत वदि १ श्रीखरतरगच्छे जं । यु। प्रधान श्रीजिनमुक्तिसूरि राज्ये पं। प्र। श्रीगणेशजी रा चरणछतरी॥ द० पं० विरधीचंद का।
२४६५. रेल दादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०५९ २४६६. रेल दादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०६० २४६७. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, सरदारशहर: ना० बी०, लेखांक २३८२ २४६८.खरतरवसही, शत्रुजय भंवर० ले० सं०, (अप्रका०), लेखांक ९९ २४६९. दादाबाड़ी, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २८५२
(खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः)
४२७)
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