Book Title: Khartargaccha Pratishtha Lekh Sangraha
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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महाराज १०८ श्रीजिनकुशलसूरिजी महाराजरा चरण कमल प्रतिष्ठापितं जंगमयुगप्रधान बृ० ख० भ० । श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः कारितं........... ..............श्रेयोर्थं .......... ............कारितं बाईराजकुंअरि श्रेयोर्थं ॥
(२४८८) जिनदत्तसूरि-जिनकुशलसूरि-पादुके सं० १९५२ वर्षे माघ शुक्ल पूर्णिमा गुरौ श्रीजिनदत्तसूरि-जिनकुशलसूरिवरस्य पादुका प्रतिष्ठिता राजेन्द्रसूरिणा कारिता बहुफणा ओंकारजी तत्पुत्र ताराचन्द्र हुकमीचन्द्राभ्यां राजगढ़नगरे शुभंभवतु।
(२४८९) मणिधारी-जिनचन्द्रसूरि-पादुका ॥संवत् १९५२ रा माघ सु०५ तिथौ जं । यु।प्र। खरतरभट्टारकदादाजी महाराज श्रीजिनचन्द्रसूरिजी मणिवालों के चरण कमल प्रतिष्ठापितं।ज। यु।प्र। बृहत्खरतरगच्छे भट्टारक श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः श्रीरतलामनगरे कारितं । जयपुरस्थ श्रीसंघेन स्वश्रेयोर्थं । गुरुवारे।
( २४९० ) पार्श्वनाथ-पादुका शुभ सम्वत् १९५२ का मिति माघ शुक्ल नवमी उपरान्त दशम्यां तिथौ भौम्यवासरे श्रीसम्मेतशिखर श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्रचरणपादुका समस्त श्रीसंघेन कारिता प्रतिष्ठिता हितवल्लभगणिभिः श्रीखरतरगच्छे श्रीमुर्शिदाबाद बालोचरनगरे राय धनपतसिंह स्वचैत्ये प्रतिष्ठिता॥
(२४९१) सरूपचन्द्र-पादुका संवत् १९५२ रा मिती माघ शुक्ल पूर्णमासी १५ तिथौ गुरुवासरे गुरांजी महाराज श्रीसरूपचंद्रजी स्वर्ग पोहता तस्य चरणपादुका स्थापितं । दूज जेठ सुदि ३ दिने।
(२४९२) शिलालेखः स्वस्ति श्रीविक्रमादित्यराज्यात्संवत् १९५२ शालिवाहनकृतशाके १८१७ पु० ११ श्रवणनक्षत्रे घटी १२ पु० ३१ बब घ० । पु० ३५ तत्समये महाराजाधिराज महाराजजी श्री १०८ सज्जनसिंघजी विजयराज्ये श्रीजैसलमेरुवास्तव्य पुंवारजैनक्षत्रियओशवंश बहुफणागोत्रे संघवी सेठजी श्रीगुमानचंदजी तत्पुत्र मगनीरामजी तत्पुत्र बभूतसिंहजी तत्पुत्र पूनमचंदजी-दीपचंदजी तत्पुत्र सौभाग्यमलजी-चांदमलजी बा रायसाहब केशरीसिंहजी, पूनमचंदजी की भार्या धनकुंवर, दीपचंदजी की भार्या पदमकुंवर, सौभाग्यमल जी की भार्या आणंदकुंवर फूलकुंवर २, केशरीसिंहजी की भार्या उमरावकुंवर सपरिवारसहितेन आत्मस्वपरकल्याणार्थं श्रीरतलामनगरे वर्तिनी समीचीनारामस्थाने श्रीजिनमंदिरनवीनं कारापितं श्रीजिनचंद्रप्रभबिंबं प्राचीनं श्रीजिनकोटिकगच्छाचार्य समुद्रसूरिप्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे जं० यु० प्र० सकल भट्टारक शिरोमणि : श्री १०८. श्रीजिनमहेन्द्रसूरिपदपंकजसेविना श्रीजिनमुक्तिसूरि चतुर्विधश्रीसंघसहितेन विधिपूर्वक महत्ता
२४८८. दादासाहेब की पादुका, राजगढ़: य० वि० दि०, भाग ४, लेखांक २० २४८९. दादाबाड़ी, सांगानेर: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६५० २४९०. मधुवन, सम्मेतशिखर: जै० धा० प्र० ले०, लेखांक ३६९ २४९१. दादाबाड़ी, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २८४८ २४९२. कोटा वाले सेठ जी की धर्मशाला स्थित चन्द्रप्रभ स्वामी का मंदिर, रतलामः य० वि० दि० भाग ४ लेखांक ३०
(खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:
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