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(७) व्रत धारक जाण रे,नित्य पोसह करें पच्चरकाण रे॥व० ॥॥ चनद नियम संनार तो सखी,श्रावककुल शण गार ॥ व्ये लाहो लखमीतणो सखी,जाणे सदु संसा र रे ॥ घर पुत्र कलत्र परिवाररे,इम सफल करे अवतार रे, थयुं धमै चित्त नजमाल रे ॥व० ॥७॥ चंपक चा कर शेतनो सखी, आयो नण बाजार ॥ कटियारा कान्हड तणी सखी,नारी लिये तिण वार रे॥हवे देश टका दोश् चार रे, कान्हड शिर देईनार रें, दोनुंआ या शेत ज्वार रे ॥ व० ॥ ए॥ चोखो चंदन बावनो सखी, परिमल गंध रसाल ॥ गोंखें बेटो शेठजी स खी.खबर हा ततकाल रे॥चंदननो गंध विसराल रे. कठियारो कान्हड बाल रे, जर नाख्यो चोक विचा ल रे ॥ व ॥ १० ॥ शेठ कहे चंपक प्रत्ये सखी, ए हनुं मूल कहाय ॥ दोय टका दीधा अडे सखी, जो तुम आवे दाय रे॥कठियारो घरमें जाय रे, हवे शेव कहे सम जाय रे, एहनुं मूल लीयो तुम दाय रे ॥ ॥व० ॥ ११ ॥ देश सोनैया पांचशे सखी, शेनें कीध जुहार ॥ त्रीजी ढालें ढलकतो सखी, मीठो राग म ब्दार रे॥कहे मानसागर सुविचार रे,कान्हडें लयुं व्य .अपार रे, पामीजें पुण्य प्रकार रे ॥ व० ॥१॥इति॥
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