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(७)
॥ दोहा॥ ॥ नगर विचालें नीकल्यो, बायो गणिका वास ॥ नहखूट नर तिहां वसे, हस करि काधी हास ॥१॥ उलगाणो आयो हां, मनमें महोटी खंत ॥ आयो आंही जाणजो, रसिया एम हसंत ॥ ५॥ कठियारो कान्हड कहे, सांजल सयणां वात ॥ पोडे जे आ वशे, रहेशे दिवस ने रात ॥ ३ ॥ वेश्या आई विहस ती, नयणें अमी ऊरंति ॥ मुख मोडे मटका करे, न यरों नेह धरंति ॥४॥ ॥ ढाल चोथी ॥ नमणी खमणी ॥ ए देशी॥
बेनी पीढो मांमी विशाला, रसिया उपर मांगे टाला॥ शिर राखडियां अधिकी शोना,माथे चमर नली परेंथोन्या॥१॥निलवट अधिक विराजे टीको, नयणें काजल सोहे नीको ॥ अांखडीयां सोहे अणियाली, नमुह कबाण चमर परे काली॥ २॥ दीप शिखा जिम सोहे नासा, परिमल गंध लिये तिहां वासा ॥ नाके उपर सोहे मोती, रात दिवस न रहे तिहां जोती॥३॥ वदन अनोपम शारद चंद, जीहा जी त्या अमीरस कंद ॥ अधुर प्रवासतणी परें राता,दंत पंति विच सोहे खातां ॥ ॥ सोनानी घड सोहे का
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