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(१९) जी गणि प्रमुख साधू ठाणे ४१ था ठाणे दिठ रुपीया १०) दस रोकड थांन प्रत्येके प्रत्येके
दीना तथा परगच्छ के यतीयां को सतकार आछी तरे कीनो श्रीसिर॥ (२०) कार की पधरांवणी कीनी घोडा सिरपाव वगेरे मोकलो निजराणे कीनो मुसंदी वगेरे ठावां
ठावां सर्व ने सिरपाव दीना सेवकां में जिणे दीठ रुपीया ४) च्या(२१) र तो सर्वाले दिना कीतरांक जिणांने सोने का कडा तथा थांन वगेरे सिरपाव दीना
श्रीजिनभद्रसूरिसाखायां पं ॥ प्र॥ श्रीमयाचंद्रजी गणि तत् शिष्य पं॥ स(२२) रूपचंद्रजी मुनी श्रीजेशलमेरु आदेसी ना इयं प्रसस्ती रचिता कारिगर सिलावट वीराम
हाथ सुं श्रीमंदिरजी वणिया जीण के परिवार नां सोने की कंठीयां (२३) तथा कडा की जोड़ीयां तथा मंदील तथा दुपटा थांन वगेरे सीरपाव दीना श्रीमंदिर के मुल
गंभारे में आसेपासे दिषण नी तरफ परतापचंद जी की षड़ी मुरती छै उ(२४) तर की तरफ परतापचंदजी की भारजायां की खड़ी मुरती छै निज मंदिर के सामने उगूण
की तरफ पछम मुषो चोतरो कराय जिण उपर परतापचंदजी की मुरती (२५) तथा परतापचंदजी की भारजायां सदपरिवार सहीत की मुरतीयां स्थापित कीनी सं० ॥
१९४५ मिती मिगसर सुद २ वार बुध द॥ सगतमल जेठमलांणी बाफणे का सुभं (२६) दुहा॥ अष्ट कर्म वन दाह के॥ भये सिद्ध जिनचंद॥ ता सम जो आप्पा गिणे॥ ताकुं वंदे
चंद॥१॥ कर्मरोग ओषध समी ग्यांन सुधारस वृष्टि ॥ सिव सुष अमृत बेलडी (२७) जय जय सम्यग् दृष्टि ॥ २॥ एहिज सदगुरु सीष छै॥ एहिज शिवपुर माग लेज्यो निज
ग्यांनादि गुण ॥ करजो परगुण त्याग॥३॥ भेद ग्यांन श्रावण भयौ। समर(२८) स निरमल नीर ॥ अंतर धोबी आतमा॥धोवै निजगुण चीर ॥४॥ कर दुष अंगुरी नैन दुष॥
___ तन दुष सहज समांन ॥ लिष्यो जात हे कठीन सुं। सठ जांनत आसांन ॥५॥ (२९) ॥ श्रीः॥ ॥ श्री श्री श्री॥ ॥ श्री॥
(२३६४) पार्श्वनाथ-मूलनायकः (१) निश्शेषानंता मंडलेन्द्र श्रीमद्विक्रमादित्यराज्यात्संव्वद्दिग्गजनेत्रांकोर्व्विमिते मासोत्तम माघार्जुन
त्रयोदश्यां (२) गुरुयुतायां कर्मवाट्यां ॥ सं० १९२८ का शाके १७९३ प्रवर्त्तमाने माघ शुद १३ गुरौ
- श्रीपार्श्वजिनबिं(३) बं प्रतिष्ठितं श्रीमबृहत्खरतरगच्छाधीश्वर श्रीमन्महेन्द्रसूरि पट्टप्रभाकर जं। यु। प्र। सकल
भ। चक्रचूड़ामणि (४) श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः श्रीमन्महाराजाधिराजा महारावलजी श्रीवैरिशालजी विजयराज्ये कारितं ___च श्रीजैशल(५) .................
२३६४. पार्श्वनाथ देरासर, ब्रह्मसर, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५८२
(खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः)
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