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________________ (१७) न धन जे सेवे सदा रे लाल, ते लहे सुख निरवाण॥ सु० ॥ ७॥ शी० ॥ण अवसर अवनीपति रे लाल, थाप्यो निज परधान ॥ सु० ॥ राजकाज ते सोंपी युं रे लाल, दीधुं बमणुं मान ॥ सु० ॥ ए ॥ राजना र धुरंधरु रे लाल, मंत्रमें शिर नवकार ॥ सु० ॥ मन मोयुं महाराजनुं रे लाल, वाधी बमणी लाज ॥ सुप ॥१०॥ पंचविषय सुख जोगवे रे लाल,नोगवे लोग रसा ल सु॥ ले लाहोलखमी तणो रे लाल,टाले कुमति जंजाल ॥सु॥११॥ शी० ॥ सातमी ढाल सोहाम।। रेलाल, एम कहे कवि मान । सु० ॥ शील तणाप रनावथी रे लाल, कान्हड थयो परधान ॥सु०॥१२॥ ॥दोहा॥ ॥हवे कान्हड सद्गुरु कने,शीखे समकित नेद॥ सुगुरु सुदेव सुधर्मगुं, इणगुं सदा उमेद ॥१॥ श्रा भनां व्रत आदयां, पाले निरतीचार ॥ सेव करे व तनी, जाप जपे नवकार ॥२॥ दान शीयल तप जाना, शिवपुर मारग चार ॥ आराधे अति नावगुं, तम पामे नवपार ॥३॥ ॥ ढाल बाठमी॥ ॥ देशी मधुकरनी ॥ श्ण अवसर आया हां, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005370
Book TitleKanhad Kathiyara tatha Mayanrehano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages50
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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