Book Title: Kanhad Kathiyara tatha Mayanrehano Ras Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 7
________________ (६) गन करे घनघोर रे, वाध्यो तिहां मन्मथ जोर रे, वि रहीकुं कठिन कठोर रे, हियडुं न रहे शक तोर रे॥ वर्षा ॥ ३ ॥वीमलीयां ऊड मांमियो सखी, गगन करे घडडाट रे ॥ जल थल सवि जल पूरियां सखी, वहे नहिं कांग वाट रे॥ जलथल सवि संध्या घाट रे, हल कर्षण वाहे जाट रे, जल पेठो वसुधा फाट रे॥व०॥३॥ नदरवृत्ति करवा नणी सखी,हवे क ठियारो कान्द ॥ रज्जु कुहाडो कर ग्रही, रडवडतो गयो रान रे ॥ नदियां वहे असमान रे,वहियां ए त रुवर रान रे, गणतां कोई नावे ज्ञान रे ॥ व ॥३॥ कटिये बांध्यो कांबलो सखी, पेठो जल नरपूर ॥ चोखं चंदन लाकडं सखी,आण्युं आप हजूर रे॥ दी से अति सदल सनूर रे, जांजी कीधुं चकचूर रे, गंध पहोतो जिहां शशि सूर रे॥ व ॥ ५॥ नारी वेचण कारणें सखी, आयो नर बाजार ॥ काठ कुकान जलो बुरो सखी, जाणे नहिं तिलनार रे॥मूरखमां ते शिर दार रे, नहिं विनय विवेक विचार रे,राखी तिणे व्रत नी कार रे॥व०॥६॥ण अवसर तिण सहरमें सखी, श्रीपति सेठ सुजाण ॥ सोवन कोडी चारनो सखी, परि ग्रह कीध प्रमाण रे ॥ श्रीजिनवर पाले आण रे, बारह Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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