________________
-पढमो सम्गो
इमाहि कूरो ण परो ति से का अवस्समकूरअ-सह-पकिया। अघोर-सई जह घोर-मुत्तिणो सिवस्स वक्खाइ तह त्ति मण्णिमो ॥ ४० हरिस्स रूवं चिअ संभरेह हो हरिम्मणी-सामल-कोमल-प्पहं । सिणिद्ध-केसंचिअ-मोर-पिंछिअं विसट्ट-कंदो-विसाल-लोअणं ॥४१ फुरंत दंतुज्जल-कंति-चंदिमासमग्ग-सुंदेर-मुहेंदु-मंडलं । विसुद्ध-मोत्ता-गुण-कोत्थुह-प्पहापलित्त-वच्छं फुड-वच्छ-लंछणं ॥ ४२ भुअंग-भोआकई-चंग-भंगअप्पआम-सोमाल-भुआ-लअंचिअं। मणि-प्पहाइण्ण-सुवण्ण-मेहलाविलंबि-पीअंबर-सोणि-मंडलं ॥ ४३ णह-प्पहालिद्ध-णहप्पहामलप्पवाल-तंबुज्जल-पाअ-पंकअं । मणोज्ज-हासोल्ल-कडक्ख-विक्खण
क्खण-क्खुहिज्जंत चअंगणंग ॥४४ १M पंछिअं. २ T हुरंत. 3 T मंसलं. ४ ४ मोतागण, T मोत्ताउण. ५ 7 भोमाकइ. ६ T प्यवाह.७ ॥ खुविज्जंत. ८ ' वसंगणंगणं.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org