Book Title: Kanhad Kathiyara tatha Mayanrehano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(४५) ॥ ५ ॥ खाल उतारे देहनी रे, अनख सदा दे आ हार॥ बदु आरडडा पाडतो रे, तनु विच घाले खार रे ॥ जिन ॥ ६ ॥
॥ढाल त्रीजी ॥ राग मारु ॥ ॥ ताप करे तिहां नूमिका रे, वन आय सीतल जाण ॥ यावी बेशे तरु बाहडे रे, पडतां जांजे प्रा ण ॥ चतुर मत राखजो रे ॥ १ ॥ कडुआ करम विपाक, विरुवा विषय विलास ॥ सुख थोडा दुःख घणा जेहथी रे, लहियें नरक निवास ॥ च ॥३॥ कुंजीमां पाक करे तस देहनो रे, तिल जिम घाणीमांहि ॥ पीली पीली रस काढे तेहनो रे, महेर न आवे तास ॥ च० ॥३॥ नाठो जाय त्रीजी नरक ल गें रे, मन धरतो जय ब्रांत ॥ पूठे परमाधामी सुर पु से रे, जेहवा काल कृतांत ॥ च ॥४॥ दांत विचें दीये आंगुली रे, फरी फरी लागे पाय ॥ वेदन सहे तां काल थयो घणो रे, हवे मुफ सह्यो न जाय ॥ च० ॥ ५ ॥ ज्यां जाय त्यां उठे मारवा रे, कोइन पडे सार ॥ उखजर रोवे सोर करे घणो रे, निपट हैये निरधार ॥ च ॥ ६ ॥
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