Book Title: Kanhad Kathiyara tatha Mayanrehano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 47
________________ (४६) ॥ ढाल चोथी ॥ रे जीव जिनधर्म कीजीयें ॥ देशी ॥ ॥ परमाधामी सुर कहे, सांजल तुं नाइ ॥ कहो क्यो दोष हमारडो, निज देखो कमाइ ॥परमा॥१॥ पाप तमे कीधां घणां, बहु जीव विणास्या, पीड न जाणी पर तणी, कूडा मुख नांख्या ॥ पर० ॥ ॥ चोरी लाव्यां धन पारकां,सेवी परनारी॥यारंन कीधा अतिघणा रे, परिग्रह नवि मारी॥ पर० ॥३॥ मा त पिता गुरु उलव्या, कीधो क्रोध अपार ॥ मान मा या लोन मन धस्यो, मतिहीन गमार ॥ पर॥४॥ निशिनोजन कोधां घणां, बहु जीव विणास्या ॥ न कानद घणा नख्या, पातकनो नहीं पार ॥ दर॥५॥ ॥ ढाल पांचमी॥ जाषामां ॥ . ॥ एम कही सुर वेदना ए, वयर नदीरे ताहितो ॥ सिला कंटाला वजतणा ए, तिहां पगडे साहतो ॥ १ ॥ सयल वदन कीडा नखे ए, जीन करे शत खंमतो ॥ ए फल निशि जोजन तणां ए, जाणो पा प अखंम तो ॥ २ ॥ तरस वसे तातो तरुन,मुखमां नामें ताम तो ॥ अगनी वरणी पूतली ए, स्पर्श करा वे आम तो॥३॥ ननोने अति आकरो ए, आणे तातुं नीर तो ॥ ते घाले तस आंखमां ए, कानमा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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