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90000000000000rpropog
कान्दडकठीयारानो रास.
तथा
मयणरेहा सतीनो रास. अने
नारकीना ढालियां वैगेरें
00000000000000000000000000000000000
• शीलमहात्म्यरूप या पुस्तकने यथायोग्य शोधीने श्रावक. नीमसिंह माणके
15000000000000000000000000000000008
श्रीमुंबापुरी मध्ये
निर्णयसागर मुद्रायंत्रमा मुद्रित कराव्यु.
संवत् १९४५ सने १८८९
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श्रीमानसागरगणिविरचित श्रीराला
कान्हडकठियारानो रास प्रार ॥
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॥ दोहा ॥ ॥ पारसनाथ प्रणमुं सदा, त्रेविसमा जिनचंद ॥ अलिय विधन दूरे हरें, आपे परमानंद ॥ १॥ वीणा पुस्तक धारिणी, श्रुतदाता श्रुतदेव ॥ सानिध करजो सामिनी, सेवकने नितमेव ॥ २॥ दान शील तप नावना, इणमें अधिकू शीत ॥ सेवे जे नवियण सदा,
नव परनव लील ॥ ३॥शीलें सुर सानिध करे, शील सिंह शिबाल ॥ शीले सवि संकट टले, फणि धर दु माल ॥ ४ ॥ शीलें सुखसंपद मिले, शी लें नोग. रस... ॥ कनियारा कान्हड परें, फले मनो रथ माल ॥ ५ ॥ कठियारो कान्हड दुवो, शीलवंत मां हे लीह ॥ तास तणा गुण गावतां, पावन थाये जी ह ॥ ६॥ गुण गानं गुरुया तणा, सांजलजो सदु सं त ॥ शील किसी परे पालियुं, ते दाखं व ॥७॥
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(३)
॥ ढाल पहेली ॥ - ॥ देशी चोपाश्नी ॥ लाख जोयण जंबू परिमाण, दाहिण जरत पूरव दिशि जाण ॥ नयरी अयोध्या अतिहि प्रधान, अमरपुरी केरुं उपमान ॥ १ ॥को डि गमे कोटिध्वज जाण, लखपति कोइ न आणे झा न ॥ उंदाला कुंदाला साह, अवसर ले लखमीनो ला ह॥ ॥ देवल दंम नहिं नरलोय, तर्कविना किहां वाद न होय ॥वेणीबंधन नवि दीसे साव,मार वचन लोकें नवि चाव ॥ ३॥ दोय जिना पटियारे जोय, नगरमांहे नवि दीसे कोय ॥ धनना कोई न दीसे चो र, मनना चोर वसे ने जोर ॥ ४ ॥ सोहे चोरासी चोहटा, राजनवन घूमें गजघटा ॥ वापी कूप सरोव र सार, वन वाडी नवि ला पार ॥ ५॥ जोगी नम र अछे सदु कोय, तो पण पग मांमे के जोय ॥ पर नारीयुं न करे प्रीत, चाले उत्तम कुलनी रीत ॥ ६ ॥ षट्दर्शन मन एहिज वात, म करो परजन केरी ता त॥ दान शील तप नावन सार, गलॅ राखे नित व्यवहार ॥ ७ ॥ समकितमूल बारह व्रत धरे, परव दिवस पोसह अणुसरे ॥ तीन तत्त्व सूधां सईहे, जि गवर आण अखंमित वहे ॥ ॥ राज करे कीरति
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धर राय, वैरी नाज गया वडवाय ॥ न्यायवंत अकरा कर नहिं, जेहनी कीरति समुई कही ॥ए ॥ सुप्रना राणी जेहने सही, रूपें रंज समोवड कही ॥ राजा राणी अविहड प्रेम, दूध नीर पारेवा जेम ॥ १० ॥ पहेली ढाल कही अति सार, राजा नगर तणो अधि कार ॥ मानसागर कहे सुगजो सदु, आगल वात अचंनम कहूँ ॥ ११ ॥ इति ॥
॥दोहा॥ ॥ ग्राम नगरपुर विचरता, चननाएगी अगगार ॥ विनिता नयरी समोसस्या, साधु तणे परिवार ॥ १ ॥ कीरतिधर अवनीपति, विधिगुं वांदण जाय ॥ वंदण विधियु साचवी, आगल बेठो आय ॥ २ ॥ आगल बेठी परखदा, बेग नगर नरेश ॥ अवसर जाणी या पणो, ये मुनिवर उपदेश ॥ ३॥
॥ढाल बीजी॥ ॥राग वेराडी॥जलो मन जमरा रे कानम्यो ॥ ए देशी॥ मानवनो नव पामियो, पाम्यो आरज देश ॥ श्रावक, कुल पामियो,पाम्यो गुरु उपदेश ॥१॥ चेतनी चेतन प्राणिया,करे जिन धर्म सार॥ दान शिय ल तप नावना, चारे जग सार ॥ चे० ॥ ॥ का
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( ४ )
चो रे घट माटी तणो, ऐसी आदमि देह ॥ विरास तां वार न लागशे, कांइ नहि रे संदेह ॥ चे० ॥ ३ ॥
थिरज ए संसार बे, जैसो संध्यावान ॥ मान अणी जल एहवो, जेहवो कुंजरकान || (जेवुं पिंपल पान) ॥ चे० ॥ ४ ॥ तीर्थे मत्यो जिम कारिमो, सगपण प रसंग ॥ जेसो सुहणो रातको, पंखी तरु संग ॥ चे० ॥ ५ ॥ मात पिता सुत बांधवा, घर महिला श्राय ॥ परजव जातां जीवने, कोइ नावे रे साथ ॥ चे० ॥ ॥ ६ ॥ माहारुं माहारुं करतो रहे, तहारुं नहिं रे ल गार ॥ कोण ताहारो तुं केहनो, जूवो हृदय विचार || ॥ ० ॥ ७ ॥ धंधो करि धन मेलीयुं, पोष्युं सय ल कुटुंब ॥ धंधा हिमांहें मरि गयो, बाहर दुइ नहिं बुंब ॥ चे० ॥ ८ ॥ काल याहेडी नित नमे, कर जाली कबा ॥ वनमृगला जिम जीवने, शर नाखे रे ता एए ॥ ० ॥ ए ॥ धर्म सखाइ ले चलो, जो संबल साथ ॥ यागलही यादर हुवे, एम कहे जगनाथ ॥ चे० ॥ १० ॥ राग वेंराडी जे सुणे, बीजी ढाल वखाए । मानसागर कवि एम कहे, सुख लहो निरवा ॥ ११ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ दीधी मुनिवर देशना, देखी यायो दोड ॥ याग
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ल बेगे आश्ने, कठियारो कर जोड ॥१॥ कठियारा ने मुनि कहे, किस्युं करो बो काम ॥ नारीशुं नगवा नजी, आघो काढुं आम ॥ २ ॥ एक लियो तुम आ खडी, एम कहे अणगार ॥ सुगराचार वहूपरें, वध तो करो विचार ॥ ३ ॥ कटियारे मुनिवर कने, करी शीलनी कार ॥ पूनिमरे दिन पूज्य जी,परनारी परि हार ॥ ४॥ एटली मुमने आखडी, सदगुरु केरी शी ख ॥ परमेसर परसादथी, नली करी ने शीख ॥५॥ हवे कठियारो प्रणमिने, आयो अपणे गेह ॥ पूनम परनारी तजी, निजनारी झुं नेह ॥ ६ ॥ करे उदर आजीविका, राखे व्रतनी रेख ॥ कान्हड कठियारा त गो, जन्म कतारथ लेख ॥ ७ ॥ इति ॥
॥ ढाल त्रीजी॥ ॥ वादल दह दिसि नन्हम्यो॥ ए देशी ॥ण अ वसर आयो तिहां सखी, वारु वर्षाकाल ॥ गगन ध डूके मेहलो सखी,पाणी वहे पडनाल रे॥ चिहुँ दिशि जल खलक्यां खाल रे, वलि नदीय वहे असराल रे, सरपूरित फूटे पाल रे ॥ १ ॥ वर्षाऋतु आश् मो हना ॥ ए आंकणी ॥ मोर किंगोरे मूंगरे सखी, म रमर दादूर सोर ॥ बपैयो पियु पियु करे सखी, ग
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(६)
गन करे घनघोर रे, वाध्यो तिहां मन्मथ जोर रे, वि रहीकुं कठिन कठोर रे, हियडुं न रहे शक तोर रे॥ वर्षा ॥ ३ ॥वीमलीयां ऊड मांमियो सखी, गगन करे घडडाट रे ॥ जल थल सवि जल पूरियां सखी, वहे नहिं कांग वाट रे॥ जलथल सवि संध्या घाट रे, हल कर्षण वाहे जाट रे, जल पेठो वसुधा फाट रे॥व०॥३॥ नदरवृत्ति करवा नणी सखी,हवे क ठियारो कान्द ॥ रज्जु कुहाडो कर ग्रही, रडवडतो गयो रान रे ॥ नदियां वहे असमान रे,वहियां ए त रुवर रान रे, गणतां कोई नावे ज्ञान रे ॥ व ॥३॥ कटिये बांध्यो कांबलो सखी, पेठो जल नरपूर ॥ चोखं चंदन लाकडं सखी,आण्युं आप हजूर रे॥ दी से अति सदल सनूर रे, जांजी कीधुं चकचूर रे, गंध पहोतो जिहां शशि सूर रे॥ व ॥ ५॥ नारी वेचण कारणें सखी, आयो नर बाजार ॥ काठ कुकान जलो बुरो सखी, जाणे नहिं तिलनार रे॥मूरखमां ते शिर दार रे, नहिं विनय विवेक विचार रे,राखी तिणे व्रत नी कार रे॥व०॥६॥ण अवसर तिण सहरमें सखी, श्रीपति सेठ सुजाण ॥ सोवन कोडी चारनो सखी, परि ग्रह कीध प्रमाण रे ॥ श्रीजिनवर पाले आण रे, बारह
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(७) व्रत धारक जाण रे,नित्य पोसह करें पच्चरकाण रे॥व० ॥॥ चनद नियम संनार तो सखी,श्रावककुल शण गार ॥ व्ये लाहो लखमीतणो सखी,जाणे सदु संसा र रे ॥ घर पुत्र कलत्र परिवाररे,इम सफल करे अवतार रे, थयुं धमै चित्त नजमाल रे ॥व० ॥७॥ चंपक चा कर शेतनो सखी, आयो नण बाजार ॥ कटियारा कान्हड तणी सखी,नारी लिये तिण वार रे॥हवे देश टका दोश् चार रे, कान्हड शिर देईनार रें, दोनुंआ या शेत ज्वार रे ॥ व० ॥ ए॥ चोखो चंदन बावनो सखी, परिमल गंध रसाल ॥ गोंखें बेटो शेठजी स खी.खबर हा ततकाल रे॥चंदननो गंध विसराल रे. कठियारो कान्हड बाल रे, जर नाख्यो चोक विचा ल रे ॥ व ॥ १० ॥ शेठ कहे चंपक प्रत्ये सखी, ए हनुं मूल कहाय ॥ दोय टका दीधा अडे सखी, जो तुम आवे दाय रे॥कठियारो घरमें जाय रे, हवे शेव कहे सम जाय रे, एहनुं मूल लीयो तुम दाय रे ॥ ॥व० ॥ ११ ॥ देश सोनैया पांचशे सखी, शेनें कीध जुहार ॥ त्रीजी ढालें ढलकतो सखी, मीठो राग म ब्दार रे॥कहे मानसागर सुविचार रे,कान्हडें लयुं व्य .अपार रे, पामीजें पुण्य प्रकार रे ॥ व० ॥१॥इति॥
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(७)
॥ दोहा॥ ॥ नगर विचालें नीकल्यो, बायो गणिका वास ॥ नहखूट नर तिहां वसे, हस करि काधी हास ॥१॥ उलगाणो आयो हां, मनमें महोटी खंत ॥ आयो आंही जाणजो, रसिया एम हसंत ॥ ५॥ कठियारो कान्हड कहे, सांजल सयणां वात ॥ पोडे जे आ वशे, रहेशे दिवस ने रात ॥ ३ ॥ वेश्या आई विहस ती, नयणें अमी ऊरंति ॥ मुख मोडे मटका करे, न यरों नेह धरंति ॥४॥ ॥ ढाल चोथी ॥ नमणी खमणी ॥ ए देशी॥
बेनी पीढो मांमी विशाला, रसिया उपर मांगे टाला॥ शिर राखडियां अधिकी शोना,माथे चमर नली परेंथोन्या॥१॥निलवट अधिक विराजे टीको, नयणें काजल सोहे नीको ॥ अांखडीयां सोहे अणियाली, नमुह कबाण चमर परे काली॥ २॥ दीप शिखा जिम सोहे नासा, परिमल गंध लिये तिहां वासा ॥ नाके उपर सोहे मोती, रात दिवस न रहे तिहां जोती॥३॥ वदन अनोपम शारद चंद, जीहा जी त्या अमीरस कंद ॥ अधुर प्रवासतणी परें राता,दंत पंति विच सोहे खातां ॥ ॥ सोनानी घड सोहे का
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न, गनीया सोहे असमान ॥ गले सोहे मोतिनको हार, मूल्य तणो नवि लानुं पार ॥ ५ ॥ बांहे बहेरखा सोवन चूडी, करकंकण स्त्री दीसे रूडी ॥ कुच कवि न ऊंचां असमान, सोवनकलश तणुं उपमान ॥६॥ मुखमें पान तणी ने बीडी, कंचूतणी कस अधिकी जीडी ॥ सिंहालंकी अति सुकुमाल, हंस तणी जिणे जीती चाल ॥ ७॥ पायें नेतर वाजे चंग, चरण कम ल अलताको रंग ॥णपरि सोल सजी शणगार, आ
बेठी पोल उवार ॥ ७ ॥ रूपें रंन तणो अवतार; हाथें आप घडी करतार ॥ ते देखीने मोहे इंद, आगें उना तरुवर द्वंद ॥॥ कामलता तियां सहामुं जोयु, ते देखी कान्हड मन मोह्यु ॥ मुफ पासें सोनैया सा र, देश सफल करुं अवतार ॥ १० ॥ गोला रे कदि हुँ ती गाय ? एम चिंतवियुं कान्हड राय ॥ल सोनैया हाथे दीध, सयणां हंदा बोलज कीध ॥११॥ का मलता दुश्मनराजी, काम केलिनी मामी बाजी ॥ तेल सुगंधा मोहोंघा कीधां, सयणांसेंती बीडां दीधां ॥ १२ ॥ चोथी ढाल कही अति चंगी, मानसागर कहे नवनव रंग।॥ कान्हडनु मन थयुं उबरंग, राग केदारोवधते रंग ॥१३॥
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(१०)
॥ दोहा ॥ ॥ नापित तेडी नायका, तुरत मंगायुं तेल ॥ चाक पाक कान्हड कियो, वेश्या सुरंगी रेल ॥ १ ॥ मन गमतां नोजन तणा, कीधा सरस आहार ॥ल विंग सोपारी एलची, मुबानो व्यवहार ॥ २ ॥ पहे खां मुलमुल बसतरां, शिर पचरंगी पाघ ॥ आगे उना उलगु, गावे नवनव राग ॥३॥ चबायां दीवा कि या, सखर बनावी सेज ॥ वेश्या आवी विहसती, जि पलं अधिको हेज ॥४॥ पूरो नग्यो पाधरो, पूनम रे दिन चंद ॥ कान्हड फांखी जालीयें, आंखें दीठो इंद॥५॥ आज अ मुजाखडी, परनारी परिहा र ॥ अवसर आव आपणो, कर्द नलोपुंकार ॥ ६ ॥
॥ ढाल पांचमी ॥ ___॥ देशी चूनडीनी॥ रजनी उग्यो एकलो, हवे तुर त बनावी तोत रे लाल ॥ मेदानने मिस कान्हजी, ग यो बापणो पहेरी पोत रे लाल ॥१॥धनधन कठिया रो कान्हजी, जिणे राखीव्रतनी रेख रे लाल ॥ मेली सोनैया पांचशे, वली मूक्यो परनो वेष रे लाल ॥ ॥२॥ध ॥ नरबाजारें हाटमें, सूतो निंद घुराय रे लाल ॥ वेश्या जोवे वाटडी, आयो नहिं कान्हड राय
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रेलाल ॥ध ॥ ३॥ पहोर घडीने यांतरे, पाणी नरि जारी साहि रे साल ॥ ननी जोवे वाटडी,कान्हड न आयो घरमांहि रे लाल ॥ध॥॥ब खानानी पाखती,ननी तिहांकरती हास रे लाल॥साद दिये सा ने करि, विच करती खोखाराखास रेलाल ध॥५॥ ध०॥ दीवो आयो दोडीने, तिण जोवे वेश्या वास रेलाल ॥ खबर नलाधी कान्हनी,मूकी गयो धननी राशि रे लाल ॥ ध० ॥ ६ ॥रात ग रवि नगियो, सदु मलिया राणो राण रेलाल ॥ वात जिकां का न्हड तणी, कहि मामी चतुर सुजाण रेलाल ॥ध० ॥ ७ ॥ वेश्या कहे वित्त पारकुं, दुतो राखुं नहिं ति ल मात रे लाल ॥ खरी कमाइ स्वादनी, महारे तो लेवी विख्यात रे लाल ॥ध॥ ॥ गणिका कां पर धन तपो.लेवा लीधो ले नीम रेलाल ॥खरीय कमा ईपणी, तिणगुं नित्य राखे सीम रे लाल ॥ ए॥ वेश्या सदु टोलें मली, बाली नोली यौवन वेष रेला ल॥घरढी बूढी मोकरी,जश्नेट्यो नगर नरेश रे लाल ॥ १० ॥ कामलता वेश्या घरे, कठियारो कान्हड ना म रे लाल,सोनैया देश पांचशे, मूकी गयो किणही का म रे लाल ॥ध ॥ ११ ॥ सार न पूजी साहिबा,
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(१३) मोगुं न वि सीधुं काजरे लाल ॥ए निरमाल लीयां न हिं, माहरे घर एहवं राज रे लाल ॥ध० ॥१॥रा जन रूडां राखजो, धन युं बुं सदुनी साख रे लाल ॥ ए धन आवे रावले, एहवीं लोक तणी जे नाख रे लाल ॥ध०॥१३॥ पांचमी ढाल सुहामणी, राजाने दीधा दाम रेलाल ॥ मानसागर कहे ागलें, हवे कुण कुण होसे काम रे लाल ॥ध० ॥१४॥
॥दोहा ॥ ॥पुरमें पडह वजडावीयो,लश्सदुकोनां नाम ॥का मलता वेश्या घरे,कुण मूकी गयो दाम ॥१॥ गलियां गलियां गुंजतां, मलिया माणस थोक ॥ शेरी शेरी सांनव्यो, को न बोले लोक ॥ ५ ॥ चढुटा विच वा जे पडह,ले सदुकोनां नाम ॥ कान्हड कठियारो कहे, ए तो महारां दाम ॥ ३ ॥ आगें ननो आयने, एह वी नाखे नाख ॥ ए दमडा डे माहरा, एवी झुं बु शा ख ॥ ४ ॥ कटियारानो करग्रही, आण्यो राय हजूर ॥अधिपति दीठो आवतो, एतो वडो मजूर ॥५॥रा य पूढे कान्हड प्रत्ये, तें जोड्यो किम दाम ॥ कठिया रो कान्हड कहे, थें सुजो मुफ स्वाम॥ वीतक वात
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(१३) कढुंसवे, सांजलजो सहुसंत कान्हड कठियारो कहे, ते दाखं दृष्टंत ॥ ७॥
॥ ढाल बनी॥ ॥राग सोरह॥ यत्तनी देशी ॥ कटियारे मांमी वा त रे, वातरे ॥ नारी वेचुं दिन ने रात ॥ एक दिव स मुनिसर मलिया रे, मलिया रे, पातक सवि दूरेंट लियां ॥१॥त्रुटक॥ पातक सवि दूरे टव्यां,सुणि मुनि वरनी वाणी ॥ चोथा व्रतनी आखडी, में लीधी हित
आणी ॥२॥ ढाल ॥ चित्तमें एक वात विचारी रे, विचारी रे, तजी पूनिम दिन परनारी ॥ निजनारीशं नित्य नेहारे, नेहारे, पालुं हुं व्रतनी रेहा ॥३॥
० ॥ एम करतां दिन केटले, नारी वेची आण ॥ दोय टका दें ले गयो, श्रीपति सेवक जाण ॥ ढाल ॥ श्रीपतिनो सेवक एह रे, एह रे, नारीले गयो निज गेह ॥ बावना चंदननी जारी रे, नारी रे,श्रीपति म न वात विचारी ॥ ५॥०॥ वात विचारी तुरता, सोनश्या सो पांच ॥ आण दिया एकण समे, कांश न करी मन खंच ॥ ढाल ॥ मनमां न शकांत च रे, खंच रे, मुफ मलियो एहा संच ॥ पांचों सोनैया दीधां रे, दीधां रे, मेंखोजे घाली लीधां
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(१४)
॥ ७॥ ॥ ले घरने संचयो, गयो वेश्या वास ॥ नहखूटनर तिहां वसे, तिहां कीधी मुफ हास ॥७॥ ढाल ॥ तिहां माहरी हांसी कीधी रे, कीधी रे, वे श्या मुजां दिन दीधी॥ पांचशे सोनैया दीधां रे, दी धा रे, तिणें शीश चढावी लीधां ॥ ए ॥०॥ शिश चढावी तरत गुं, मांझी मुफगुं वात ॥ बाघा था वो अम घरे, वासो रहो एक रात ॥१०॥ ढाल ॥ मेडीमाहे सेफ बिडग रे, बिगइ रे, वेश्या विहसंति थाइ ॥ पूनमदिन पूरो चंद रे, चंद रे, देखी थयो अधिक आणंद ॥ ११ ॥ ॥ पूनम दिन परना रीयं,जे मुजव्रतनी कार ॥ एह न नांजु बाखडी,निश्च य ने व्यवहार ॥१२॥ ढाल ॥ में दान तणो मिष कीधो रे,कीधोरे, वेश्यानो दुकमज लीधो रे ॥ रऊनी जश् हाटें सूतो रे, सूतो रे, वेश्यासेंती नवि खूतो ॥ १३ ॥ ॥ वेश्यासुं खुतो नहिं, पाली व्रतनी आण॥रात गइ हवे उगीयो, उदयाचल शिर जाण ॥१४॥ ढाल ॥ उदयाचल उग्यो जाण रे, जाण रे,
रड मफल विहाण ॥ कान्हड कहि वातज ताजी रे, ताजार, सदु लोक दुवा मनराजी ॥१५॥ ॥ ॥ मन राजा सहुको दुवा, वात कही में आ
करतो ते
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(१५)
ज ॥ ए सोनइयां पांचरों, माहारां बे महाराज ॥ १६ ॥ ॥ ढाल ॥ बी ए ढाल विशाल रे, विशाल रे, सुपतां कहे मान रसाल ॥ राग सोरठ यत्तिनी देशी रे, जाणशी ते खरीय कलेशी ॥ १७ ॥ ॥ दोहा सोरडी ॥
॥ राजी दूवो राय, लोक सहु राजी हुआ ॥ श्री पति तेडा जाय, अधिपति केरा आदमी ॥ १ ॥ प्रवि पधिपति पास, श्रीपति शेठ इश्यो कहे ॥ में दीधी धन रासे, इस कठियारा कान्हने ॥ २ ॥ न कठियारो का ★ लायो चंदन बावनो । दोय टका उनमान, दीधा चाकर माहरे || ३ || में विगतावी वात, एतो चंदन बावनो । एहनुं मूल्य प्रख्यात, दिया सोनैया पांचशें ॥ ४ ॥ बे मुऊ गुरुनी आण, अधिक न लीयुं पार कुं ॥ ए उत्तम अहिना, खाटा लूप तिसी परें ॥ ५ ॥ अधिपति नाखें ग्राम, ए सोनैया पांचों ॥ को नहि माहरे काम, सांजलजो सहुको सना ॥ ६ ॥ सोनइया सो पंच, कान्हडने दीधा परा ॥ एहनो एहिज संच, खरा कमाया कान्हडा ॥ ७ ॥ ॥ ढाल सातमी ॥
॥ मेरो प्यारो रे ॥ ए देशी | इस अवसर याव्या
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(१६) तिहारे लाल,केवलधर अणगार ॥ सुखकारी रे ॥राजा पूले रंगशुं रे लाल,कहो मुफ एक विचार ॥सु॥१॥ शील तणो महिमा सुणो रे लाल॥यांकणी॥ श्रीपति शेठ वसे श्हां रे लाल, कामलता शहां जाण ॥सु॥ कठियारो कान्हड अड़े रे लाल, लेखे मुझने या ण ॥ सु० ॥ २ ॥ शी० ॥ मुनिवर आगल नाखि योरे लाल, चारे तणो अवदात ॥ सु० ॥ चारमाहे अधिको किस्यो रे लाल, महीपति पूजे वात ॥ सुरु ॥३॥ शो० ॥ चारे ए महिमा निला रे लाल, चा ए चतुर सुजाण ॥सु॥णमें अधिको कान्हडो रे. ल, राखी व्रतनी काण ॥ सु० ॥४॥शी॥ मूक्या सोनैया पांचशे रे लाल, मूक्यो गणिकानोग ॥ सुप ॥ धन कठियारो कान्हजी रे लाल, सद्य सराहे लो क॥सु० ॥ ५॥ शी० ॥ धन धन लोक कान्हड क हे रे लाल, धन कहें नगर नरेश ॥ सु० ॥ शील त पी जिण बारवडी रेलाल, पाली यौवन वेश ॥ सु० ॥ ६ ॥ शी० ॥ तीरथ शेजो वडो रे लाल, मंत्र व डो नवकार ॥सु॥ नदियामांहि मंदाकिनी रेलाल, व्रतमाहे विचार ॥ सु० ॥ ७ ॥ शी० ॥ शील तणो महिमा सुणी रे लाल,हरव्या राणो राण ॥ सु०॥ध
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(१७)
न धन जे सेवे सदा रे लाल, ते लहे सुख निरवाण॥ सु० ॥ ७॥ शी० ॥ण अवसर अवनीपति रे लाल, थाप्यो निज परधान ॥ सु० ॥ राजकाज ते सोंपी युं रे लाल, दीधुं बमणुं मान ॥ सु० ॥ ए ॥ राजना र धुरंधरु रे लाल, मंत्रमें शिर नवकार ॥ सु० ॥ मन मोयुं महाराजनुं रे लाल, वाधी बमणी लाज ॥ सुप ॥१०॥ पंचविषय सुख जोगवे रे लाल,नोगवे लोग रसा ल सु॥ ले लाहोलखमी तणो रे लाल,टाले कुमति जंजाल ॥सु॥११॥ शी० ॥ सातमी ढाल सोहाम।। रेलाल, एम कहे कवि मान । सु० ॥ शील तणाप रनावथी रे लाल, कान्हड थयो परधान ॥सु०॥१२॥
॥दोहा॥ ॥हवे कान्हड सद्गुरु कने,शीखे समकित नेद॥ सुगुरु सुदेव सुधर्मगुं, इणगुं सदा उमेद ॥१॥ श्रा भनां व्रत आदयां, पाले निरतीचार ॥ सेव करे व
तनी, जाप जपे नवकार ॥२॥ दान शीयल तप जाना, शिवपुर मारग चार ॥ आराधे अति नावगुं, तम पामे नवपार ॥३॥
॥ ढाल बाठमी॥ ॥ देशी मधुकरनी ॥ श्ण अवसर आया हां,
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(१७)
धर्मघोष अगार ॥ नवियण ॥ कान्हड दीदा था दरी, बांमी धन परिवार ॥ न० ॥१॥ धन धन शी ल सदा नटुं, जे सेवे नर नार ॥ ॥ ण नव सुख संपद मिले, परनव मुगति दातार ॥ ज० ॥२॥ ध० ॥ पंच महाव्रत उच्चरे, पांचे मेरु समान ॥॥ बकायनी रदा करे, धन कान्हड परधान ॥ न० ॥ ॥३॥ध० ॥ पांच सुमति सेवे सदा, तीन गुपति धरे अंग ॥ ज० ॥ अंग श्यार नण्या सदु, वली बा रे नपंग ॥ न ॥ ४ ॥ध ॥ तप किरियानो खप करे, ले मुनि शुभ आहार ॥०॥ चमर तणी परें बहु नमे, चाले खंमाधार ॥ न० ॥ ५ ॥ ध० ॥ बावी श परिसह जींपतो, करतो कर्मनी हाण ॥ ज० ॥ दशविध यति धर्म साचवे, जीवित मरण समाण ॥ ॥ज० ॥॥ध० ॥ क्रोध मान माया तजी, तजी यो सघलो लोन ॥ ॥ चारित्र पाले निर्मलं, :धे जगमें शोन ॥न ॥ ७ ॥ध ॥ दमा खडग सादियुं, पहेरी शील सन्नाह ॥ ॥ महियला व रें एकलो, कोय नहिं परवाह ॥ ज० ॥ ॥धत, कर्म शत्रु जीपण जणी, जाणे शार्दूलो सिंह ॥न । अप्रमत्त नारंम परें, कोइ न आणे बीह ॥ जाए॥
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(१५) पंच तीरथ जात्रा करी, निर्मल कीधां गात्र ॥ ज० ॥ बारह नावी जावना, मुनिवर चारित्र पात्र ॥ ना ॥ १० ॥ध० ॥ पाप आलोयां आपणां, सदगुरु के री साख ॥ न ॥ सयत जीव खमाविया, जे चोरा शी लाख ॥ ज० ॥ ११ ॥ध० ॥ अंत समय जाणी करी, करि अगसण पच्चरकाण ॥ ॥ देवलोकें थ या देवता, पहिले कल्पं जाण ॥ ज० ॥ १२ ॥ध॥ अष्ट कर्मनो क्य करी, लहि मानव अवतार ॥न०॥ मोदतणां सुख पामशे, धन कान्हड अणगार ॥ ॥ १३ ॥ध ॥ सरस ढाल ए आठमी, साधु तो आचार ॥ न ॥ मान कहे सुख संपदा, जे सेवे नर नार ॥ न ॥ १४ ॥ध० ॥
॥ढाल नवमी॥ ॥ वाडी फूली अति नली ॥ मन नमरा रे ॥ ए देश ॥ कान्दड साधु शिरोमणि ॥ मन जमरा रे ॥ लाधो सुर अवतार ॥ लाल मन जमरा रे ॥ शील त एगा परनावथी ॥ म० ॥ साधी शदि अपार ॥ला ल म०॥ १ ॥ शीलें सुर सान्निध्य करें ॥ म ॥शी लें पासे राज ॥ लाल ॥ शोलें संपत संपजे ॥म ॥ सीके वंबित काज ॥ ला० ॥ म० ॥॥मायण सा
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(२०)
यण व्यंतरी ॥ म ॥ नूत प्रेत वेताल ॥ला ॥ शील तणा परनावथी॥म ॥ श्रावी नमे ततकाल ॥ ला० ॥३॥ शूली सिंहासण थ६ ॥ म ॥ शेठ सुदर्शन जोय ॥ ला० ॥ शील तणा परजावथी॥ म० ॥रान वेलानत होय ॥ला ॥ ४ ॥ कान्हड साधु तणी पेरें ॥ म ॥ नवियण पालो शील ॥ सा ॥ण नव सुख संपद मिले ॥ म ॥ पर नव अधिकी लील ॥ला ॥ ५॥ नगर नलु पदमावती ॥ म० ॥ मरुधर देश मकार ॥ला ॥ धर्मनाथ पर सादथी॥म०॥ पूजा सत्तर प्रकार ला॥६॥ वडा वसे व्यवहारीया ॥ म० ॥धन करि धनद समान ॥ ला॥ ख्यागी त्यागी बहुगुणी ॥म ॥ दे षट दरि सण दान ॥ सा ॥ ७ ॥ सत्तरेशे तालीसमे ॥ म ॥ तिहां कीधो चन मास ॥ ला० ॥ सशुरुना परसादथी। म०॥ पूगी मननी आश ॥ ला॥॥ श्रीतपगन गुरु राजीयों ॥ म ॥ श्रीविजयप्रन सूरिं द ॥ला॥ तस गबगगन दिवाकरु ॥ म० ॥ श्री विजयरत्न मुणिंद ॥ सा॥॥ तस गबमें महिमा नि । लो॥म ॥ श्रीजयसागर उवष्नाय ॥ ला ॥ तास शिष्य शोनाकरु ॥ म० ॥ जितसागर गणिराय ॥
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(२१) ला ॥ १०॥ राजसागर सुख संपदा ॥ म ॥ रचि यो ए अधिकार ॥ ला॥डो अधिको नारखीयो । म० ॥ मिजामि मुक्कड कार ॥ला ॥११॥ मानसा गर सुखसंपदा ॥ म ॥ जितसागरगणि शिष्य ॥ ला० ॥ साधु तणा गुण गावतां ॥ म०॥ पूगी मन ह जगीश ॥सा॥१२॥ नवमी ढाल सोहामणी ॥ म ॥ गोडी राग सुरंग ॥सा० ॥ मान सागर क हे सांजलो ॥ म० ॥ दिन दिन वधते रंग ॥ ला॥ ॥१३॥ इति श्रीशील विषयिक मानसागरगणिविर चित कान्हडकठियारानो रास समाप्त ॥
॥ अथ ॥ ॥ श्रीमयणरेदानो रास प्रारंन॥
॥ दोहा ॥ ॥ जूआ मांस दारु तणी, करे वेश्यागुं जोष ॥ जीवहिंसा चोरी करे, परनारीनो दोष ॥ १ ॥
॥ ढाल ॥ अनाथीनी वैरागी देशीमां ॥ ॥ व्यसन सातमुं परनारीनु,प्रत्यक्ष पाप दीखायुं ॥ रावण पदमोत्तर मणिरथ राजा, तीनुं राज गमायु
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(२३) ॥ १ ॥ राजवीयांने राज पियारो, नाइ वेद्यो प्या रो ॥ ए आंकणी॥ मणिरथराजा केरो सुणजो, यु गबाहुने मास्यो ॥ आप मूने राज गमायुं, हाथें कडं अन आयो ॥राज ॥२॥ रावण राजा पहेलो दर्ड, पी पदमोत्तर रायो॥त्रीजी कथा मणिरथ राजानी, ते सुजो चित्त लायो॥राज ॥३॥ जंबूदीप जरत खेतरमा, नगर सुदंसण नारी ॥धना पूरण देखतां सुंदर, रैयत सुखी राजारी ॥रा॥॥ मणिरथ राजा धारणी राणि, रिक्षितणो विस्तारो ॥ हाथी घोडा र थ पायक सेना, थाकतो चोथो आरो॥रा ॥ ५॥ स्वचकनें परचक्रनो, विरोध नहीं तेगिवारो ॥ मणिर थराजाने युगबादु नाइ, मांहो मांहे बे प्यारो ॥ रा० ॥ ६ ॥ पंचेंडीना नोग जोगवता, नाटिक रयणि दि हाडे ॥ विविध प्रकारनी क्रीडा करता, विषय विरु हवे पाडे ॥ ७ ॥ मगिरथ राजा राज करंतां, चडीयो महेल उदारो ॥ तेणे अवसर मयणरेहा दीती, युगबा दुनी नारो॥रा ॥ ७॥ रूप देखीने अचरज पाम्यो, अहो अहोरूष अपारो ॥ण राणीने महोलमांरा, सुख विलगुं संसारो ॥रा ॥ ए ॥ मणिरथ राजाक री मनसुबो, युगबादुनें बोलायो॥करो सजाइ आयुध
हाडे विना नोग नाही माहे के प्यार
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शालानी, देश सेवा ढुं जायो ॥ रा० ॥ १० ॥ हाथ जोडी युगबादु बोले, एडे थोडो काजो ॥ राज बिरा जो राजसुखोमें, ढुं जावं महाराजो ॥ रा॥११ ॥ म गिरथ राजा राजी दु, दुकुम कीयो ने नाइ ॥ देस किलो कायम कर आजो, ले जाउ फोज सजाई ॥ रा ॥ १२ ॥ युगबाहु उत्यो सीताबरां, हरख दु मन मांहिं ॥ देस किला कायम करी यावी, मुजरो करशुं ना ॥रा ॥ १३ ॥ लइ फोजां युगबादु च ढीयो, मजलें मजलें जायो॥ युगबादु तो मरम न जाणे, मणिरथ कीयो नपायो ॥रा॥१४॥ मणिर थराजा मयारेहाने, नारी वस्त्र मगावे ॥घरेणा ज डाव पहेरण सारु, दासी हाथे पोहोचावे ॥ राण ॥ १५ ॥ राजाना कहेवाथी दासी, दे राणीने जा यो॥ मणिरथराजा चोज बनायो, तिगरी खबर न कायो॥रा ॥ १६ ॥ मयणरेहा मनमाहे जाण्यो, धणी चाल्यो संग्रामो ॥ मयणरेहा मन मुंही विमासे,
जे पिताने गमो॥रा ॥१७॥ एम जाणीने उरा • लीधा, वस्त्र आनूषण सारो ॥ नेह स्नेहे वस्तु मेली
ने, राजा लाग्यो तारो ॥ रा॥ १७ ॥ मयण रेहा ने रीसज आवी, दीयो दासीने जिंजकारो ॥ मुज ध
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(
४)
।
गीतो परदेश सिधास्यो, राजा पडीयो मारी लारो॥ रा० ॥ १५ ॥ दासी मन दलगीर दुश्ने, राजा पासें जायो॥ मयणरेहातो कोप करीने, दीनी वस्तु बगा यो ॥रा ॥ २०॥ मणिरथराजा रात समयमां, म हेल नाइने आयो, दरवाजो जडीयो तेणे दीठो, हे लो मारे रायो॥रा ॥२१॥ मयणरेहा मनमांहे जाण्यो,मणिरथराजा आयो॥बीजो उपाय तो कोइन दीसे, दीनं सासुने जगायो ॥रा ॥ ॥ मयणरे हा तो बानुं जश्ने,वात सासुने जगायो ॥ अमलने व स मातायें जाण्यो, बेटो नूलें बायो॥रा॥२३॥ एतो महेल बेटा युगबादुनो,मेहेल पेलीकानी थारो॥ वचन माताना सांजली राजा, लाज्यो घणो तिणिवारो ॥राण ॥२॥ मयणरेहा मनमोहे जाएयो, पड्यो राजा माहा रेलारो॥तो कासीद हुँ मेलुं धणीने,हेला आवजो ए कवारो ॥ राज ॥ २५ ॥ वीती वात लखी कागल मां, जीवती जाणो मानें ॥ तो घर पाडां वहेला आ वजो, दगो कीयो नाइ थाने ॥ राज ॥ २६ ॥ का सीद कागद दीनो वेगो, जुगबाहुने जाई ॥ कागल वाची जुगबादुयें जाण्यो,दगो कीयो ने नाई ॥राज ॥ १७ ॥ श्म जाणी जुगबाहु वलियो, ढील न कीधी
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(२५) कां ॥ मुहूर्त नही महेलें जावणरो, निमित्तिये वात बताइ ॥ राज ॥ २७ ॥ जुगबाहु देहेरो बाहिर कीधो, नगरीमां नहीं पायो ॥ मणिरथराजारो मर जाणीने, राणी धणीकनें जायो ॥राज॥ एम यणरेहा मित्र आप धणीनी, पर पुरुष प्रीति न जा पी॥ विरत आपणुं राखण सारु, जतन करे ने रा एणी ॥ राज ॥३०॥ मयणरेहा तो गइ सीताबा, विधियुं वात सुणा॥ जुगबादु तो मनमें जाण्यो,मा रशे मुजने जा ॥राज ॥३१॥ जुगबादुने आव्यो जाणी, मर उपनो राजा रे ॥ मणिरथ राजा करे वि मासण, उमराव ने इण सारे ॥राज ॥३२॥ जु गबादुने राणी कहेली, दगो करेलो ना ॥ साथ स मान ले इणरे घोडे,तो हुँ पहेलां मारुं जा ॥राज॥ ३३ ॥ नाइ मारण राजा रातरो चाव्यो, चढीयो एक सखाइ॥दोडीदार चाकर पालंतां,गयोधखाइन मांहि ॥राज ॥३४॥ मयणरेहा तो मनरी दाखवी, जेट ले मणिरथ आयो ॥ कहे धणीने दुयो सावधानो, मारेलो थांको नायो ॥राज॥ ३५॥ मयण रेहातो अलगी दुश्, राजा नेडो आयो॥ जुगबाहु तो साहा मो आयो, मणिरथ घाव चलायो ॥राज ॥३६॥
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(२६)
नाइ मारीने पानो वलियो, थइ घोडे असवारो॥ सर्प पूबडीये खुर हेतुथी, खाधो ले तिणिवारो ॥राज०॥ ३७ ॥ मणिरथ राजा हे पडियो, मरण पाम्यो त कालो ॥ खबर नहीं को राजसनामें, कम कीधो चालो ॥ राज ॥ ३० ॥ मयणरेहातो धणीकनें आइ, दुःख धरती मनमांहि ॥ मेंतो थांने कह्यो महा राजा, मारेलो थांको ना ॥ राज० ॥ ३ए॥ मयण रेहा तो कहे धणीनें, करो संथारो सोइ ॥ चार शर ण थांने होजो स्वामी, नहीं ले किणरो कोइ ॥ रा ज० ॥४०॥ मोरा प्रीतम थाने युं डं, शीख हैयडा में धारो ॥ साहेब तुं परदेश सिधारो, ढुं नातुं बांधु लारो ॥ रा॥४१॥ मोरा प्रीतम थाने देवअरिहं तो, गुरुनिग्रंथ सुसाधु ॥धरम दया केवलीको नारख्यो, समकितने आराधो ॥ रा ॥४॥मो॥ थाने जीव मारणरों, जावजीव पञ्चरकाणो ॥ सरव प्रकारें मृषा वादमे, अदत्तदानमें जाणो ॥ रा० ॥४३॥ मो० ॥ थाने मैथुन सेवणरो, नवविध प्रगट प्रमाणो ॥ मनु ष्य अने तिर्यंच संबंधि, जावजीव पच्चरकाणो ॥ रा० ॥४४॥ मो० ॥ थाने नवविध,परिग्रहनो परिहारो॥ क्रोध मान माया लोन ए, चारेनो परिहारो ॥रा॥
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४ामो॥ थाने राग द्वेषह, कलहने अप्परकाणो ॥ पैशुन्य चाडी रती अरती, परपरिवाद पच्चरकाणो ॥ रा० ॥ ४६ ॥ मो० ॥ मायामोसो, नही जलो को रीते॥ मिथ्याशव्य मनथी काहाडीने, रहो समकेत पर तीते ॥रा॥४॥मो॥ नही कोई कहेगें, स्वपनो सं पत जाणो ॥ परनवमां ए साथे चालसी, गांठे बांधो नाणो ॥रा॥४॥मो॥ थाने संस करावं, मोमें जीव मत घालो ॥ करी अलोयण कारज सारो, पर जव सुख सोहिलारो ॥ रा ॥ ४ए ॥ मो० ॥ श्म करो विचारो,धरम साचो करी जाणोमानधणीज ल जीवित जाणो, श्रीजिनवचन प्रमाणो ॥रा॥५० मो॥ ए दोष करमनो,
किने दोष न दीजें ॥रुण वैयरतो कोइ न बूटे, बांध्या जे चुक्तीजे ॥२०॥५१॥ मोण॥ कुण माताने पिता, कोण कुटुंब कोण ना॥ घरकीतो साहेब नही स्त्री, स्वारथ सरव सगा ॥ रा० ॥ ५५ ॥ मो० ॥ सरदहजो संथारो, चार आहार प रिहरियो। मरण सहने साहेब इकदिन, सायतो रा खजो हियो ॥ रा० ॥ ५३॥ मयणरेहा बाती गाढ करीने, कारज पतिनो सुधारयो॥ मित्र होने मरण सु धारे, धन्य मित्र तणो नेह पायो ॥रा॥५४॥मो॥
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(२
)
मोहवशे थइ मरण बिगाडे,घेरी नरकमें घाले ॥सगा तोपण पूरव वयरी, थइ उना तिण काले ॥रा ॥ ॥ ५५॥ मित्र होइने मरण सुधारे, ते विरला संसा रो॥ द सरणाने खूस कराव्या, करियो पर उपगारो ॥रा ॥ ५६ ॥ धन्य संसारमें मयणरेहा सती, का रज धणीनुं सुधायुं ॥ जीव्युं तो एनुं रूडो जायो, धन वैभव न संनायुं ॥रा० ॥ ५७ ॥ मो० ॥ मन समता आयो, ममता कोइमत राखो ॥ शत्रु मित्र सदु सरखा जाणो, कोश्गुं शव्य म राखो ॥ ॥ रा० ॥ ५ ॥ जुगबादु तो सरदह्यो संथारो, सा ह्य दीयो ने राणी ॥ कालमासे तो काल करीने, जर उपना विमाणे ॥रा० ॥ एए ॥ मयणरेहा सती म नमें जाण्यो, रखे पकडे मने रायो ॥ वेस बदलावी ने परि जालं, दासी नाम धरायो॥रा ॥ ६ ॥ रामेंगुं बाहिर निकली, गई उजाडी मायो ॥ पडी आपदा नही को साथें, राणी कुंअर जायो ॥ रा० ॥ ६१ ॥ जिजाये दसोटण ढूंते, वधती राज वधा ३॥ विषम वियोगनो कुंअर जायो, जोजो कर्म कमा ३॥रा० ॥ ६२ ॥ चंपो पाबलो राणी मरपे, रखे आवे को लारो ॥ श्म जाणीने कुंअर जायो, दुश्
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( ए) करमोने सारो ॥ रा ॥ ६३॥ कोमलकाया कारण पडियो, पाय पडे नही गयो ॥ कुंअर तो राणी नि नतो न जाण्यो, बाल मेल्यो रणमायो ॥ रा॥६॥ चीर बिना सिला उपर सुवाज्यो, बाल विडोहो जा एयो॥ होणहार थारो होसे जाया,मयणरेदाःख था एयो ॥रा ॥ ६५ ॥ घणा दासने दासी दूती, राज कुमरनी धायो ॥ दोडी पडदामाहे रहेती, राणी ए कली जायो ॥रा ॥ ६६ ॥ कुंअर मेलीने आगे चाली, अन्न विण सूनी काया ॥ कठे सुवावड कुण मंगल गावे, कर्मे चेंन दीखाया ॥रा०॥६७॥ जाता जाता आगे नदी आइ, वस्त्र पाणीमें पखाव्या ॥ स्नान करीने तीरे बेठी, कुःख करे मयगरेहाला ॥ रा० ॥ ६॥ कोण वियोग पडीयोहो माने, किसे ते काणे बा३॥ रणमां रोती एकली बेठी, रोवे वि ललाइ ॥ रा ॥ ६ ॥ किणघर जन्मी किणघर या ३, राजानी राणी कहा ॥ साहेब महारोमू मेव्यो, रण रोश्में आई॥ राम् ॥ ७० ॥ पडियो विडोदोमा त पितारो, जगवन्नन लघु नाइ ॥ चंजसाने महो समां मेव्यो, बालक के रणमांही ॥रा ॥ ७१ ॥ महेल जरोखा शोने जाली, राजवीयां रुसना ॥
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(३०) ६ साहेबकी उनी मेली हुँ,आइबेती वनमांदी ॥रा ॥ ७२ ॥ विषम उजाडी तीर नदीनो, सुख नही ले तिल रती ॥ मयणरेहा तो कुःखकरी दोरी, कष्ट प ड्यो ने सती ॥रा ॥ ७३ ॥ जूरे घणीने करेय वि सापा, सुखनर बाती फाटे ॥ मयणरेहानुं दुःख प्र नु जाणे, बेटी ने तट माटे ॥ रा० ॥ ७ ॥ संयो ग रूपणी रु ढुंती, वियोगणी तिगवाली॥ नाथ विहूणी मुखज करती, आणी रणमे राली ॥रा ॥ ७५ ॥ देखो सगाण संसारो, वीबडतां नहीं वा रो ॥ इम जाणीने सदगुरु सेवो, लाहो लेजो लारो ॥रा० ॥ ७६ ॥ तिण अवसरमें देवता जाण्यो, : ख करे ने राणी ॥ वैक्रियरूप कां हाथीनु, राम त मांमी पाणी ॥रा ॥ ७७ ॥ कुःख वीसरीने वि सम कीनो, सूंढ उबाले पाणी॥ फुःख दोरीने हाथी दीठी,रामत देखे राणी ॥७॥ जियुं जियुं रामत देखे राणी,अचरिज मनमां नारी ॥धर्मअंकूरो पुण्य प्रकारें,
आवे नरनारी ॥रा॥७॥ जलनरी हाथी तेहने सुंमयु,देखी राणीनबाली॥तेटले नेडो आवी निकल्यो, पागंतर॥ देवता कोश परनपगारी,राणी गुंढेनबाली॥ इतरेकोश्यायनिकल्यो,राणी विमानमें घाली ॥रा॥
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(३१)
G॥ विद्याधरतो राजी दूठ,रूप घणो ने नारी ॥ तरत विमान ने पाडो वाल्यो,हुँ लइ जाउं घरबारी ॥रा ॥ ॥१॥ मयणरेहा तो मनमें जाण्यो,तुरत वढ्यो जे पा बो॥कुण जाणेकिणदिस सजावे,यंतो न दीसे बागे ॥रा२॥ विद्याधरने राणी पूजे,जातो किण दिसें ना॥आवतो तो ते पाडो वलियो,किसी आई दिल मांही ॥ रा ॥७३ ॥ नगवंतना हुँ दरिसण जातां, तुज सरखी मली नारी ॥ म जाणी हुँ पालो वलियो, सुख विलगुं संसारी ॥रा ॥ ४ ॥ मयणरेहा मीठे वचनें कहे, नगवंत दरिसण जातां ॥ मारग मांहे तो हुँ मली डं, नको बदु दरिसण करतां ।। रा० ॥ ५॥ तीर्थकरना दरिसण करतां,प्रसन्न होसे थारी काया॥ विद्याधर सुणि पाडो वलीयो, मयण रेहा मन नाया ॥स ॥ ६ ॥ समोसरणगुं नेडा आवी, विमानथी उतरिया ॥ करी वंदनाने वखाण सुणियो,कारज सती ना सरिया ॥ र ॥ ७ ॥ जुगबातो देवता दूठ,उठे ने उद्यम आणी ॥ करजोडी देवांगना हर्षलं, जयज य कहे मुखवाणी ॥ ॥णगमे स्वामी आइ नप ना,हवा हमारा नाथो॥कुण गुरुनी तुमे सेवा कीधी, किशो दान दीयो हाथो ॥रा० ॥॥ ज्ञाने करीने दे
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(३२) वतायें दीठो, पूरवनवनो विचारी ॥ जुगबाहु महारो नामज दूतो, मयण रेहा महारी नारी ॥राए॥ मयण रेहाने कारण मुजनें, मणीरथ नाश्यें मास्यो॥ धरम तो मुज साजज दीधो, मयणरेहा मुने ता यो ॥ रा० ॥ १ ॥ नपगारी गुरुणी जाणीने, देव ता दरिसन जायो ॥ देखे मयणरहा किए थानक, बेती समोसरण मांयो ॥ रा० ॥ ए३ ॥ ततण दे वता तिहां आवीने, प्रनुने प्रदक्षिणा दीधी ॥ साधु साध्वी सर्व बोडीने, मयगरेहाने वंदन कीधी ॥रा ॥ ए३ ॥ पर्षदा देखी हसवा लागी, देवता दीशे गहिलो ॥ स्त्रीने इणे वंदन कीधी, जीगरो प्रनु उत्त र देलो ॥रा ॥ ए४ ॥ हेलो मत ने मकरो हासो, ए एन गुरुणी॥इम जाणीने वंदना कीधी, पा बला जवनी परणी ॥ रा० ॥ ए५ ॥ जुगबादु इसरो नाम ज दूतो, मयणरेहा ए नारी ॥ धर्म तणो णे साहाजज दी, ए हून सुर अवतारी ॥ रा०॥ए६॥ मरणरेहा रे कारण इएने, मणिरथ जाइये मास्यो॥ उपदेश देश संथारो सर्दह्यो, मयणरेहायें तास्यो । राए ॥ ए७ ॥ मयणरेहा सती मनमांहे जाण्यो, कं त दीशे जे महारो ॥ इण अवसरमें संजम ले, प
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(३३) बी विद्याधरने सारो ॥रा०॥ए॥ नरी परषदामें मय
रेहा उठी, बोले बेकर जोडी ॥ आज्ञा द्यो स्वामी संयम ले, टालं नवनी कोडी ॥रा ॥ एए॥ दे व कहे थाने आज्ञा महारी, व्यो थें संयम नारो ॥ युगबाहूतो उरण दूठ, मयणरेहाने तास्यो ॥ रा० ॥ १० ॥ मुजने तो विद्याधर व्यायो, परवस वात प्रकाशी ॥ कठे विद्याधर कहे देवता, गयो विद्याधर नासी ॥रा ॥ १ ॥ मयणरेहायें संयम लीनो, झान नणे गुरुणी पासें ॥ विनय करीने आझा पा ले, समिति गुपति अहिरासे ॥रा ॥ २ ॥ देवतो मनमा हर्षज पाम्यो, पूजे प्रनुना पायो ॥ साध सा ध्वी सर्व वांदीने, आव्यो जिणदिशि जायो ॥ रा० ॥ ३ ॥ देवता आपणे गमे पोहोतो, मयणरेहा सं यम पाले ॥ बालक माताथें रणमा मूक्यो, आपण पुण रखवालो ॥रा ॥४॥ न कोश हिंसक जीवत्यां आयो, नही कोई पंखी आयो ॥ पुण्य एहना जोर करीने, राजा रणमा आयो ॥रा ॥ ५॥ मिथिला नगरी पद्मोत्तर राजा, चढियो सिकारे सो ॥ पाप करतां पज्यो पाधरो, पूरव सुकृत कोइ ॥रा०॥ ६॥ करी असवारी वनमां फिरतो, चढ्या पायक सब को
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(३४) ३॥ रणमां बालक सूतो दीठो, पद्मोत्तर राजी हो ॥रा० ॥ ७ ॥ बालक देखी राजा आव्यो, रूप जो ३ अचरिज पायो ॥ बालकतो कोई पुण्यवंत दीसे, राजाने मन नायो ॥रा ॥ ७ ॥ देखो पुण्याइ रा जा केरी, नरम नही मनमायो । वस्तुप्राप्ति पुण्य प्रमाणे, कुंअर राजायें पायो ॥ रा ॥ ए॥ महारा राज्यमां पुत्र नही बे, एतो सहेजे आयो॥ इण बा लकने उरो लश्ने, सोंपुं राणीने जायो ॥ रा॥१०॥ कुमर उचाली राजा पाडो, यो निज दरबारो ॥ पटराणी पुफचूला तेडी, पुत्र दीयो देवकुमारो॥रा० ॥ ११ ॥ नव मसवाडा नारे मरती, देवी पीतर म नायो । आपणा पूरव पुण्ये करीने,कुमर सहेजे आ यो ॥ रा० १२ ॥ आपणा राजमां पुत्र नही , करो गरी प्रतिपालो ॥ राज्य लायक कुंधरज दी शे, होसे रैयत रखवालो ॥ रा० ॥१३॥ नारी न लवणी दश राणीने, कुमरज खोले घाव्या ॥ पुण्यवंत कुमर घर आयो पीछे, नूम्या नमीने चाल्या ॥ राम ॥ १५ ॥ जे नूम्याथी अतिही बीहीता, कुंअर राजा रे आयो ॥ नूम्या आवी चाकरी लागा, नमी नाम देवराव्यो ॥ राम् ॥ १५ ॥ नमी कुमरतो वधतो रा
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जमें, दिनदिन चढतो होइ ॥ मात पिता बांधव वि बोहो, ते सुगजो सदु को ॥ राम् ॥ १६ ॥ जुगबा दुने मणिरथे मास्यो, विषयरसें लोनायो ॥ पाडो व लतां सा खाधो, चोथी नरकमें जायो ॥रा॥१॥ बेहु राजानो मरज दुवो, खबर दुइ नगरीमांहि ॥ मयणरेहा तो निकली नाती, तिगरी खबर न कांश ॥रा० ॥ १७ ॥ दोनुं राजारो कारज कीg, राज चं इजसाने दीयो ॥ किगने दोष न दीजें प्राणी, कर्म प्रापजे कीयो ॥ रा० ॥ १ए ॥ चंजसा तो राज्य करे , वरते चोथो आरो ॥ बाप तणो मन थोडो आवे, पण फुःख मातारो ॥ रा० ॥ २० ॥ नमी कुमर तो महोटो हुवो, बल दीण हूवो राजारो ॥ नमीकुमरने राज बेसाड्यो, सुख विलसे संसारो ॥ रा० ॥ २१ ॥ जुगबादु तो देवता दून, मयणरेहा संयम पाले ॥ चंजसाने नेमी नाइ, दोनुं राज रख वालें ॥ रा० ॥ २२ ॥ यात कर्म डे महा जोरावर, जीवमें फांटा पाडे ॥ चारुंने तो न्यारा कीधां, एक बहु कुःख देखाडे ॥रा ॥ २३ ॥ दोनुं राजा राज जोगवतां, अटवी हाथी पडियो ॥ वस्ति आपणी रा खण सारु, वाहिर करवा चडियो ॥ रा० २५ ॥ चं
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(३६)
इजसा तो मनमें जाण्यो, उलड दीसे कठारो ॥ दे खोनी महारी धरती से, राजवीयां अहंकारो॥रा० ॥ २५॥ चंजसा फोजां लश्चडीयो, काकड सामी आयो ॥ नमी कुंअर तो करी सजाय, मनमें मगज न मायो ॥ रा० ॥ २६ ॥ चंजसा तो कोप करीने, बोले वांकी वाणी ॥ मर्मना मोसा बोले नमीने, च ढीयो ने इम जागी ॥रा ॥ २७ ॥ तिण अवसर में मयणरेहा सती, मनमें इसडी जाणी ॥ अंगजात बे दोनुं महारा, निश्च पुण्यवंत प्राणी ॥रा ॥२॥ लाख आदमीरी घातज होसे, मरसे घणा अजाएगी। एथी कोइ नपगारज कीजे, मयरेहा मन आणी ॥रा ॥ ॥ विनय करी गुरुणीने पूजे, आप क हो तो जाउं ॥ दोनुं राजरी राड मिटावं, ढुं जाइस मजानं ॥रा० ॥ रा० ॥ ३० ॥ माहोमांही कोइन हटशे, अंगजात ने महारा ॥ घणा जीवांरी घातज होसे, परमारथ ने दोयारा ॥रा० ॥३१॥ देखो पु एया राजवीयारी, गुरुणी तो नही वो ॥ वस्तु
आपणी सेठी करीने, पनी उपगार युं करजो ॥रा ॥३२॥ करी वंदन मयणरेहा चाली, फरी सतीयांरो सायो। चंजसा तो सद्य पीठाणे, पहेला करुं नमी
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गुं वातो ॥रा०॥ ३३ ॥ कांकडसीमां बेठा विकाणे, फोजां चढी ने दो ॥ नमिय कुमरनुं लसकर पूबी; चाली मयणरेहा सोई॥रा० ॥ ३४॥ राज कचेरी में राजा बेठा, वात नही विष टालो ॥ प्रूफ लडारी वातां राजाने, उमराव मोतीमालो ॥ रा० ॥३५॥ मयणरेहा सती चरम शरीरी, आप तरी पर तारे ॥ राज सनायुं नेडी ओवी, नजर पडी राजा रे ॥रा ॥३६ ॥ नमीयकुंमर उग्यो सीताबी, विनय कयो ने जारी॥ सात आठ पग साहामो आयने, सतीयां केम पधारी॥रा० ॥३७ ॥ मयणरेहा सती कहे रा जाने, कारण पड्यो थारां जारी ॥ फोजबंधी तो तें नली कीधी, तिणखल परने विचारी ॥रा ॥३॥ महारो हाथी अटवी पडीयो, न देवे चंमालघर जायो ॥साथ सदुने नेलो करीने,तिण कारण चढी यायो॥ राम् ॥ ३ ॥ बाप मास्योने माता जागी, गई किणा रीलारे ॥ महारी धरती लेवण आयो, नीचनो जा यो त्यारे ॥रा ॥ ४० ॥ बेटो थे बो राजवीयारो, बोलो बोल विचारो ॥ थां उपरवली कुण चडीसी, उना ले थारो॥रा ॥४१॥ नमीकुमरतो मनमें जा एयो, माजी दीसे मारी ॥ लाज वाणीने नीचे जो
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(३७) यं. वचन कह्या में जारी ॥रा ॥४३॥ नेमीकमर तो कहे माताने, थे लीधों संयम नारो ॥ माता था पदा किणविध दुइ, वात करो विस्तारो॥रा०॥४३॥ थारा पिताने मणिरथें मास्यो, हुँ रात्रे निकली आई ॥ जनम थाहारो विचमाहे टूट, में मेली दी रणमा हि ॥ रा ॥ ४५ ॥ तीर नदीरे बेठी दूती, विमान विद्याधरनो आयो ॥ जलचर हाथीयें मुजने नबाली, हुँ गइ समोसरण मांडो ॥ रा० ॥ ४५ ॥ पिता था रो देवता दून, दरिसणे प्रनुजीने आयो॥ श्राझा मा गी संयम लीनो, नेट्या प्रचना पायो ॥रा॥ ४६ ॥ दोनु राजारो जगडो सुणियो, लडशे मांदोमांही ॥ घणा माणसरो मरणज होशे, इण कारण ढुं या॥ रा० ॥ ४७ ॥ नमीराजा ए वात सुणीने, चिंता फि कर मन आई ॥ नमीय कुमरतो कहे माताने, जाश्ने मिलगुंजाइ॥रा० ॥ ४ ॥तीक नही ले चंजसा ने, यो ने महारो ना ॥ नही विसवास डे र जचीयां ने, तिणे मिलगुं पहेलो जाय ॥रा० ॥ ४५ ॥ नमी कुमर पहेलो समजाइ,चंजसा कने जायो । सतीयां नजर पडी राजा रे, विनय करी सामो आयो ॥ रा० ॥ ५० ॥ बेकर जोडी राजा बोल्यो, महासतीयां कि
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म आइ॥ कामु कारण पडियो थारो ॥ इसडी वेला में आ॥रा ॥ ५१ ॥ फोजां थारी दोनुं राजा रे,ज गडो पड्यो माहोमांहि ।। फोजबंधी तो थे नली की धी, तिणकारण ॥रा ॥ ५५ ॥ बाप मायो मा निकली नागी,गश्तेकिगरी तारो॥ महारी धरती लेने आयो, कही सनमुख जाइ महारो॥ ५३॥ म हारी धरती लेवण आयो, नीच चंमाल घर जायो॥ साथ समान नंणे नेला कीधा, ते कारण हुँ चढी आयो रा॥५४॥ बेटा डो थें राजवीयांरा,बोलो बो ल विचारो ॥ उर थांपर तो कुण चडी पासी, जना बेथारो॥रा० ॥ ५५ ॥ चंजसा तो महोटो मेट्यो, खबर पडी नण सारी ॥ नमी बालक न्हानो जाणी ने, वात कही विस्तारी॥र० ॥ ५६ ॥ वात सुणीने राजा लाज्यो, नीचे मुख करी जोहे ॥ नारी वचन कह्या माताने, राजाने नही सोहेरा॥॥ चंज सायें मनमें जाण्यो,नमीय कुमर महारो जाइ॥ नही स्नेह ने दोय बेटारो,तिण कारण माता यारा॥ ॥ ५ ॥ चंजसा तो मलवा चाल्यो, नमी कुमर साहामो आ॥ हरखनावगुं बांह पसारी, मलीया दोनु नाइ॥रा० ॥ ५५ ॥ एक हाथीपर दोनु बे
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(४०) टा, चंजसा नमी ना॥ चंजसारा मेराने दिसी, आवे हरख उमाई ॥रा० ॥६० ॥ युह लडाश्नी वा तज करता, लडता होडाहोडी।लोकां रे मन अचरि ज आयो, कांड कीयो ण मोडी ॥रा० ॥ ६१ ॥ यु ६ मटावी मेल कराव्यो, घणा लोक दूवा राजी॥घ एगा जणारा माथा पडतां, राख्या ण माजी ॥ रा० ॥ ६ ॥ जलो होजो इण माता केरो, जस ली धुं जगमांहि ॥ राजा नमराव कुशलज दूवा, घरघर रंग वधाइ॥रा० ॥६३॥ राजकचेरीयें अावी बेगा, चं
जसा नमीना॥ चंजसा सुख थयुं जाणीने, वे रागें मन आ॥ रा० ॥ ६४ ॥ चंजसा तो कहे ने मीने, राज्य करो थे नाइ॥ मुने तो अब दीदा लेगदे, ए दोनुं राज्य जलाइ॥रा ॥६५॥ नमी कहे मुने दीदा लेण्यो, आप राज्य करो महारायो॥ राजपा ट रि६ि सदु संपद, मेंतो थाने जलायो ॥ रा० ॥ ॥ ६६ ॥ चंजसा तो दीक्षा लीधी, हर्ष हैये नवी मावे ॥नाइ विलून पुःखनुं लहेरो,नमीय रायने आवें ॥रा ॥ ६७ ॥ नमीय राजातो राज्य करे ,राणी एकशोंने आगे ॥ पडे नाटो कददुवे कारो,दोनुं राजा रो पाटो ॥रा० ॥ ६७ ॥ दाहज्वरना योगेंकरीने,
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(४१) लीधो संयम नारो ॥ परीक्षा करवा आयो, उत्त राध्ययन विस्तारो ॥रा ॥ ६ए ॥ दोनुं राजा रो मेल करायो, मयणरेहा पानी आ ॥ गुरुणीने तो पाये लागीने, विधिशुं वात सुणा ॥ रा० ॥ ७० ॥ दोनुं राजापे मेल करायो,राखी घणारी बा जी॥ मयणरेहाना गुण जाणीने, गुरुपी दुइ जे राजी ॥ रा० ॥ ७१ ॥ त्रीश हजार आरजांमांहे, गुरुणी चंदन बाला ॥ पुण्यतणी राय पदवी पा, शीखणीर तनारी माला ॥ रा० ॥ ७२ ॥ चेडा राजारी साते पुत्री,जगवंत आप वखाणी॥चेलणा मृगावती त्रीजी प्रनावती, चोथी शिवादेवि राणी ॥रा॥ ७३ ॥ पां चमी पद्मावती बही सुलसा, ज्येष्ठा सातमी जाणी॥ कष्ट पड्यां सती शीलज पाल्यां, दमयंती नलराणी ॥रा ॥ ७ ॥ अंजना महिंडाजारी बेटी, विखो सह्यो वनमांहि ॥ कष्ट पड्यो सतीव्रतज राख्यो,जस कीरती जुगमांहि ॥रा॥ ५॥ सती झेपदी आगे दुश्, जस लीधो युगमांहि ॥ महोटा राजारो विरोध मिटायो, मयणरेहा अधिकाइ ॥रा ॥७६ ॥ संयम लश्ने सुकत करजो, मनुष्य जनम मत खोइ ॥ जिन शासनमें मयणरेहा कीनो, ज्युं करजो सब कोई॥
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(४३)
रा० ॥ ७७॥ मयणरेहा सती दीक्षा लश्ने, शुभमन संयम पाल्यो ॥ जिनमारगमें नाम दीपायो, नवनो फेरो टाल्यो ॥ रा० ॥ ७० ॥ मयारेहा कुलतारक दुइ, लजा आपणी राखी ॥ विखो सह्यो पण व्रत नवि नांज्युं, सबजुगमांहे शाखी ॥रा० ॥ ए॥ यु गबाहुने मयणरेहा राणी, चंश्यशा नमी नाइ॥ चा रेनां तो कारिज संरिया, मणिरथ नरकज मांहि ॥ रा० ॥ ७० ॥ मयगरेहाने कारण मणिरथ, युगबादु ने माखो ॥ पाबो वलतो सापें खाधो, एको काज न सास्यो ॥ रा० ॥ ७१ ॥ व्यसन सातमुं परनारीनु, जीवघात घर हायो ॥ मणिरथराजा नरकें पहोतो, कामनोग ननो प्राण्यो ॥ रा० ॥ ७२ ॥ श्म जाणी ने कामे न राचो, उखदाइ अपारो ॥ उत्तम प्राणी मनमें धारो, जालो मोद मकारो॥रा० ॥३॥ प्र थम वीरजी दान वखाण्यो, पडी शील अधिकारो॥ तपस्या तपीने कर्म निवारो, नाव वडो संसारो ॥रा० ॥ ४ ॥ एक व्यसने मनोरथ न सीधो, उख पायो संसारो ॥ सात व्यसन जे सेवे प्राणी, तिरो कुःख में अपारो ॥रा ॥ ५ ॥ विषयारस विषसम जा पीने, सतगुरु सेवा कीजे ॥ मणिरथराजानी वात
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(४३) सुणीने, परनारी त्यागीजे ॥रा ॥ ७६ ॥ गाम क कडीयें कस्यो चोमासो, संवत चौदोतेरा मांयो॥ कथा कारण आ ढालज कीनी, हर सेवक चित्त लायो । रा॥ ७॥ साधां रे तो मुख सांजलजो,चरित्र मय गरेहारो ॥ तिण उपर कोई अधिको उदो, मिबाउक्क ड महारो॥रा॥॥इति मयणरेहा चोपाई समाप्त॥ ॥ अथ श्रीनारकीर्नु ब ढालीयुं प्रारंन ।
॥ ढाल पहेली ॥ ॥ वर्षमान जिन वीन, साहेब साहस धीरो जी ॥ तुम दरिसण विण हुँ जम्यो, चनगतिमां वडवीरो जी ॥ १ ॥ प्रनु नरक तणां सुःख दोहेलां, में सह्या काल अनंतो जी ॥ सोर कस्यां नवि को सुणे, एक विना जगवंतो जी॥ ॥ प्रचु० ॥ पाप करीने प्रा गीयो, पहोतो नरक मोजारो जी॥कपिन कुनाषा सांजली, नयण श्रवण मुखकारो जी॥ प्रनु० ॥३॥ सीतल योनीयें उपजे,रहे वली ते ठामो जी ॥ जा नु प्रमाणे रुधिरना, कीच कह्या बदु तामो जी ॥ प्र नु० ॥ ४ ॥ तव मनमांहि चिंतवे, जाइये किणदिशि नासो जी ॥ परवस पडियो प्राणीयो, करतो कोडी
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(४४)
विखासो जी ॥ प्रनु० ॥ ५ ॥ चंद नही सूरज नही, घोर घटा अंधारो जी, थानक अतिथ बिहामणुं, फर स जिस्यो खंमाधारो जी॥प्रनु० ॥६॥ नवो नरकमां उपजे, जाणे असुर तिवारो जी॥ कोप करी यावे तिहां, हाथें धरी हथीयारो जी ॥ प्रचु० ॥ ७॥ करे कातरणी देहनी, करता खंमोखंम जी ॥ रीव करे तिहां किणे बद, पामे मुख परचम जी ॥प्रनु०॥॥
॥ ढाल बीजी ॥ वैरागी थयो॥ ए देशी ॥ ॥जांजे काया जाजतो रे, मारे फेचा रे मांय ॥ गंधे माथे अगनी दीये रे, नंचा बांधे पाय रे ॥१॥ जिनजी सांजलो ॥ कडुआ कर्मविपाक रे, प्रनुजी सांजलो ॥ ए आंकणी ॥ आवे वैतरणी तटें रे, ज लमा नाखे रे पास ॥ करीए कुहाडे तरु परें रे, दें अधिक नन्नास रे ॥जिन०॥॥ चा योजन पांचशे रे, उबाले रे आकाश ॥ श्वानरूपें करडे तिहां रे, मृ ग जिम पाडे पास रे ॥ जिन ॥ ३ ॥ पनरे नेदें सु र मनी रे, करवत दीये रे कपाल ॥ आरोपे सूली शिरे रे, नांजे जिम तरुमाल रे ॥ जिन ॥ ४ ॥ बो ले ताता तेलमां रे, तरीकरी काढे रे ताम ॥ वली नोजरमां खेपवे रे, विरुवा ते विसराम रे ॥ जन
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(४५) ॥ ५ ॥ खाल उतारे देहनी रे, अनख सदा दे आ हार॥ बदु आरडडा पाडतो रे, तनु विच घाले खार रे ॥ जिन ॥ ६ ॥
॥ढाल त्रीजी ॥ राग मारु ॥ ॥ ताप करे तिहां नूमिका रे, वन आय सीतल जाण ॥ यावी बेशे तरु बाहडे रे, पडतां जांजे प्रा ण ॥ चतुर मत राखजो रे ॥ १ ॥ कडुआ करम विपाक, विरुवा विषय विलास ॥ सुख थोडा दुःख घणा जेहथी रे, लहियें नरक निवास ॥ च ॥३॥ कुंजीमां पाक करे तस देहनो रे, तिल जिम घाणीमांहि ॥ पीली पीली रस काढे तेहनो रे, महेर न आवे तास ॥ च० ॥३॥ नाठो जाय त्रीजी नरक ल गें रे, मन धरतो जय ब्रांत ॥ पूठे परमाधामी सुर पु से रे, जेहवा काल कृतांत ॥ च ॥४॥ दांत विचें दीये आंगुली रे, फरी फरी लागे पाय ॥ वेदन सहे तां काल थयो घणो रे, हवे मुफ सह्यो न जाय ॥ च० ॥ ५ ॥ ज्यां जाय त्यां उठे मारवा रे, कोइन पडे सार ॥ उखजर रोवे सोर करे घणो रे, निपट हैये निरधार ॥ च ॥ ६ ॥
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(४६) ॥ ढाल चोथी ॥ रे जीव जिनधर्म कीजीयें ॥ देशी ॥
॥ परमाधामी सुर कहे, सांजल तुं नाइ ॥ कहो क्यो दोष हमारडो, निज देखो कमाइ ॥परमा॥१॥ पाप तमे कीधां घणां, बहु जीव विणास्या, पीड न जाणी पर तणी, कूडा मुख नांख्या ॥ पर० ॥ ॥ चोरी लाव्यां धन पारकां,सेवी परनारी॥यारंन कीधा अतिघणा रे, परिग्रह नवि मारी॥ पर० ॥३॥ मा त पिता गुरु उलव्या, कीधो क्रोध अपार ॥ मान मा या लोन मन धस्यो, मतिहीन गमार ॥ पर॥४॥ निशिनोजन कोधां घणां, बहु जीव विणास्या ॥ न कानद घणा नख्या, पातकनो नहीं पार ॥ दर॥५॥
॥ ढाल पांचमी॥ जाषामां ॥ . ॥ एम कही सुर वेदना ए, वयर नदीरे ताहितो ॥ सिला कंटाला वजतणा ए, तिहां पगडे साहतो ॥ १ ॥ सयल वदन कीडा नखे ए, जीन करे शत खंमतो ॥ ए फल निशि जोजन तणां ए, जाणो पा प अखंम तो ॥ २ ॥ तरस वसे तातो तरुन,मुखमां नामें ताम तो ॥ अगनी वरणी पूतली ए, स्पर्श करा वे आम तो॥३॥ ननोने अति आकरो ए, आणे तातुं नीर तो ॥ ते घाले तस आंखमां ए, कानमा
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(१७)
नरेय कथीर तो ॥ ॥ कालो अधिक बिहामणो ए, हूंमक जे संस्थान तो ॥ दीशे दीन दयामणो ए, व ली अ संहारे प्राण तो ॥ ५ ॥
॥ ढाल बही॥ ॥ इणिपरें बहु वेदन सही ॥ चित चेतो रे ॥ व सतां नरक मजार ॥ चतुर चित्त चेतो रे ॥झानविना जाणे नहीं ॥ चि० ॥ कहेतां नावे पार ॥ च ॥१॥ दशदृष्टांतें दोहिलो ॥ चि० ॥ लाधो नरनव सार ॥ च ॥ पामी एने म हारजो ॥ चि० ॥ करजो एह विचार ॥ च ॥ २ ॥ सूधो संयम आदरो ॥ चि॥ टालो विषयविकार ॥ च ॥ पांचे इंशी वश करो। चि ॥ जिम होये बूटक बार ॥ च ॥३॥ निश विकथा परिहरो ॥ चि॥ आराधो जिनधर्म ॥च॥ समकेत रत्न हैये धरो ॥ चि॥ नांजे मिथ्या नरम ॥ च ॥४॥ वीर जिणंद पसानले ॥ चि० ॥ अहि पुर नगर मोजार ॥ च ॥ तवन रच्युं रजीयाम' ॥ चि०॥ परमकृपाल उदार ॥ च० ॥५॥
॥इति नारकीनुं षटढालीयुं समाप्त ॥
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(४७)
॥ अथ हरीयाली॥ ॥महोटा ते मंदिर मालीयां रे सखी,जालीयें जा क जमाल ॥ दीप जलामल जगमगे रे सखी, वास नुवन वरबाल रे ॥ माननी महीयल मोहनवेल ॥१॥ एतो गाजती करे गजगेल, रलीयामणी रंगनी रेल, एहनें पोहोचती पुरुषनी बेल रे ॥ माननी मही॥ ए आंकणी ॥लाखतणा लेखा नही रे सखी, जोग वे पुरुषनी कोड ॥ कामगारी कामिनी रे सखी, न विकरे मोडामोड रे ॥ माननी मही० ॥ २ ॥ यती घणा जेणे वस्या रे सखी, ए सति बालकुमारि ॥नी च नपुंसकगुं रमे रे सखी, लोककहे साबास रे ॥ माननी मही० ॥३॥ वेसिढुंति वेश्या नही रे सखी, नही अबला सुगि दासि ॥ गुणवंती ते गोरडी रेस खी, जानंगी तस बलिहार रे ॥ माननी मही० ॥४॥ देह अजरामर कजली रे सखी, बीजतणो जिस्यो चं द ॥ श्रीचरणप्रमोद पसाना रे सखी, पामो परमा नंद रे॥ माननी मही० ॥५॥इति ॥
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