Book Title: Kanhad Kathiyara tatha Mayanrehano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(३६)
इजसा तो मनमें जाण्यो, उलड दीसे कठारो ॥ दे खोनी महारी धरती से, राजवीयां अहंकारो॥रा० ॥ २५॥ चंजसा फोजां लश्चडीयो, काकड सामी आयो ॥ नमी कुंअर तो करी सजाय, मनमें मगज न मायो ॥ रा० ॥ २६ ॥ चंजसा तो कोप करीने, बोले वांकी वाणी ॥ मर्मना मोसा बोले नमीने, च ढीयो ने इम जागी ॥रा ॥ २७ ॥ तिण अवसर में मयणरेहा सती, मनमें इसडी जाणी ॥ अंगजात बे दोनुं महारा, निश्च पुण्यवंत प्राणी ॥रा ॥२॥ लाख आदमीरी घातज होसे, मरसे घणा अजाएगी। एथी कोइ नपगारज कीजे, मयरेहा मन आणी ॥रा ॥ ॥ विनय करी गुरुणीने पूजे, आप क हो तो जाउं ॥ दोनुं राजरी राड मिटावं, ढुं जाइस मजानं ॥रा० ॥ रा० ॥ ३० ॥ माहोमांही कोइन हटशे, अंगजात ने महारा ॥ घणा जीवांरी घातज होसे, परमारथ ने दोयारा ॥रा० ॥३१॥ देखो पु एया राजवीयारी, गुरुणी तो नही वो ॥ वस्तु
आपणी सेठी करीने, पनी उपगार युं करजो ॥रा ॥३२॥ करी वंदन मयणरेहा चाली, फरी सतीयांरो सायो। चंजसा तो सद्य पीठाणे, पहेला करुं नमी
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